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नई दिल्ली: तालिबान (Taliban) की नई सरकार में नया कुछ भी नहीं है. ये सरकार पिछली सरकार के जैसी ही है. 33 सदस्यों वाली इस सरकार में प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री तक पिछली सरकार में काम कर चुके हैं. इसलिए जो देश ऐसा सोच रहे हैं कि ये नई तरह की सरकार है और इसकी सोच बदली हुई होगी, वो बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं. खास तौर पर पश्चिमी देशों को ये समझना चाहिए कि इन्हीं आतंकवादियों की सरकार ने वर्ष 1996 से 2001 के बीच अमेरिका में 9/11 हमला करने के लिए अल कायदा की मदद की थी और कई देशों में भी जिहाद के नाम पर आतंकवादी हमले किए थे.
काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान (Taliban) ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दुनिया को ये भरोसा दिया था कि इस बार वो एक ऐसी सरकार का गठन करेगा, जिसमें सभी समुदाय और अलग-अलग वर्गों को जगह मिलेगी. लेकिन इस सरकार में ना तो कोई महिला मंत्री है और 33 में 30 मंत्री अकेले पश्तून समुदाय से हैं. इसमें दुनिया के लिए सीख ये है कि वो तालिबान की सरकार को अफगानिस्तान (Afghanistan) की नई सरकार मानने की भूल ना करे. ये सरकार कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधार से प्रेरित है और इसके पास भविष्य के लिए जो रोडमैप है, वो अफगानिस्तान को जिहाद के रास्ते पर ही लेकर जाएगा.
इस सरकार में 33 में से 17 आतंकवादी ऐसे हैं, जो संयुक्त राष्ट्र की Sanction List में हैं लेकिन इसे विरोधाभास ही कहेंगे कि इसी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य देशों में से दो देश चीन और Russia तालिबान के साथ हैं. अब अगर आने वाले दिनों में ये दोनों देश इस सरकार को मान्यता देते हैं तो इससे इस Sanction List की ताकत एक कागज के टुकड़े जैसी रह जाएगी. इससे ये भी साबित हो जाएगा कि संयुक्त राष्ट्र दुनिया की सबसे कमजोर अंतरराष्ट्रीय संस्था है.
अगर तालिबान सरकार को चीन और Russia ने समर्थन दिया तो संयुक्त राष्ट्र में तालिबान के खिलाफ कभी कोई प्रस्ताव पास नहीं होगा. दुनिया के 190 देशों ने अगर तालिबान के खिलाफ कोई प्रस्ताव रखा तो चीन और Russia अपनी Veto Power से तालिबान को बचा लेंगे. चीन तो ऐसा पाकिस्तान के लिए कई बार कर भी चुका है. इसलिए उसे इसमें ज्यादा दिक्कत भी नहीं होगा.
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तालिबान में शरिया कानून को अब सख्ती से लागू किया जाएगा और ऐसा होने पर दुनिया को अफगानिस्तान की एक करोड़ 80 लाख महिलाओं पर अत्याचार होते हुए देखना होगा. ये पश्चिमी देशों के मुंह पर सबसे बड़ा तमाचा होगा, जो महिलाओं और मानव अधिकारों की बातें करते हैं और इसके लिए दुनिया के दूसरे देशों को सर्टिफिकेट बांटते हैं.
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तालिबान द्वारा सरकार गठन के ऐलान के बाद अब दुनिया आतंकवाद के नए युग में पहुंच गई है, जहां आतंकवाद को स्वीकृति भी मिल रही है और आतंकवादी सरकार भी बना रहे हैं. ये लोकतांत्रित व्यवस्था वाले देशों के लिए एक भद्दा मजाक तो है ही साथ ही उनके लिए अब ये चुनौती भी है. ऐसे आतंकवादियों की सरकारें जिहाद और इस्लाम के नाम पर लोकतंत्र के वजूद को कमजोर करेंगी और दुनिया शायद ये भी चुपचाप देखती रहेगी, जैसा कि अब तक अफगानिस्तान में हुआ है.