हंगामे के बीच भारतीय न्याय संशोधन बिल लोकसभा में पारित
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हंगामे के बीच भारतीय न्याय संशोधन बिल लोकसभा में पारित

लोकसभा ने बुधवार को कांग्रेस सदस्यों के हंगामे के बीच भारतीय न्याय संशोधन विधेयक 2015 पारित कर दिया जिसमें कुछ पुराने पड़ चुके और अप्रचलित प्रावधानों को समाप्त किया गया है। भारतीय न्याय अधिनियम 1882 में संशोधन करते यह विधेयक लाया गया है। इसे वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने 7 दिसंबर 2015 को सदन में पेश किया था।

हंगामे के बीच भारतीय न्याय संशोधन बिल लोकसभा में पारित

नई दिल्ली : लोकसभा ने बुधवार को कांग्रेस सदस्यों के हंगामे के बीच भारतीय न्याय संशोधन विधेयक 2015 पारित कर दिया जिसमें कुछ पुराने पड़ चुके और अप्रचलित प्रावधानों को समाप्त किया गया है। भारतीय न्याय अधिनियम 1882 में संशोधन करते यह विधेयक लाया गया है। इसे वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने 7 दिसंबर 2015 को सदन में पेश किया था।

चर्चा का जवाब देते हुए सिन्हा ने कहा कि यह विधेयक 1882 के औपनिवेशिक काल के भारतीय न्यास अधिनियम के पुराने पड़ चुके कानूनी प्रावधानों को हटाने और उन्हें 21वीं सदी की जरूरतों के अनुसार बनाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि इसके तहत वर्तमान कानून की धारा 20 पर विशेष ध्यान दिया गया है जो वित्त मंत्रालय के दायरे में आता है। नये संशोधन में ट्रस्टी के अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गई है।

उन्होंने कहा कि जहां तक धार्मिक और धर्मार्थ ट्रस्टों का सवाल है, यह विषय अभी विधि आयोग के विचाराधीन है। विधेयक पारित होने के दौरान कांग्रेस सदस्यों का आसन के समीप आकर शोर शराबा करना जारी रहा और वे इसे पारित किये जाने का विरोध कर रहे थे। राकांपा के तारिक अनवर इस दौरान नियम का जिक्र करते देखे गए। कांग्रेस के कुछ सदस्य मत विभाजन की मांग भी कर रहे थे।

हालांकि उपाध्यक्ष एम थम्बीदुरै ने इसकी अनुमति नहीं दी। इस बारे में वर्तमान कानून के तहत ट्रस्टी, ट्रस्ट के धन को प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए बाध्य है जिसका उल्लेख अधिनियम की धारा 20 में किया गया है जो ट्रस्ट की सम्पत्ति कोष के रूप में होने की स्थिति में होगी और जिसका तत्काल ट्रस्ट के उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं किया जा सकेगा।

इस धारा में कुछ अनुपयोगी और पुराने पड़ चुके प्रावधान जुड़े थे जो ब्रिटेन और आयरलैंड के प्रोमिशरी नोट, डिबेंचर, स्टाक और अन्य प्रतिभूतियों से संबंधित हैं। इसके साथ ही ब्रिटिश संसद द्वारा लगाये गए बांड, डिबेंचर आदि भी शामिल हैं।

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