मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में विक्रम ब्राह्मणे नाम के एक व्यक्ति ने अपने जीवन में कुछ ऐसा समय देखा. जिसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर बेचकर शव वाहन खरीद लिया और तब से वह लोगों की मुफ्त सेवा कर रहे हैं.
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आकाश द्विवेदी/भोपाल: कहते हैं कि वक्त की मार हमें बहुत कुछ सिखा देती है.ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से आया है.जहां विक्रम ब्राह्मणे नाम के एक व्यक्ति ने अपने जीवन में कुछ ऐसा ही समय देखा. जिसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर बेचकर शव वाहन खरीद लिया और तब से वह लोगों की मुफ्त सेवा कर रहे हैं.
दरअसल साल 2015 में विक्रम के पिता की मृत्यु हो गई थी. लेकिन पिता की अंतिम यात्रा के लिए विक्रम को कोई शव वाहन नहीं मिला और उन्हें इस बात से खासा धक्का लगा. इस बात ने उन्हें विचलित कर दिया. इस के बाद विक्रम ने शव वाहन खरीदने और लोगों की सेवा करने का निर्णय लिया. लेकिन इसके लिए उन्हें 60 हजार रुपयों की जरूरत थी. तो उन्हें पत्नी के गहने बेचने पड़े और कुछ दोस्तों से भी उधार लेना पड़ा. मगर विक्रम शव वाहन खरीद कर ही मानें.
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तब से लेकर अब तक वह बिना किसी लाभ की आशा के सेवा में जुटे हैं. कोरोना की दूसरी लहर में लोग जब अपने परिजनों को हाथ नहीं लगाते थे, उस वक्त विक्रम ने 100 से अधिक शवों को श्मशान घाट तक पहुंचाया. विक्रम बताते हैं कि इस काम को वह बिना कोई पैसा लिए करते हैं. जबकि घर चलाने के लिए उनकी पत्नी और मां झाड़ू बेचती हैं.
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