Krishna Godavari Basin: NIO ने कृष्णा-गोदावरी बेसिन में समुद्र तल पर बड़ा भूस्खलन खोजा है, जो 950 मीटर से 1.1 किमी गहराई तक फैला है. इससे 11 क्यूबिक किमी तलछट विस्थापित हुई, जो 44 लाख स्विमिंग पूल और 10,000 फुटबॉल मैदानों के बराबर क्षेत्र को कवर करती है. यह घटना संरचनाओं और तटीय इलाकों के लिए खतरा बन सकती है.
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Krishna Godavari Basin: गोवा में मौजूद राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) ने कहा कि कृष्णा-गोदावरी बेसिन में हाल ही में पाया गया भूस्खलन समुद्र की सतह से 950 मीटर से 1.1 किमी नीचे तक पहुंच गया है. ऐसा होने से पानी के नीचे की संरचनाओं के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है. NIO के डायरेक्टर सुनील कुमार सिंह ने TOI को बताया,'भारी जमीन खिसकने से बड़ी तादाद में पानी और नीचे की तलछट विस्थापित हो सकती है, जिससे सुनामी आ सकती है.'
NIO के वैज्ञानिकों ने कहा कि बंगाल की खाड़ी में भूस्खलन 2009 से 2015 के बीच कभी भी होने की उम्मीद है. NIO ने कहा,'इससे पानी के नीचे संचार केबल और तेल रिग के साथ-साथ तट पर रहने वाले लोगों को भी बड़ा खतरा है.' वैज्ञानिकों का मानना है कि जब जमीन खिसकी तो इससे समुद्र तल का एक बड़ा हिस्सा ढह गया और लगभग 11 क्यूबिक किलोमीटर तलछट बह गई - जो लगभग 44 लाख ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल भरने के बराबर है.
NIO ने कहा कि कुछ जगहों पर भूस्खलन जमा 60 मीटर तक मोटा है. इस विशाल जलमग्न भूस्खलन, जिसे मास ट्रांसपोर्ट डिपॉजिट (एमटीडी) के तौर पर जाना जाता है, ने समुद्र तल पर एक बड़े पंखे के आकार का जमाव बना दिया है. एमटीडी के ज़रिए कवर किया गया इलाका लगभग 70 वर्ग किलोमीटर है, लगभग 10 हजार फुटबॉल मैदानों के बराबर है. एनआईओ ने कहा कि भूस्खलन को विशेष उपकरणों का उपयोग करके खोजा गया था जो समय के साथ समुद्र तल में परिवर्तनों को ट्रैक करते हैं और यह समुद्र के इस हिस्से में अब तक पाए गए सबसे बड़े जलमग्न ढलान विफलताओं में से एक था.
वैज्ञानिकों का मानना है कि जमीन खिसकने की कई वजहें हो सकती हैं. एक महत्वपूर्ण कारण चक्रवात हेलेन हो सकता है, जो नवंबर 2013 में इस इलाके में आया एक श्रेणी-1 तूफान है. चक्रवात की ताकतवर हवाओं और मजबूत लहरों ने पतन को ट्रिगर किया हो सकता है. अन्य संभावित वजहों में 2010 और 2013 में ज्यादा सैलाब की घटनाएं और मई 2014 में बंगाल की खाड़ी को हिला देने वाला 6 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि चक्रवात भारी बारिश और भूकंप जैसी घटनाएं जो अपने आप में छोटी लगती हैं, वे भी बड़े पैमाने पर जलमग्न भूस्खलन को ट्रिगर कर सकती हैं, खासकर अगर समुद्र तल की तलछट पहले से ही कमजोर हो. वैज्ञानिक अब पानी के नीचे के खतरों को बेहतर ढंग से समझने और पूर्वानुमान लगाने के लिए केजी बेसिन जैसे इलाकों में ज्यादा रिसर्च और निगरानी की बात कह रहे हैं.