इस पूजा से जुड़ी भगवान कृष्ण की एक कथा है, जिसमें उन्होंने देवता इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था.
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नई दिल्ली: दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. ये त्यौहार प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को दर्शाता है. पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है. गाय को देवी लक्ष्मी का भी स्वरूप माना जाता है. इस पूजा से जुड़ी भगवान कृष्ण की एक कथा है, जिसमें उन्होंने देवता इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था. कथा के अनुसार अपनी गलती का एहसास होने पर देवता इंद्र ने श्री कृष्ण से माफी मांगी थी.
ये है कथा
लोकगाथा के अनुसार, देवराज इंद्र को अपने ऊपर अभिमान हो गया था. इस घमंड को चूर करने के लिए एक लीला रची. एक दिन उन्होंने देखा कि गांव के सभी लोग ढेर सारे पकवाने बनाते हुए किसी की पूजा की तैयारी कर रहे हैं. बाल कृष्ण ने अपनी मैया से इस बारे में प्रश्न किया तो उन्हें पता चला कि ये सब देवता इंद्र को प्रसन्न करने के लिए किया जा रहा है. ताकि वो आशीर्वाद स्वरूप बारिश करें और अन्न की पैदावार हो सके. अन्न की पैदावार के कारण ही गायों को चारा मिलता है. इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि गाय गोवर्धन पर्वत पर चरने जाती हैं, ऐसे में पूजा भी पर्वत की होनी चाहिए. उन्होंने अपनी माता यशोदा और ग्रामीणों से कहा कि इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए. उनकी इस बात को सुन सभी ग्रामीणों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की.
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इस बात से देवराज इंद्र नाराज हो गए, उन्होंने इस अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है. तब भगवान कृष्ण सभी को गोवर्धन पर्वत की ओर ले गए. पर्वत को प्रणाम कर उन्होंने उसे अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया, जिसके नीचे सभी ग्रामीणों ने शरण ली. ये देख इंद्र और क्रोधित हुए और वर्षा और तेज हो गई. तबश्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें.
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लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा होती रही, लेकिन ग्रामीणों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. तब इंद्र को एहसास हुआ कि उनका मुकाबला किसी सामान्य मानव से नहीं है. वे घबराकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बताई. इस पर ब्रह्मा जी ने बताया कि वे जिस मानव की बात कर रहे हैं वे भगवान विष्णु के रूप श्री कृष्ण हैं. ये सुन देवता इंद्र श्री कृष्ण के पास पहुंचे और उन्होंने उन्हें न पहचान पाने के लिए क्षमा मांगी. इस पर भगवान ने कहा कि देवता आपको अपनी शक्ति का घमंड हो गया था, इसे तोड़ने के लिए ही मैंने ये लीला रची थी. ये सुन इंद्र लज्जित हुए और उन्होंने श्री कृष्ण से अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की. इसके पश्चात देवराज ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया.
इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी. साथ ही गाय और बैल को स्नान करवाकर उन्हें गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है. तभी से ये रीत चली आ रही है.