DNA: क्या सिक्किम में बादल फटने के बाद मची तबाही के लिए नेपाल में आया भूकंप जिम्मेदार? जानें पूरा सच
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DNA: क्या सिक्किम में बादल फटने के बाद मची तबाही के लिए नेपाल में आया भूकंप जिम्मेदार? जानें पूरा सच

Sikkim Cloud Burst: मंगलवार को सिक्किम में बादल फटने के बाद आई बाढ़ की तबाही के वीडियोज लगातार वायरल हो रहे हैं. इसमें अबतक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग अभी भी लापता हैं जिनमें भारतीय सेना के 22 जवान भी शामिल हैं. 

DNA: क्या सिक्किम में बादल फटने के बाद मची तबाही के लिए नेपाल में आया भूकंप जिम्मेदार? जानें पूरा सच

Sikkim Flood: क्या सिक्किम में बादल फटने के बाद मची तबाही के लिए नेपाल में आया भूकंप जिम्मेदार है? सुनने में ये अजीब सी बात लगती है. लेकिन ये दावा हम नहीं कर रहे बल्कि भू-वैज्ञानिकों ने किया है. आज हम इसी दावे का DNA टेस्ट कर रहे हैं. 

मंगलवार को सिक्किम में बादल फटने के बाद आई बाढ़ की तबाही के वीडियोज लगातार वायरल हो रहे हैं. इसमें अबतक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग अभी भी लापता हैं जिनमें भारतीय सेना के 22 जवान भी शामिल हैं. 

इनके जिंदा बचे होने की संभावना बेहद कम मानी जा रही है. 54 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से बहते बाढ़ के पानी में सिक्किम को देश से जोड़ने वाला नेशनल हाइवे 10 भी बह गया. कई पुल और हाइड्रो पावर प्लांट भी बर्बाद हो गए. 

बाढ़ में तबाह हुआ आर्मी कैंप

उस आर्मी कैंप की तस्वीरें भी सामने आई हैं,  जो सिक्किम की ल्होनक झील के बेहद पास स्थित था. बादल फटने के बाद ल्होनक झील भी टूटी और फिर जो फ्लैश फ्लड आया, उसने सबसे पहले सेना के इसी कैंप को अपना शिकार बनाया था. पूरा का पूरा आर्मी कैंप बाढ़ में बह गया. वहां खड़ीं सेना की गाड़ियां भी डूब गईं. बाढ़ का पानी निकल जाने के बाद इन गाड़ियों की हालत देखिए, जो बिल्कुल कबाड़ हो चुकी हैं. चारों तरफ सिर्फ मलबा ही मलबा दिख रहा है. इसी कैंप में मौजूद 22 जवान लापता बताए जा रहे हैं.

वीडियोज को देखें तो मालूम पड़ता है कि सिक्किम में आई ये आपदा कितनी बड़ी और भयानक थी. लेकिन ये आपदा आई क्यों ? और इस आपदा से इतनी तबाही कैसे मच गई ? इसको लेकर वैज्ञानिकों ने एक क्रोनोलॉजी बताई है. 

3 अक्टूबर दोपहर करीब तीन बजे 6.2 तीव्रता का भूकंप आया, जिसका केंद्र नेपाल में जमीन से सिर्फ 5 किलोमीटर नीचे था. भूकंप की वजह से सिक्किम की ल्होनक झील सिकुड़ गई और उसका दायरा एक तिहाई रह गया. इसके बाद 3 अक्टूबर की रात करीब डेढ़ बजे सिक्किम में ल्होनक झील के ऊपर बादल फटा तो ल्होनक झील बादल फटने से एक साथ बरसा इतना पानी रोक नहीं पाई.

झील फटने से आ गई बाढ़

इस वजह से Glacial Lake Outburst Flood हुआ, यानी झील फटने से बाढ़ आ गई.  झील से निकले पानी की वजह से तीस्ता नदी का जलस्तर एकदम 15 से 20 फीट तक बढ़ गया, जिसने सिक्किम में इतनी तबाही मचाई.

लेकिन अब सोचने वाली बात ये है कि नेपाल में जो भूकंप आया, सिक्किम उसके तीव्रता क्षेत्र में था ही नहीं. यानी भूकंप का असर सिक्किम पर पड़ा ही नहीं था तो फिर वैज्ञानिक किस आधार पर दावा कर रहे हैं कि सिक्किम में फ्लैश फ्लड के लिए नेपाल में आया भूकंप जिम्मेदार है ? इस दावे का आधार है वो सैटेलाइट तस्वीरें जो ISRO ने जारी की हैं.

तीनों सेटेलाइट तस्वीरें सिक्किम में ल्होनक झील की हैं. पहली तस्वीर में दिख रहा है कि 17 सितंबर को झील करीब 162.7 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई थी. दूसरी तस्वीर में झील का साइज थोड़ा बढ़ गया. 28 सितंबर की तस्वीर में झील का कुल क्षेत्रफल बढ़कर 167.4 हेक्टेयर हो गया.

ISRO ने जारी कीं सैटेलाइट तस्वीरें

लेकिन बादल फटने के बाद 4 अक्टूबर की जो सेटेलाइट तस्वीर ISRO ने जारी की है, उसमें झील का क्षेत्रफल सिर्फ 60.3 हेक्टेयर ही रह गया है.  इन तस्वीरों को देखकर पता चलता है कि बादल फटने से पहले जो झील करीब 168 हेक्टेयर में फैली थी, बादल फटने के बाद वो सिमटकर सिर्फ 60 हेक्टेयर में रह गई. यानी झील का 100 हेक्टेयर इलाका टूट गया. 

लेकिन अब सवाल ये है कि झील के टूटने की वजह, नेपाल में आया भूकंप ही था, ये कैसे कहा जा सकता है. क्योंकि 3 सितंबर की दोपहर में भूकंप आने के बाद की कोई सैटेलाइट इमेज नहीं है, जिससे ये साबित हो कि भूकंप की वजह से ही झील सिकुड़ी थी.

न्यूज एजेंसी PTI को केंद्रीय जल आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसको लेकर एक्सप्लेनेशन दिया है. उन्होंने कहा है कि नेपाल में आया भूकंप सिक्किम में अचानक आई बाढ़ का कारण हो सकता है. झील पहले से ही असुरक्षित थी और 168 हेक्टेयर में फैली हुई थी. इसका क्षेत्रफल अब कम होकर 60 हेक्टेयर हो गया है. हालांकि अभी ये पता लगाना मुश्किल है लेकिन सिर्फ बादल फटने से ऐसे नतीजे नहीं आते. घटनास्थल पर गए कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप के कारण वहां बाढ़ आई होगी.

वैज्ञानिकों ने जताई आशंका

यानी वैज्ञानिकों ने सिर्फ आशंका जताई है कि नेपाल में आए भूकंप और सिक्किम में झील टूटने से मची तबाही के बीच संबंध हो सकता है और ये आशंका सही हो, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है.

नेपाल में आए भूकंप की वजह से सिक्किम में तबाही मचने वाली थ्योरी सिर्फ एक दावा है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि वैज्ञानिकों ने इतनी बड़ी आशंका, बिना किसी पुख्ता वैज्ञानिक जांच के ही जता दी. लेकिन अब सवाल फिर वही है कि बादल फटने से ल्होनक झील क्यों फट गई?

5200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ल्होनक झील, ल्होनक ग्लेशियर के पिघलने की वजह से बनी थी. ऐसी झीलों को ग्लेशियल लेक्स भी कहा जाता है, जिनका क्षेत्रफल, ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार से बढ़ता जाता है.  और किसी वजह से जब ये झीलें फटती हैं तो इनमें जमा पानी, पहाड़ों के मलबे के साथ नीचे की तरफ गिरता है. ल्होनक झील के साथ भी यही हुआ है. बादल फटने की वजह से झील ओवरफ्लो  हो गई, इसे ही आम भाषा में झील का फटना बोलते हैं.

आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि 3 अक्टूबर की रात को ल्होनक झील फटी और इतनी तबाही मची, उसकी चेतावनी तो वैज्ञानिकों ने दो वर्ष पहले ही दे दी थी और बताया था कि ल्होनक झील कभी भी फट सकती है. 

वर्ष 2021 में साइंस डायरेक्ट जर्नल में एक स्टडी रिपोर्ट छपी थी, जिसमें कहा गया था कि ल्होनक झील में कभी भी ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स हो सकता है क्योंकि ग्लेशियर पिघलने की वजह से इस झील में पानी बढ़ता जा रहा है.

11 साल में 400 मीटर कम हो गया ग्लेशियर

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2008 से 2019 के दौरान, सिर्फ 11 वर्षों में ल्होनक ग्लेशियर करीब 400 मीटर कम हो गया था.

Glacial Lake Evolution नाम की स्टडी रिपोर्ट में पता चला कि ग्लेशियर के पिघलने और अन्य प्राकृतिक बदलावों की वजह से साल 1962 से 2018 के बीच ल्होनक झील का क्षेत्रफल चौहत्रर वर्ग किलोमीटर बढ़ चुका है.

फरवरी 2013 में आई एक और रिपोर्ट में सैटेलाइट इमेज का विश्लेषण करके बताया गया है कि वर्ष 1977 में ल्होनक झील का क्षेत्रफल सिर्फ 17.54 हेक्टेयर था. ताजा सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि सितंबर 2023 में इस झील का दायरा बढ़कर 167 हेक्टेयर से ज्यादा हो चुका है. 

यानी ल्होनक झील के फटने की आशंका कई वर्षों से जताई जा रही थी. साल 2014 में तो सिक्किम सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट ने झील को फटने से बचाने के लिए जल्द से जल्द उपाय करने की सलाह भी दी थी लेकिन तमाम रिसर्च रिपोर्ट में जताए गए खतरों को नजरअंदाज करने का ही नतीजा है कि आखिरकार जिसका डर था, वो हो गया.

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