जजों के रिश्तेदार अब नहीं बनेंगे मी लॉर्ड! SC कॉलेजियम उठा सकता है ऐतिहासिक कदम; क्या कुछ बदलेगा?
Advertisement
trendingNow12580350

जजों के रिश्तेदार अब नहीं बनेंगे मी लॉर्ड! SC कॉलेजियम उठा सकता है ऐतिहासिक कदम; क्या कुछ बदलेगा?

SC Collegium Meets Lawyers and Judicial Officers for Judgeship: भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कॉलेजियम सिस्टम की पारदर्शिता को लेकर देश में कई बार सवाल उठे हैं. केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच जमकर तकरार भी हुई है. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पहली बार ऐसा कदम उठाया है जिससे आने वाले दिनों में जजों के रिश्तेदार लोग अब जज नहीं बन सकते. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला.

जजों के रिश्तेदार अब नहीं बनेंगे मी लॉर्ड! SC कॉलेजियम उठा सकता है ऐतिहासिक कदम; क्या कुछ बदलेगा?

SC Collegium: 'जज का बेटा जज ही बनेगा'... इस तरह की आप सबने खूब लाइनें सुनी होगी. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर अक्सर ऐसी धारणा अकसर बनाई जाती रही है कि पहली पीढ़ी के वकीलों को चयन प्रक्रिया में तवज्जो नहीं दी जाती. इसकी बजाय ऐसे लोगों को जज के तौर पर प्रमोट किया जाता है, जो दूसरी पीढ़ी के वकील हों और उनके परिजन पहले से जज हों. अब इस धारणा को खत्म करने की पहल कॉलेजियम की ओर से हो सकती है. बताया तो यह भी जा रहा है कि अब  कॉलेजियम ऐसे लोगों के नामों को आगे बढ़ाने से परहेज करेगा, जिनकी परिजन या रिश्तेदार पहले से हाई कोर्ट या फिर उससे उच्चतम न्यायालय के जज हों. तो आइए जानते हैं पूरी खबर.

पहली बार कॉलेजियम ने कौन सा उठाया कदम
पहली बार मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति कांत वाले कॉलेजियम ने पहली बार हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के साथ बातचीत शुरू की है, ताकि उनकी उपयुक्तता का परीक्षण किया जा सके और उनकी क्षमता और योग्यता का आकलन किया जा सके. शीर्ष तीन न्यायाधीशों ने इलाहाबाद, बॉम्बे और राजस्थान उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित लोगों के साथ बातचीत की और 22 दिसंबर को केंद्र को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य समझे जाने वाले नामों को अग्रेषित किया.

इसके पहले क्या होता था?
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम केवल उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा प्रस्तुत वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के विस्तृत बायोडेटा, उनके पिछले जीवन पर खुफिया रिपोर्ट, साथ ही संबंधित राज्यपालों और सीएम की राय के आधार पर काम करता था. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने TOI को बताया कि अनुशंसित उम्मीदवारों के साथ व्यक्तिगत बातचीत से उनके व्यवहार और न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए उनकी उपयुक्तता का सीधे तौर पर आकलन करने में मदद मिली.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कौन सा उठाया ऐतिहासिक कदम?
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, कॉलेजियम के एक न्यायाधीश ने हाल ही में हाई कोर्ट कॉलेजियम को निर्देश देने का विचार पेश किया कि वे ऐसे वकीलों या न्यायिक अधिकारियों की सिफारिश न करें जिनके माता-पिता या करीबी रिश्तेदार सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज थे/हैं, उन्हें हाई कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित न करें. इस प्रस्ताव को कुछ अन्य लोगों ने तुरंत पसंद किया और तब से कॉलेजियम के अन्य सदस्यों, जिसमें सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई, सूर्यकांत, ऋषिकेश रॉय और ए एस ओका शामिल हैं. 

क्यों होने लगी बहस? किसे मिलेगा फायदा
जिसके बाद से सीजेआई के बीच खुलकर बहस हो रही है. किसी की राय है कि इस सिस्टम से कुछ योग्य उम्मीदवार, जो वर्तमान या भूतपूर्व सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के करीबी रिश्तेदार हैं, वे इसका नुकसान उठा सकते है, लेकिन कुछ को लगता है कि इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि वे सफल वकील बनकर पैसा और प्रसिद्धि कमा सकते हैं, जबकि चयन प्रक्रिया से उनके बाहर होने से कई योग्य प्रथम पीढ़ी के वकीलों को संवैधानिक न्यायालयों में प्रवेश करने का अवसर मिलेगा, जिससे वकीलों की संख्या बढ़ेगी और बदले में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में विविध समुदायों का प्रतिनिधित्व हो सकेगा. यदि ऐसा हुआ तो फिर जजों का चयन करने वाली कॉलेजियम की प्रक्रिया में यह बड़ा बदलाव होगा. बता दें कि जजों में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जिनका कोई फैमिली मेंबर या फिर रिश्तेदार पहले भी लीगल प्रोफेशन से जुड़े रहे हैं.

Trending news