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नई दिल्ली: पिछले पांच सालों में 6 लाख से ज्यादा भारतीयों ने अपनी नागरिकता (Citizenship) छोड़ दी है. यानी हर दिन लगभग 300 लोगों ने सिटीजनशिप त्यागी है. यह चौंकाने वाली जानकारी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Rai) ने लोकसभा को दी है. उन्होंने मंगलवार को सदन में बताया कि पिछले 5 सालों में 6 लाख से अधिक लोग भारत की नागरिकता छोड़ चुके हैं. उन्होंने यह भी कहा कि विदेश मंत्रालय के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार कुल 1,33,83,718 भारतीय नागरिक इस वक्त विदेशों में रह रहे हैं.
एक प्रश्न का लिखित उत्तर देते हुए गृह राज्य मंत्री ने कहा कि 2017 में 1,33,049 भारतीयों ने नागरिकता छोड़ दी थी. वहीं 2018 में 1,34,561, 2019 में 1,44,017, 2020 में 85,248 और इस साल 30 सितंबर, 2021 तक 1,11,287 भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ चुके हैं. इस दौरान, देश में NRC की स्थिति को लेकर टीएमसी सांसद माला रॉय के सवाल के जवाब में नित्यानंद राय ने बताया कि अभी तक केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) तैयार करने का फैसला नहीं लिया है.
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गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा को बताया कि इसी तरह बीते पांच सालों में 10,645 लोगों ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है. इनमें से 4177 को यह प्रदान की जा चुकी है. नागरिकता का आवेदन करने वालों में 227 अमेरिका के, 7782 पाकिस्तान के, 795 अफगानिस्तान के और 184 बांग्लादेश के हैं. राय ने बताया कि वर्ष 2016 में 1106 लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई थी. वहीं 2017 में 817 को, 2018 में 628, 2019 में 987 और 2020 में 639 को देश की नागरिकता दी गई है.
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत, भारत के नागरिकों को दो देशों की नागरिकता रखने की अनुमति नहीं है. यदि किसी व्यक्ति के पास भारतीय पासपोर्ट है और वो दूसरे देश की नागरिकता भी प्राप्त कर लेता है तो उस स्थिति में उसे तुरंत भारतीय पासपोर्ट सरेंडर करना होगा. दूसरे शब्दों में कहें तो अगर किसी व्यक्ति ने विदेश में रहने के दौरान भारत की नागरिकता छोड़ दी है और वापस भारत लौटकर यहां का नागरिक बनना चाहता है तो उसके ऊपर वही नियम लागू होंगे जो नए देश में नागरिकता लेने के लिए लागू होते हैं. इस कानून के चलते अगर कोई व्यक्ति विदेश में रहने के दौरान वहां का नागरिक बन जाता है तो उसके पास भारत की नागरिकता छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.