Luna Crater: 4000 साल पहले गुजरात में गिरे उल्कापिंड से हुआ सिंधु घाटी सभ्यता का अंत? नई स्टडी में दावा
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Luna Crater: 4000 साल पहले गुजरात में गिरे उल्कापिंड से हुआ सिंधु घाटी सभ्यता का अंत? नई स्टडी में दावा

Luna Crater In Gujarat: एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि गुजरात के कच्छ में मौजूद लूना क्रेटर करीब 4000 साल पहले टकराए एक उल्कापिंड से बना है. यही उल्का पिंड सिंधु घाटी सभ्‍यता के अंत की वजह बना.

Luna Crater: 4000 साल पहले गुजरात में गिरे उल्कापिंड से हुआ सिंधु घाटी सभ्यता का अंत? नई स्टडी में दावा

Indus Valley civilization Luna Crater: गुजरात में मौजूद एक क्रेटर पिछले 50,000 सालों में धरती से टकराने वाले सबसे बड़े उल्कापिंड से बना हो सकता है. एक नई स्टडी में यह दावा किया गया है. करीब 4,000 साल पहले इस उल्का पिंड की टक्कर से आग के गोले बने होंगे, शॉकवेव्‍स फैली होंगी. रिसर्चर्स के मुताबिक, उल्कापिंड के टकराने से जो आग लगी, वह उन इलाकों तक पहुंची जहां सिंधु घाटी सभ्यता को लोग रहते थे. कनाडा की वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च के नतीजे न्यू साइंटिस्ट नाम के जर्नल में छपे हैं. स्टडी में शामिल रहे गॉर्डन ओसिंस्की के मुताबिक, वह टक्‍कर किसी परमाणु बम के बराबर रही होगी, बस अंतर इतना था कि रेडिएशन नहीं था. कच्छ में मौजूद 1.8 किलोमीटर चौड़े क्रेटर को लूना स्‍ट्रक्‍चर कहते हैं. यह लूना गांव के पास स्थित है. महाराष्ट्र के लोनार और राजस्थान के रामगढ़ के बाद भारत में यह तीसरी ऐसी जगह है जो किसी बाहरी ऑब्जेक्ट के टकराने से बनी है.

उल्का पिंड की ऊर्जा से पिघले पत्थर कहां हैं?

लूना स्‍ट्रक्‍चर का जियोकेमिकल एनालिसिस बताता है कि यहां की मिट्टी में भारी मात्रा में इरीडियम मिला हुआ है. इससे पता चलता है कि शायद यहां पर एक लौह उल्का पिंड टकराया होगा. वैज्ञानिकों को यहां उल्कापिंडों से जुड़ी अन्य खासियतें जैसें- वुस्टाइट, किर्शस्टीनाइट, हर्सिनाइट और उलवोस्पिनल भी मिली हैं. दुनियाभर में जहां-जहां भी एस्‍ट्रॉयड और उल्कापिंडों की टक्कर हुई हैं, वहां के क्रेटर्स से इरीडियम मिला है. कुछ वैज्ञानिकों की राय है कि भले ही जियोकेमिकल एनालिसिस मैच करता हो, यह पूरी तरह से साबित नहीं हुआ है कि लूना स्‍ट्रक्‍चर उल्कापिंड से बना क्रेटर है. उसके लिए रिसर्चर्स को उन पत्‍थरों को ढूंढना होगा जो उल्कापिंड की ऊर्जा से पिघल गए होंगे.

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रिसर्चर्स ने उल्कापिंड के कोई 4,050 साल पहले टकराने का अनुमान लगाया है. इससे ऐसी शॉकवेव्स उठी होंगी जो पांच-पांच किलोमीटर दूर तक पहुंची होंगी. जंगली आग का दायरा इससे भी कहीं बड़ा रहा होगा. उल्कापिंड की वजह से निकली राख और धूल से कई दिनों तक पूरा इलाके में सूरज की रोशनी धीमी पड़ गई होगी.

लूना क्रेटर की खोज 2006 के आसपास हुई थी. यह करीब 11 महीनों तक सिंधु नदी और अरब सागर के पानी में डूबा रहता है. यह क्रेटर एक प्राचीन हड़प्पा साइट के पास भी है.

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