ऐतिहासिक कुकुर देव मंदिर में होती है श‍िवल‍िंंग के साथ कुत्‍ते की पूजा, अनोखी है कहानी
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ऐतिहासिक कुकुर देव मंदिर में होती है श‍िवल‍िंंग के साथ कुत्‍ते की पूजा, अनोखी है कहानी

छत्‍तीसगढ़ के बालोद में एक गांव ऐसा है जहां भगवान शिव जी की मूर्ति के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है. ये लोगों के लिये आस्था का प्रमुख केन्द्र है. 

श‍िवल‍िंंग के साथ कुत्‍ते की पूजा.

सत्‍य प्रकाश/बालोद: आज शुक्रवार को 'अंतर्राष्ट्रीय डॉग डे' है. ऐसे में हम बात कर रहे हैं बालोद जिले के एक गांव में स्थित ऐतिहासिक कुकुर देव मंदिर की, जहां स्थापित भगवान शिव जी की मूर्ति के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है. ये लोगों के लिये आस्था का प्रमुख केन्द्र है. वास्तव में यह एक स्मृति स्मारक है जो कि भगवान शिव जी को समर्पित है. क्षेत्र सहित दूर दूर से लोग यहां श्रद्वापूर्वक आते हैं. मान्यता है कि यहां जो आता है उसकी सच्चे मन से मांगी गई मुरादें पूरी होती है. 

कुकुर देव मंद‍िर की वजह से गांव फेमस 

बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम खपरी में कुकुर देव मंदिर है. और इसी मंदिर की वजह से यह गांव आज समूचे राज्य में प्रसिद्ध है. इस ऐतिहासिक और पुरातत्वीय मंदिर का निर्माण फणी नागवंशीय शासकों द्वारा 14वीं-15वीं शताब्दी के बीच कराया गया था. गर्भगृह मे जलधारी योनिपीठ पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित है. ठीक उसी के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है. लोगों की अटूट आस्था इस स्थल के प्रति है. 

मंद‍िर के न‍िर्माण को लेकर है रोचक कहानी 

इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक रोचक किंवदंती प्रचलित है. बताया जाता है कि बहुत पहले एक बंजारा कर्ज न छुड़ा पाने की स्थिति में साहूकार को अपना पालतू कुत्ता दे गया था. साहूकार के यहां जब चोरी हुई तो उस कुत्ते की चालाकी से चोरी हुये सभी जेवरात और सामान साहूकार को वापस मिल गया. साहूकार बेहद खुश हुआ और उस कुत्ते को उसके मालिक के पास वापस भेज दिया. इस दौरान उसके स्वामीभक्त होने की एक पर्ची उसके गले में लगा दी. 

माल‍िक ने ही कुत्‍ते को मार द‍िया 

बंजारे के पास कुत्ता जैसे ही पहुंचा तो बंजारा अपने कुत्ते के प्रति सख्त नाराज हुआ. बिना सोचे समझे उसने कुत्ते को मार दिया. उसे लगा कि मैं कुत्ते को साहूकार के पास छोड़कर आया हूं और यह वापस आ गया. लेकिन जब पर्ची पढ़ी तो वह पश्चाताप करने लगा. बंजारा के द्वारा अपने कुत्ते को इसी स्थल में दफन किया. और स्वामी भक्त कुत्ते की स्मृति में यह स्थल बनवाया गया. जहां पर फणी नागवंशीय शासकों द्वारा 14वीं-15वीं शताब्दी के मध्य इस मंदिर का निर्माण कराया गया. तब से आज तक इस मंदिर के प्रति लोगों की अटूट आस्था बनी हुई है. 

लोगों की ऐसी है मान्‍यता 

लोगों का ऐसा मानना है कि जो भक्त यहां आकर सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं, उनकी मुरादें जरूर पूरी होती हैं. लोगों की मानें तो कुकुर खांसी या कुत्ते के काटने से लोग यहां की मिट्टी भी उपयोग करते हैं.

महाशिवरात्रि के दौरान होती है यहां व‍िशेष पूजा 
नवरात्र के दौरान लोग यहां मनोकामना ज्योतिकलश प्रज्‍वल‍ित करते हैं. लोग इस ज्योतिकलश को वफादारी की जोत भी मानते हैं. महाशिवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है. आज यह मंदिर न सिर्फ क्षेत्र में बल्कि दूरदराज क्षेत्रों मे भी प्रसिद्ध है. 

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