भारत-चीन अनायास ही नहीं आए सामने, 200 साल पुरानी कहानी में छिपा है 'राज'
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भारत-चीन अनायास ही नहीं आए सामने, 200 साल पुरानी कहानी में छिपा है 'राज'

भारत और चीन की सेनाएं जिस गलवान घाटी में आमने-सामने हैं, वो अक्साई चिन का बाहरी हिस्सा है. चीन न कोई लाइन मानता है और ना नक्शा.

भारत-चीन अनायास ही नहीं आए सामने, 200 साल पुरानी कहानी में छिपा है 'राज'

नई दिल्ली: लद्दाख (ladakh) में भारत और चीन की सेनाएं (India-china faceoff) जिस गलवान घाटी में आमने-सामने हैं, वो अक्साई चिन (Axai chin) का बाहरी हिस्सा है. गलवान नदी अक्साई चिन से होकर बहती है और उसे पारकर श्योक नदी से मिलती है. अक्साई चिन के विवाद को भारत और चीन के बीच सबसे मुश्किल मुद्दा माना जाता है. उसे सुलझाने में भारत और चीन के कई राजवंश नाकाम रहे हैं. इसकी वजह इसकी बेहद महत्वपूर्ण भौगोलिक परिस्थिति है.

अक्साई चिन से होकर ही तिब्बत से चीन के सबसे पश्चिमी प्रांत जिनजियांग तक जाया जा सकता है. जिनजियांग के उइगर मुसलमान हमेशा से ही चीन की सत्ता के विरोध में खड़े रहे. भारत के लिए ये काराकोरम दर्रे तक पहुंचने के सबसे आसान रास्ता है, जहां से मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए सदियों से कारवां गुजरते रहे हैं. दौलतबेग ओल्डी, हाजी लंगर जैसे नाम की जगहें. ये स्थान मध्य-पूर्व के रिश्ते की याद दिलाते हैं. 

अक्साई चिन का सबसे निचला हिस्सा 14000 फीट की ऊंचाई पर है और सबसे ऊंचा 22500 फीट की ऊंचाई पर है. ये इलाका 37244 वर्ग किमी में फैला हुआ है लेकिन इसके ज्यादातर हिस्से में कोई नहीं रहता है. यहां के मैदान में कई नमक की झीलें और सोडा के मैदान हैं यानी यहां किसी तरह की वनस्पति नहीं उग सकती है लेकिन रणनैतिक रूप से ये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से गुजरकर सदियों से कारवां आते-जाते थे और यहां से तिब्बत जाने का रास्ता है. 

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1834 में लद्दाख को जीतकर सिख साम्राज्य में मिला लिया गया लेकिन 1846 में सिखों को अंग्रेजों ने हरा दिया और लद्दाख डोगरों के जम्मू साम्राज्य का हिस्सा बन गया. लेकिन लद्दाख के रणनैतिक महत्व को अंग्रेज समझते थे और रूस को एशिया में आगे बढ़ने से रोकने के लिए उन्हें इस जगह की बहुत ज्यादा जरूरत थी. इसलिए लद्दाख में अंग्रेजों अपनी पकड़ मजबूत रखी.  

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1865 में सर्वे ऑफ इंडिया के एक अधिकारी डब्ल्यूएच जॉनसन ने तिब्बत के साथ सीमा का एक नक्शा बनाया जिसमें अक्साई-चिन का पूरा हिस्सा जम्मू-कश्मीर में दिखाया गया था. जम्मू-कश्मीर के राजा ने इस इलाके में अपने किले बनाए थे जहां से वे आने-जाने वाले कारवां को सुरक्षा देते थे. इस नक्शे पर चीन में उस समय राज कर रहे क्विंग साम्राज्य को कभी भी एतराज नहीं रहा. 1911 में चीन की क्रांति के बाद क्विंग साम्राज्य का पतन हो गया और सन यात सेन के नेतृत्व में रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई. इस समय भी अक्साई चिन को लेकर चीन ने कोई विवाद नहीं किया. 

यहां तक कि 1917 से 1933 तक चीनी सरकार द्वारा पैकिंग में छपे हुए पोस्टल एटलस ऑफ चाइना में भी जॉनसन लाइन को माना गया और अक्साई चिन को भारत का हिस्सा माना गया। 1925 में पेकिंग यूनिवर्सिटी एटलस में भी अक्साई चिन भारत में ही दिखाया गया था. इस इलाके के बहुत दुर्गम होने के कारण ब्रिटिश सेना ने कभी यहां स्थाई सैनिक तैनात किए. ये स्थिति भारत की आज़ादी तक चलती रही और आजाद भारत में भी अक्साई चिन को भारत का ही हिस्सा माना गया जैसा पहले था. 

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1958 में चीन ने अक्साई चीन को अपने इलाके में दिखाया
50 के दशक में चीन ने अक्साई चिन से होकर एक सड़क बनाई जो तिब्बत को जिनजियांग  प्रांत से जोड़ती थी. इस 1200 किमी लंबी सड़क का 179 किमी हिस्सा जॉनसन लाइन के दक्षिण में यानि भारत के इलाके में पड़ता था. उस समय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को चीन की मित्रता पर बहुत भरोसा था और अक्साई चिन में भारतीय सेना की गश्त बहुत कम होती थी. 1957 में एक भारतीय गश्ती दल को इस सड़क के बारे में पता चला और 1958 में छपे चीनी नक्शे में अक्साई चीन को चीनी इलाके में दिखाना शुरू कर दिया गया. 

1959 में चीनी सैनिकों ने भारतीय गश्ती पर किया हमला
20 अक्टूबर 1959 को अक्साई चिन के कोंगका ला पर भारतीय गश्ती पर चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया. इस झड़प में 9 भारतीय सैनिक शहीद हो गए, 3 जख्मी हुए और 7 को चीनियों ने बंदी बना लिया. इस घटना ने भारत औऱ चीन के बीच तनाव बढ़ा दिया. इसके बाद 1960 में चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाइ की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नेहरू के साथ हुई बैठकों में अक्साई चिन पर कोई समझौता नहीं हो पाया. 

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गलवान घाटी में अपने हिसाब से नक्शा बदलने की कोशिश में चीन
इसके बाद 1961 में भारतीय सेना ने हिमालय के दुर्गम इलाकों में सेना की गश्त को बड़े पैमाने पर करना शुरू किया जिसे फॉरवर्ड पॉलिसी कहा गया. इसके बाद अक्टूबर 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया. 1962 के युद्ध के बाद भी चीन कई जगहों पर वापस अपनी सीमा में नहीं गया. अक्साई चिन में भी चीन उस जगह तक ही वापस लौटा था, जहां वो 1960 में था यानी 1958 के दावे वाली सीमा तक ही जिसे चाइनीज क्लेम लाइन कहते हैं. चीन की क्लेम लाइन में गलवान घाटी भी आती है और पेंगांग झील का पूरा किनारा भी. इसलिए जब भी चीन पेंगांग झील के फिंगर एरिया में आगे बढ़ने की कोशिश करेगा तो वो साथ-साथ गलवान घाटी में भी अपने हिसाब से नक्शा बदलने की कोशिश कर रहा होगा. 

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