पेट्रोल-डीजल और LPG के बाद अब मध्य प्रदेश वालों को लग सकता है बिजली का 'करंट', जानें
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पेट्रोल-डीजल और LPG के बाद अब मध्य प्रदेश वालों को लग सकता है बिजली का 'करंट', जानें

मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने प्रस्ताव पर 8 मार्च तक उपभोक्ताओं से आपत्ति बुलाई है जिसके आधार पर जन सुनवाई होगी तब आयोग अंतिम फैसला करेगा. 

सांकेतिक तस्वीर.

भोपाल: पेट्रोल-डीजल और घरेलू रसोई गैस की कीमतें बढ़ने के बाद अब मध्य प्रदेश के आमजन को बिजली का झटका (Electricity Price Hike) भी लग सकता है. बिजली कंपनियां 2629 करोड़ के भारी-भरकम घाटे की भरपाई के लिए घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं पर बोझ डालना चाह रही हैं. इसके लिए बिजली कंपनियों ने दरें बढ़ाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है. सब्सिडी से बाहर के उपभोक्ताओं को प्रस्तावित दरों पर बिजली मिली तो 151 यूनिट महीने की खपत पर ₹88 और 300 यूनिट मासिक खपत करने वाले उपभोक्ताओं को ₹157 अधिक बिल भरना पड़ेगा.

कंपनियों के प्रस्ताव पर 8 मार्च तक आपत्ति मांगी गई
मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (Madhya Pradesh Electricity Regulatory Commission) ने प्रस्ताव पर 8 मार्च तक उपभोक्ताओं से आपत्ति बुलाई है जिसके आधार पर जन सुनवाई होगी तब आयोग अंतिम फैसला करेगा. मध्य प्रदेश राज्य में डिमांड से ज्यादा बिजली का उत्पादन होता है फिर भी कंपनियां सरकार पर बिजली की कीमत बढ़ाने का दबाव बना रही हैं. उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार दूसरे राज्यों एवं कारखानों को सस्ती दरों पर बिजली उपलब्ध कराती है. इसके बावजूद बिजली कंपनियों को होने वाले घाटे की भरपाई मध्य प्रदेश की आम जनता से करने की तैयारी है.

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बिजली कंपनियां ने दिखाया है 2629 करोड़ का घाटा
एक अनुमान के मुताबिक मध्य प्रदेश की तीनों सरकारी बिजली कंपनियों को बीते वर्ष 2019-20 में 2629 करोड़ का घाटा हुआ है. कंपनियों ने विद्युत नियामक आयोग से अगले टैरिफ आदेश में उपभोक्ताओं से वसूलने की सत्यापन याचिका दायर की है. हैरानी की बात है कि जबलपुर में बिजली कंपनी का मुख्यालय है. बावजूद इसके पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी को सबसे अधिक घाटा हुआ है. इसका दूसरा अर्थ यह है कि बिजली की चोरी बहुत ज्यादा हुई है और बकाया बिजली बिलों की वसूली नहीं हो पाई है.

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मध्य प्रदेश में ऐसे होता है बिजली के मूल्य का निर्धारण
मध्य प्रदेश में बिजली कंपनियां हर वित्तीय वर्ष की शुरुआत में बिजली उत्पादन के लिए संभावित सभी खर्चों में अपना लाभ जोड़कर बिजली की दर निर्धारित करती हैं. साल के लास्ट में कंपनियां आयोग के सामने पूरा लेखा-जोखा प्रस्तुत करती हैं. मिसमैनेजमेंट के कारण जो बिजली चोरी हो गई उसकी भरपाई कंपनी नहीं उपभोक्ताओं से की जाती है.

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बड़े-बड़े उद्योगपति या दूसरे डिफाल्टर बिजली का बिल नहीं भरते तो वह रकम भी अगले साल दरें बढ़ाकर आम उपभोक्ताओं से वसूली जाती है. कंपनी के अधिकारी मनमाना खर्च करते हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती बल्कि उनके खर्चों को चुकाने के लिए बिजली के दाम बढ़ाए जाते हैं.

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