डॉ केदारनाथ सिंह के प्रमुख कविता संग्रहों में 'अभी बिल्कुल अभी', 'जमीन पक रही है', 'यहां से देखो', 'बाघ', 'अकाल में सारस', 'उत्तर कबीर और अन्य कविताएं'. 'तालस्ताय और साइकिल' तथा 'सृष्टि पर पहरा' चर्चा में रहे हैं.
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नई दिल्लीः हिन्दी की समकालीन कविता और आलोचना के सशक्त हस्ताक्षर और अज्ञेय के तीसरा सप्तक के प्रमुख कवि डॉ. केदारनाथ सिंह का सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया.पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि डॉ. केदारनाथ सिंह को करीब डेढ़ माह पहले कोलकाता में निमोनिया हो गया था. इसके बाद से वह बीमार चल रहे थे. पेट के संक्रमण के चलते उनका सोमवार रात करीब पौने नौ बजे एम्स में निधन हो गया. डॉ. केदारनाथ सिंह 84 वर्ष के थे. उनके परिवार में एक पुत्र और पांच पुत्रियां हैं. मंगलवार 20 मार्च को दोपहर तीन बजे दिल्ली के लोधी रोड श्मशान भूमि में उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा. डॉ केदारनाथ सिंह की कविताओं का अंग्रेजी, रूसी, इटैलियन और हंगरी समेत दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है.
डॉ.सिंह के निधन पर शोक जाहिर करते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया, "सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार केदारनाथ सिंह जी के निधन के समाचार से मुझे गहरी वेदना की अनुभूति हुई है. सरल भाषा में जीवन की जटिलताओं की अभिव्यक्ति करने की उनकी अनूठी शैली थी. उनके निधन से हिंदी जगत का एक सशक्त हस्ताक्षर मिट गया है. ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें."
सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार केदारनाथ सिंह जी के निधन के समाचार से मुझे गहरी वेदना की अनुभूति हुई है। सरल भाषा में जीवन की जटिलताओं की अभिव्यक्ति करने की उनकी अनूठी शैली थी। उनके निधन से हिंदी जगत का एक सशक्त हस्ताक्षर मिट गया है. ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) March 19, 2018
बलिया में हुआ जन्म, JNU बनी कर्मभूमि
केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1934 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में हुआ था. उन्होंने बीएचयू से हिंदी में एमए तथा पीएचडी की उपाधि हासिल की. केदारनाथ सिंह ने अध्यापक के रूप में करियर की शुरुआत उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी से की थी. उन्होंने सेंट एंड्रयूज कॉलेज, गोरखपुर और उदित नारायण कॉलेज, पडरौना में भी अध्यापन किया. 1976 से 1999 तक दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विवि के भारतीय भाषा केंद्र में अध्यापन किया.वह जेएनयू में भारतीय भाषा केंद्र में बतौर विभागाध्यक्ष रहे हैं.
1960 में प्रकाशित हुए पहला कविता संग्रह
डॉ.सिंह का पहला कविता संग्रह 'अभी बिल्कुल अभी' साल1960 में प्रकाशित हुआ था. डॉ.केदारनाथ सिंह को ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार और व्यास सम्मान सहित कई सम्मानों से पुरस्कृत किया गया था. उनके प्रमुख कविता संग्रहों में ‘अभी बिलकुल अभी, जमीन पक रही है, यहां से देखो, बाघ, अकाल में सारस और उत्तर कबीर’ शामिल हैं. आलोचना संग्रहों में ‘कल्पना और छायावाद, मेरे समय के शब्द’ प्रमुख हैं. उनकी गद्य कृतियों में से 'कल्पना और छायावाद', 'आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान', 'मेरे समय के शब्द' प्रमुख है.
1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
डॉ केदारनाथ सिंह को साल 1989 में उनकी कृति 'अकाल मे सारस' को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. डॉ. सिंह को मध्य प्रदेश सरकार का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, केरल का कुमारन अशान सम्मान, बिहार का दिनकर सम्मान और उत्तर प्रदेश का भारत भारती के सम्मान से भी नवाजा जा चुका था. केदारनाथ सिंह को प्रतिष्ठित व्यास सम्मान और 2013 में ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित किया गया था. उन्हें साहित्य अकादमी ने अपना महत्तर सदस्य बनाकर सम्मानित किया था.
केदारनाथ सिंह को सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार
साल 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मशहूर हिंदी कवि केदारनाथ सिंह को भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया.इस अवसर पर उन्होंने कहा था, ‘केदारनाथ सिंह ने अपनी कविताओं के माध्यम से हमें अनुप्रास एवं काव्यात्मक गीत की दुर्लभ संगति दी है और उन्होंने वास्तविकता एवं गल्प को समानता के साथ समाहित किया है, उनकी कविताओं से अर्थ, रंग एवं स्वीकार्यता झलकती है.’ मुखर्जी ने कहा था, ‘अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी कवि न केवल आधुनिक कला सौंदर्य के प्रति संवेदनशील हैं बल्कि पारंपरिक ग्रामीण समुदायों के प्रति भी उनकी संवेदना झलकती है.’ इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी इच्छा है कि नयी पीढ़ी भारतीय क्लासिक में गहराई तक उतरे .
(इनपुट भाषा से)