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DNA Analysis: हमारे देश में एक खास विचारधारा के लोग ज्ञानवापी मामले को लेकर साम्प्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं और इस पूरे मामले को इस तरह पेश किया जा रहा है, जैसे ये पूरी कार्रवाई एक खास धर्म के खिलाफ हो रही है. जबकि ऐसा नहीं है. ये मामला इतिहास से जुड़ा है और हमें लगता है कि इस केस में न्याय की प्रक्रिया पर सवाल उठाने की बजाय देश के लोगों को अपनी अदालतों पर विश्वास रखना चाहिए.
इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि में जो सबसे बड़ा नाम है, वो है औरंगजेब. इसलिए आज हम औरंगजेब के बारे में भी आपका ज्ञानवर्धन करना चाहते हैं. वर्ष 1658 से 1707 तक औरंगजेब ने भारत के 15 करोड़ लोगों पर लगभग 49 साल तक राज किया. इस शासन काल में मुगल साम्राज्य इतना फैला कि पहली बार उसने करीब करीब पूरे उपमहाद्वीप को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया. औरंगजेब भारत को एक इस्लामिक राष्ट्र के तौर पर स्थापित करना चाहता था और इसके लिए उसकी नीतियां बहुत स्पष्ट थीं. वो हिन्दुओं से नफरत करता था और हिन्दुओं को पूरी तरह खत्म कर देना चाहता था.
वर्ष 1679 में औरंगजेब ने हिन्दुओं पर जजिया टैक्स लगा दिया था. ये एक ऐसा टैक्स था, जो सिर्फ हिन्दू देते थे और मुसलमानों को इससे पूरी तरह छूट मिली हुई थी. इस दमनकारी टैक्स को लागू करने से पहले औरंगजेब के दरबारियों ने एक सर्वे भी कराया, जिसमें लोगों को तीन श्रेणियों में बांटा गया. अमीर, गरीब और मध्यम वर्गीय हिन्दू परिवार. इस सर्वे का मकसद ये तय करना था कि किस हिन्दू से कितना टैक्स वसूला जा सकता है और इसके पीछे एक मंशा ये भी थी कि जजिया टैक्स से बचने के लिए बहुत सारे हिन्दू, मुसलमान बन जाएं.
हालांकि आज हमारे देश में जो लोग औरंगजेब के भक्त बने हुए हैं, उन्हें शिवाजी महाराज का एक प्रसंग याद रखना चाहिए. शिवाजी महाराज ने जजिया टैक्स के विरोध में औरंगजेब को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि औरंगजेब एक ऐसा राजा है, जो अपना खजाना गरीब हिन्दुओं को लूट कर भरना चाहता है. शिवाजी महाराज ने अपने इस पत्र में औरंगजेब की साम्प्रदायिक नीतियों का भी विरोध किया था. लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि आज शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र में एक जिले का नाम औरंगाबाद है, जो औरंगजेब के नाम पर ही पड़ा है.
औरंगाबाद का क्षेत्र पहले खडगी के नाम से विख्यात था. लेकिन दक्कन की लड़ाई के दौरान जब औरंगजेब इस क्षेत्र में आया तो उसने इसका नाम बदल कर औरंगाबाद कर दिया. इसके अलावा उसने ऐसे शहरों के भी नाम बदले, जो उस समय भी हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र थे. जैसे मथुरा और चटगांव इस्लामाबाद बन गए और बनारस का नाम मोहम्मदाबाद कर दिया गया. आज चटगांव बांग्लादेश में हैं.
औरंगजेब को नायक बनाने के पीछे एक बड़ी भूमिका इतिहाकारों की थी. आपको ऐसे ढेर सारे इतिहासकार मिल जाएंगे, जो अपनी पुस्तकों में ये लिखते हैं कि औरंगजेब एक महान रणनीतिकार और योद्धा था. जबकि सच्चाई ये है कि औरंगजेब ने सबसे ज्यादा हिन्दुओं पर जुल्म किए. वर्ष 1672 में उसने एक आदेश जारी किया, जिसमें ये कहा गया था कि भविष्य में हिन्दुओं को कोई भी जमीन ना दी जाए. इसका मकसद हिन्दुओं को सता कर उन्हें पलायन करने के लिए मजबूर करना था.
17वीं शताब्दी में औरंगजेब ने दर्जनों हिन्दू मन्दिर तुड़वाए, जिनमें मथुरा का श्रीकृष्ण मन्दिर भी था. वर्ष 1670 में इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने इसे तुड़वा दिया था और इसके एक हिस्से में शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दी थी. ये मस्जिद आज भी मथुरा में उसी जगह पर मौजूद है, जहां ऐसा माना जाता है कि वहां कंस की कारागार थी और उसी कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इस मामले में हाल ही में अदालत में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें मथुरा की एक कोर्ट से इस मस्जिद का भी सर्वे कराने की मांग की गई है. यानी याचिकाकर्ता चाहते हैं कि ज्ञानवापी की तरह मथुरा में स्थित इस मस्जिद का भी सर्वे हो. ताकि मन्दिर की वास्तविकता देश के लोगों को पता चल सके.
इसी तरह वर्ष 1669 में औरंगजेब ने काशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मन्दिर को तोड़ने का आदेश दिया था. इस मन्दिर को तोड़कर यहां ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया गया, जो आज भी उसी जगह पर मौजूद है. इसके अलावा औरंगजेब ने अपने कार्यकाल में गुजरात के सोमनाथ मन्दिर को भी दो बार तोड़ने का आदेश दिया. पहली बार 1659 में और दूसरी बार 1706 में. हिन्दुओं के प्रति औरंगजेब की नफरत का अन्दाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अपनी मौत से सिर्फ एक साल पहले, जब 88 साल की उम्र में उसे ये पता चला कि कुछ हिन्दुओं ने सोमनाथ के खंडित मन्दिर में भी पूजा अर्चना शुरू कर दी है तो उसने मन्दिर के बाकी हिस्से को भी ध्वस्त करा दिया.
इसके अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, बुंदेलखंड, राजस्थान और गुजरात में भी अनेकों मन्दिरों को तुड़वा दिया गया और इस बात का उल्लेख खुद उसे महान बताने वाले कई इतिहासकार करते हैं. 'मासिर ए आलमगीरी' नाम की पुस्तक में लिखा है कि एक बार जब औरंगजेब चित्तोड़ पहुंचा तो उसने वहां कई मन्दिरों में हिन्दुओं को पूजा करते हुए देखा. जिसके बाद उसने चित्तौड़ के 63 मन्दिरों को ध्वस्त करा दिया.
औरंगजेब के बारे में ये वो तमाम बाते हैं, जिनके बारे में हमारे देश के लोगों को ईमानदारी से कभी नहीं बताया गया. आपने भी ये बातें स्कूल में कभी पढ़ी नहीं होगी. बल्कि इस मिलावटी इतिहास को लोगों के दिमाग में बैठाने के लिए कई तरीके अपनाए गए. इनमें से एक था, जिन अस्पताल में आप जन्म लेते हैं, जिन स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं, जिस सड़क का इस्तेमाल करते हैं, जिस हवाई अड्डे से सफर करते हैं और जिस संग्रहालय में इतिहास का स्मरण करने जाते हैं, उनका नाम मुगल शासकों, के नाम पर रख देना.
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में ऐसे जिलों, कस्बों और गांवों की संख्या 700 से ज्यादा है, जिनके नाम मुगल शासकों के नाम पर हैं. यह संख्या 704 है. इनमें 61 जगहों के नाम पहले मुगल शासक जहीरुद्दीन मोहम्मद उर्फ बाबर के नाम पर हैं. जिन्होंने राम मन्दिर तुड़वाया था. मुगल शासक हुमायूं के नाम पर 11 जगहों के नाम हैं. अकबर के नाम पर सबसे ज्यादा 251 जगहों के नाम हैं. मुगल शासक जहांगीर के नाम पर 141 जगहों के नाम हैं. शाहजहां के नाम पर भी हमारे देश में 63 जगहों के नाम हैं और औरंगजेब के नाम पर तो 177 जगहों के नाम हैं.
इससे आप समझ सकते हैं कि हमारे देश में आज भी हिन्दुओं का दमन करने वाले औरंगजेब की कितनी जबरदस्त Fan Following है. देश की राजधानी दिल्ली में आज भी एक Lane का नाम औरंगजेब के नाम पर है. इसे औरंगजेब Lane कहा जाता है. इसके अलावा दिल्ली में तुगलक रोड नाम से भी एक सड़क है. दिल्ली में ही अकबर रोड भी है और यहां मुगल शासक शाहजहां के नाम से भी एक सड़क का नाम है, जिसे शाहजहां रोड कहते हैं. इसी सड़क से कुछ दूरी पर देश की संसद है. प्रधानमंत्री कार्यालय है, बड़े-बड़े सरकारी दफ्तर हैं, इसी के पास देश के बड़े-बड़े मंत्री और जज रहते हैं, सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे बड़े-बड़े नेता रहते हैं. लेकिन आजादी के 75 वर्षों के बाद भी इनका नाम नहीं बदला गया है और ये बातें बताती हैं कि हमारे देश के इतिहासकारों और नेताओं ने कितनी चालाकी से क्रूर मुगल शासकों को हमारा असली नायक बना दिया.
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