Haryana Assembly Elections 2024: रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा विधानसभा चुनाव के बीच भारतीय जनता पार्टी सत्ता विरोधी लहर और कांग्रेस के फिर से उभरने की चुनौती का सामना कर रही है. इस बीच दक्षिण हरियाणा पर मजबूत पकड़ रखने वाले उसके वरिष्ठ नेता राव इंद्रजीत सिंह लगातार सुर्खियों में हैं.
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Haryana Politics: हरियाणा विधानसभा चुनाव से कई महीने पहले जून में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व करेंगे. इस बयान ने सैनी को पार्टी के सीएम उम्मीदवार के रूप में प्रभावी रूप से पेश किया. खासकर, एक ऐसी पार्टी के लिए एक दुर्लभ कदम के तौर पर देखा गया जो राज्य चुनावों से पहले शायद ही कभी अपने सीएम चेहरे की घोषणा करती है.
केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के समर्थकों की बढ़ी नारेबाजी
इस सबने केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के समर्थकों को उन्हें हरियाणा के भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने से नहीं रोका. राव के भाषण वाली चुनावी सभाओं में, उनके समर्थक उन्हें संभावित सीएम उम्मीदवार के रूप में जताते हुए नारे भी लगाते हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में राव ने पार्टी के उम्मीदवार लक्ष्मण यादव के साथ रेवाड़ी में कहा, "यह (सीएम बनने का सपना) मेरी नहीं बल्कि जनता की इच्छा है. यह अभी भी जनता की इच्छा है कि मैं सीएम बनूं. अगर दक्षिण हरियाणा ने 2014 और 2019 में भाजपा का समर्थन नहीं किया होता, तो मनोहर लाल खट्टर दो बार सीएम नहीं बनते."
हरियाणा में चुनावी वक्त पर सिंह ने दोहराई पुरानी महत्वाकांक्षा
रिपोर्ट के मुताबिक, राव इंद्रजीत सिंह ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया और पार्टी के लिए अपने महत्व को उजागर किया. वह भी ऐसे समय में जब पार्टी राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस फिर से उभरती दिख रही है. उनके समर्थकों का यह भी मानना है कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी में शामिल होने के बाद से उन्हें कई बार निराश होना पड़ा है. हालांकि पार्टी में उनकी एंट्री के बाद कांग्रेस के कई दिग्गज नेता भाजपा में शामिल हुए.
साल 2019 में भी सिंह की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी नजरअंदाज
माना जाता है कि भाजपा में चौधरी बीरेंद्र सिंह और धर्मबीर सिंह जैसे नेताओं के शामिल होने से उस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा की संभावनाएं मजबूत हुईं, लेकिन राव इंद्रजीत सिंह सीएम पद की दौड़ में मनोहर लाल खट्टर से पिछड़ गए. साल 2019 में भी उन्हें नजरअंदाज किया गया. पार्टी ने इस चुनावी साल के मार्च में खट्टर की जगह सैनी को सीएम बनाया. जून में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में लौटने के बाद, खट्टर को केंद्रीय मंत्रिमंडल में पदोन्नत किया गया, जबकि सिंह केंद्रीय राज्य मंत्री बने रहे.
पिछले साल से मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाओं पर बयान
पिछले साल एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में सिंह ने मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षाओं के बारे में बात की थी. उन्होंने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे क्षेत्र (दक्षिण हरियाणा) में लोगों ने मुख्यमंत्री बनाए और तोड़े हैं. 2014 में, अगर हमारे लोग एकजुट नहीं होते तो भाजपा सत्ता में नहीं आती. हमारे लोगों ने विरोध किया कि खट्टर के साथ खड़ा होना गलत है, लेकिन किसी ने नहीं सुना और उन्हें सीएम बना दिया. मेरे मन में सीएम बनने की महत्वाकांक्षा थी और लोगों की भी यही भावना थी. जब सरकार बनी तो लोगों को लगा कि उनका नेता नहीं चुना गया. लेकिन यह पार्टी का फैसला था और हमें इसका पालन करना था.”
कम से कम 22 विधानसभा क्षेत्रों में प्रभाव और समर्थन का दावा
गुड़गांव के सांसद सिंह के समर्थकों का दावा है कि क्षेत्र के कम से कम 22 विधानसभा क्षेत्रों में उनका प्रभाव है, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस दावे का कड़ा विरोध करती है. सिंह के समर्थकों का दावा है कि पार्टी ने उनकी सिफारिश पर क्षेत्र में कम से कम आठ उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. इन सीटों के अलावा, राव के करीबी सहयोगी और भिवानी-महेंद्रगढ़ के सांसद धर्मबीर सिंह ने कहा कि उनके क्षेत्र से चार से पांच टिकट केंद्रीय मंत्री के कोटे के तहत देखे जाने चाहिए.
भाजपा ने दी राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव को टिकट
पांच साल पहले भाजपा ने राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव को मैदान में उतारने से इनकार कर दिया था, लेकिन इस बार वह अटेली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं, जो भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय सीट का हिस्सा है. केंद्रीय मंत्री के करीबी सहयोगियों ने कहा कि वह टिकट बंटवारे से संतुष्ट हैं. पार्टी में उनकी पकड़ इसलिए और मजबूत हुई है, क्योंकि बिजली मंत्री रणजीत सिंह चौटाला, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष संतोष यादव और पूर्व मंत्री करण देव कंबोज जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर पार्टी छोड़ दी.
दक्षिण हरियाणा में टिकट बंटवारे से कई भाजपा नेता नाराज
कुरुक्षेत्र से भाजपा सांसद नवीन जिंदल की मां और भारत की सबसे अमीर महिला सावित्री जिंदल ने हिसार से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. दक्षिण हरियाणा से आने वाले पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रामबिलास शर्मा भी टिकट न मिलने से नाखुश हैं. हालांकि, राव इंद्रजीत सिंह ने खुद सैनी को चुनावी चेहरा बनाने के पार्टी नेतृत्व के फैसले को स्वीकार किया है, लेकिन उनके समर्थकों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है. आरती राव के अटेली से नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान धर्मबीर सिंह ने बताया कि कैसे 1982 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बंसीलाल ने अपने बेटे सुरेंद्र सिंह को विधानसभा चुनाव में उतारा था, ताकि अगर उन्हें सीएम बनने का मौका मिले तो सीट खाली करना और जीतना आसान हो. हालांकि, तब भजनलाल शीर्ष पद पाने में सफल रहे थे.
केंद्रीय मंत्री के समर्थकों और कांग्रेस नेता की मिलती हुई राय
धर्मबीर सिंह केंद्रीय मंत्री के समर्थकों से कहा, "पहली बार हमारे सामने इतना अच्छा मौका है. यह सिर्फ बेटी (आरती राव) के लिए चुनाव नहीं है." हालांकि, राव इंद्रजीत सिंह के आलोचकों का कहना है कि जब भाजपा ने दक्षिण हरियाणा में लगभग जीत हासिल कर ली थी, तब भी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. वे कहते हैं कि कांग्रेस में नई जान फूंकने और सत्ता विरोधी लहर के चलते उस प्रदर्शन को दोहराना असंभव लगता है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता कैप्टन अजय सिंह ने कहा, "2019 में भाजपा ने दक्षिण हरियाणा की 22 में से 16 सीटें जीती थीं, लेकिन फिर भी राव इंद्रजीत सिंह को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. इस बार कांग्रेस दक्षिण सहित ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल करेगी."
हरियाणा के अलावा राजस्थान के कुछ इलाके में भी बड़ा असर
वर्तमान रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, गुड़गांव और राजस्थान के भिवानी, दादरी, नूंह, झज्जर और अलवर के कुछ हिस्सों में फैले हुए इलाकों में राव इंद्रजीत सिंह का प्रभाव माना जाता है. तत्कालीन अहीरवाल राज्य पर शासन करने वाले पूर्व राज परिवार से संबंध रखने वाले राव इंद्रजीत सिंह हरियाणा के पूर्व सीएम राव बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं. राव 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी राजा राव तुला राम के वंशज हैं.
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रामपुरा में जन्मे सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. राव ने 26 साल की उम्र में राजनीति में आने से पहले कानून की डिग्री हासिल की. उन्होंने अपने पिता राव बीरेंद्र द्वारा स्थापित विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर रेवाड़ी के जटूसाना से विधानसभा चुनाव में पदार्पण किया, जिसका 1978 में कांग्रेस में विलय हो गया था.