जो डर था वह हकीकत बन गया है. लॉकडाउन में ढील मिली, बाज़ार खुले तो काम करने के लिए वर्कर नहीं मिल रहे हैं.
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नई दिल्ली: जो डर था वह हकीकत बन गया है. लॉकडाउन में ढील मिली, बाजार खुले तो काम करने के लिए वर्कर नहीं मिल रहे हैं. कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अध्यक्ष बीसी भरतिया बताते हैं कि 80 प्रतिशत वर्कर अपने-अपने इलाकों में जा चुके हैं. काम करने के लिए 20 प्रतिशत वर्कर बचे हैं जो कि लोकल हैं और इनमें से केवल 8 प्रतिशत वर्कर दोबारा उसी जगह पर लौटे हैं, जहां पहले वह काम कर रहे थे. कोरोना वायरस के डर से खरीदारी भी नहीं हो रही है. बाजार में डिमांड है, लेकिन खरीदार निकल ही नहीं रहे तो किस काम की डिमांड. लॉकडाउन में ढील के बाद भी केवल 5 प्रतिशत व्यापार हुआ है.
कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं कि पिछले 60 दिनों में देश के रिटेल व्यापार को 9 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. पिछले एक सप्ताह के दौरान डेयरी उत्पादों, किराना, एफएमसीजी उत्पादों और उपभोग वस्तुओं सहित आवश्यक वस्तुओं में ही कारोबार चला है. इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, मोबाइल्स, गिफ्ट आर्टिकल, घड़ियां, जूते, रेडीमेड अपेरल्स, फैशन गारमेंट्स, रेडीमेड गारमेंट्स, फर्निशिंग फैब्रिक, क्लॉथ, ज्वेलरी, पेपर, स्टेशनरी, बिल्डर हार्डवेयर, मशीनरी, टूल्स सहित अन्य व्यापारों में ग्राहक गायब हैं. इसका बुरा असर सिर्फ व्यापारियों, कारोबारियों पर ही नहीं बल्कि सरकार को मिलने वाले टैक्स पर भी पड़ा है.
यही हाल MSME इंडस्ट्री का है. MSME इंडस्ट्री में 12 करोड़ वर्कर काम करते हैं , लेकिन फैक्ट्री में मैनुफैक्चरिंग चेन की अहम स्टेज पर जिन वर्कर की जरूरत होती है वो वर्कर गायब हैं. इंडस्ट्री वर्कर्स के हाथ-पैर जोड़ रही है कि वह वापस आ जाएं लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा.
MSME एसोसिएशन के चेयरमैन राजीव चावला कहते हैं कि हरियाणा में बिहार के वर्कर्स ने वापसी की इच्छा जताई है, लेकिन उन्हें लाना और क्वारंटीन करना बड़ी चुनौती है. वर्कर इसलिए गए क्योंकि ठेकेदारों ने उनका ख्याल नहीं रखा. फैक्ट्रियों की भी ये जिम्मेदारी थी. राजनीति भी जरूर हुई पर मैं इस पर कुछ नहीं कहूंगा. लॉकडाउन में इतनी डिमांड नहीं थी इसलिए काम चल गया, लेकिन अब वर्कर की बहुत जरूरत है क्योंकि बाजार खुल गए हैं. जून में बाजार की डिमांड पीक पर होगी और हमारे पास वर्कर 50 प्रतिशत ही हैं. ऐसे में समस्या बहुत बढ़ जाएगी. मजबूरी में कई इंडस्ट्री को ज्यादा पैसे देकर वर्कर्स को बुलाना पड़ सकता है, लेकिन ऐसे में इनपुट कॉस्ट बढ़ जाएगी. इससे साफ दिख रहा है कि इंडस्ट्री और राजनेताओं दोनों को मिलकर कुछ करना पड़ेगा नहीं तो अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर होने की योजना कारगर नहीं होगी.