Trending Photos
नई दिल्ली : सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि उसे इतालवी मरीन मासिमिलियाना लातोरे की जमानत की शर्तों में बदलाव की मांग वाली इटली की नई याचिका पर कोई आपत्ति नहीं है। शर्तों में बदलाव से लातोरे तब तक इटली में रहेगा जब तक एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण फैसला नहीं कर लेता कि दो भारतीय मछुआरों की हत्या के मामले में मुकदमा चलाने का अधिकार किस देश को है।
जब मामला सुनवाई के लिए आया तो न्यायमूर्ति ए आर दवे की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि क्या सरकार ने याचिका पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है।
इस पर अतिरिक्त सालिसिटर जनरल पी एस नरसिंहा ने कहा कि उन्हें निर्देश प्राप्त हैं कि कोई आपत्ति नहीं हैं और उसी तरह की शर्तें लागू की जा सकती हैं जैसा एक अन्य मरीन साल्वातोर गिरोने के मामले में किया गया था। वह भी इटली में है।
हालांकि पीठ ने कहा कि वह केंद्र का उचित जवाब चाहेगी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 सितंबर की तारीख तय की। पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय भी हैं।
अदालत के पहले के आदेश के अनुसार लातोरे को इटली में रहने के लिए दी गयी राहत 30 सितंबर को समाप्त हो रही है।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान केरल के दोनों मछुआरों के परिवारों की ओर से पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राणा मुखर्जी ने याचिका पर सुनवाई का विरोध करते हुए कहा कि उन्हें आवेदन की प्रति नहीं दी गयी है।
केरल सरकार ने यह भी कहा कि राहत का इस तरह का आदेश नहीं होना चाहिए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही 2019 से पहले पूरी होने की कोई गुंजाइश नहीं है।
एएसजी ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही में एक या दो साल लगेंगे और अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने भी साफ किया है कि दोनों मरीन भारत के उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं जो जमानत देने पर निर्णय ले सकता है।
इटली के वकील ने मरीन की ओर से पीठ का ध्यान एएसजी की दलील की ओर आकर्षित किया जिन्हें ये निर्देश प्राप्त हैं कि केंद्र को लातोरे की जमानत शर्त में बदलाव में कोई आपत्ति नहीं है। शीर्ष अदालत ने आठ सितंबर को मरीन लातोरे की ओर से दाखिल इटली की याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया था। लातोरे ने इस आधार पर फौरन सुनवाई की मांग की थी कि पहले का अदालत का एक आदेश इस साल 30 सितंबर तक वैध है।
गिरोने की जमानत शर्तों में 26 मई को ढील देते हुए शीर्ष अदालत ने उसे तब तक के लिए अपने देश जाने की अनुमति दी थी जब तक भारत और नौसेना के बीच न्याय-क्षेत्र के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में फैसला नहीं हो जाता।