Hijab Row: कर्नाटक के हिजाब मामले में सुनवाई हुई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
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Hijab Row: कर्नाटक के हिजाब मामले में सुनवाई हुई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

Karnataka hijab row 2022: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कर्नाटक के हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Row) को लेकर कई दिनों से सुनवाई चल रही थी. आज इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. 

Hijab Row: कर्नाटक के हिजाब मामले में सुनवाई हुई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

Supreme Court on Hijab row: करीब 10 दिन तक चली लंबी सुनवाई के बाद कर्नाटक हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. इस दौरान कोर्ट ने हिजाब समर्थक पक्ष के 20 से ज़्यादा वकीलों,कर्नाटक सरकार , शिक्षकों की ओर से पेश वकीलों की दलीलों को सुना. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुंधाशु धुलिया की बेंच ने फैसला सुरक्षित करते वक़्त कहा कि अब वक़्त आ गया है कि हम अपना होम वर्क करें.

SC में मसला कैसे पहुंचा

याचिकाकर्ताओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म के पालन का राज्य का आदेश सही है. इसके अलावा कुछ याचिकाकर्ताओं ने हिजाब पहनने को मुस्लिम लड़कियों का अधिकार बताते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

हिजाब समर्थक पक्ष के वकीलों की दलील

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन, दुष्यंत दवे, ए एम दार, सजंय हेगड़े, मीनाक्षी अरोरा, हुजेफा अहमदी, देवदत्त कामत,कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, कॉलिन गोंजाल्विस समेत 20 से ज़्यादा वकीलों ने दलील की. इनमें से कुछ ने ये मसला संविधान पीठ को भेजने की मांग की. हिजाब समर्थक वकीलों का यह कहना था कि कोर्ट को ये तय करने के बजाए कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य धार्मिक परम्परा है या नहीं, इसे सिर्फ महिलाओं के अधिकार के तौर पर देखना चाहिए. कुछ लोगों के लिए हिजाब अनिवार्य परंपरा हो सकता है, कुछ के लिए नहीं, लेकिन अगर कोई धार्मिक परंपरा अनिवार्य परंपरा नहीं है तो इसका मतलब ये नहीं कि सरकार उस पर प्रतिबंध लगा दे. मूल अधिकारों पर वाजिब प्रतिबंध हो सकते है लेकिन ये तभी सम्भव है जब यह कानून-व्यवस्था ,नैतिकता या स्वास्थ्य के विरुद्ध हो।यहां लड़कियों का हिजाब पहनना न तो कानून-व्यवस्था के खिलाफ है, न ही नैतिकता और स्वास्थ्य. 

वकीलों ने दलील दी कि कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर बैन के बाद अभी तक 17 हज़ार छात्राएं स्कूल छोड़ चुकी है.  ये लड़कियां तमाम तरह के सामाजिक बन्धनों को तोड़कर स्कूल तक पहुंची है. अगर हिजाब पर बैन जारी रहा, तो वो फिर से मदरसे जाने के लिए मज़बूर होगी. हिजाब समर्थक पक्ष के वकीलों का कहना था कि सरकार अगर भगवा शॉल पहनने पर अड़े छात्रों के विरोध का हवाला देकर हिजाब पर बैन लगाती है, तो ये ग़लत है. ये अराजकता फैला रहे छात्रों को बढ़ावा देना होगा. ये तो स्कूल की जिम्मेदारी है कि वो ऐसा माहौल तैयार करें जहां छात्राएं अपने मूल अधिकारों का स्वतंत्र होकर इस्तेमाल कर सके.  

वकीलों ने दलील दी कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने कुरान की ग़लत व्याख्या की है. अदालतों को कुरान की सही सन्दर्भ में व्याख्या के लिए विशेषज्ञता हासिल नहीं है लिहाजा कोर्ट को इस बहस में जाने से बचना चाहिए.

सरकार की दलील

कर्नाटक सरकार की ओर से SG तुषार मेहता, ASG के एम नटराज, कर्नाटक एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवाडगी ने दलील रखी. सरकार ने  कहा कि उसने अपनी तरफ से स्कूल / कॉलेज में कोई ड्रेस कोड तय नहीं किया, बल्कि हर शैक्षणिक संस्थान को ये अधिकार दिया कि वो अपने ड्रेस कोड ख़ुद तय कर सकते है. ऐसे में कुछ संस्थानो ने हिजाब को बैन कर दिया.

सरकार का यह भी कहना था कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है. कुरान शरीफ में लिखी हर बात धार्मिक है, पर वो इस्लाम के अनुयायियों के लिए अनिवार्य धार्मिक परम्परा भी हो, ये ज़रूरी नहीं है।.अगर हिजाब का  कुरान शरीफ में उल्लेख हुआ भी है, तो इसी  जिक्र भर से वो अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं हो जाती.

SG तुषार मेहता ने इस पूरे विवाद के पीछे PFI को जिम्मेदार ठहरा दिया. उन्होंने कहा कि2021 के पहले हिजाब को लेकर कोई विवाद नहीं था. हिज़ाब विवाद के पीछे पीएफआई की सोची समझी साजिश है.2022 पीएफआई ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर छात्रों को हिजाब पहनने के लिए उकसाया. इसके लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया गया. छात्राएं वही कह रही है,जो उन्हे समझाया गया है. 

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