Agar News: मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले में, किसान नारायण सिंह को सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित कर दिया जाता है, जिससे उनको सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिसके चलते किसान का परिवार उनके जिंदा होने का प्रमाण पत्र लेकर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है.
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कनीराम यादव/आगर: मध्यप्रदेश (MP News) के आगर मालवा (Agar News) जिले में एक 55 वर्षीय बीमार किसान अपने जिंदा होने के सबूत लेकर सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहा है. किसान नारायण सिंह को खाद्य विभाग और सहकारी बैंक के पोर्टल पर मृत घोषित कर दिया गया है. नतीजतन किसान को सरकार की ओर से दी जाने वाली सम्मान निधि भी नहीं मिल रही और न ही उसे समर्थन मूल्य पर बेची अपनी फसल की रकम अब तक 2 माह बाद भी प्राप्त नहीं हुई है. सरकारी दफ्तरों की हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि कलेक्टर के निर्देशों के बाद भी अधिकारियों ने किसान को कागजों में अब तक जिंदा नहीं किया है.
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जानें पूरा मामला?
साहब, मैं अभी जिंदा हूं, मुझे जीते जी क्यों मार दिया गया? कुछ इस तरह की गुहार जिले के कानड़ निवासी नारायण सिंह बीजापारी को सरकारी महकमों में लगानी पड़ रही है. किसान के लकवाग्रस्त हो जाने पर अब उनका बेटा पिता के जिंदा होने के सबूत व शपथ पत्र लेकर कार्यालयों के चक्कर काट रहा है. अपने जिंदा होने के लिए शिकायत को सीएम हेल्पलाइन से लेकर जनसुनवाई तक में दर्ज कराने के बावजूद लंबे समय से किसान की कोई सुनवाई नहीं हो रही. करीब 20 दिन पहले 16 मई को कलेक्टर की जनसुनवाई में भी जिंदा होने की जानकारी देने के बावजूद अब तक किसान के खाते में समर्थन मूल्य में बेची गई फसल की राशि नहीं पहुंची है.
सरकारी विभागों में भटक रहा है किसान परिवार
बता दें कि किसान नारायण के बेटे संजय बिजापारी के अनुसार उन्होंने 10 अप्रैल को सरकार द्वारा की जा रही समर्थन मूल्य की खरीदी में अपनी गेंहू की उपज तो बेच दी, लेकिन आज दिनांक तक उसका भुगतान उन्हें नहीं प्राप्त हुआ है. जब जिला सहकारी बैंक में उनके द्वारा जानकारी ली गई तो उन्हें बताया गया कि उनके खाते में "एकाउंट होल्डर एक्सपायर" होना दर्ज बता रहा है. साथ ही खाद्य विभाग के पोर्टल पर भी उन्हें मृत दर्ज होना बताया जा रहा है. इस पूरे मामले में 19 मई 2023 को आगर कलेक्टर द्वारा तहसीलदार और खाद्य विभाग को पत्र लिखकर जांच करने को कहा है, लेकिन करीब 15 दिन से ज्यादा बीत जाने के बाद भी किसान को इन कागजो में जिंदा नहीं किया जा सका है. नतीजतन फिर से किसान का बेटा अपने बीमार पिता के जिंदा होने के सबूत लेकर सरकारी विभागों में भटक रहा है.
मामले में जिला कलेक्टर कैलाश वानखेड़े ने जल्द ही इस मामले में निराकरण की बात कही है. हालांकि यहां पर सवाल यह उठता है कि आखिर एक जिंदा इंसान को कागजो में कैसे मार दिया गया, सब कुछ सामने आने के बाद उसे जिंदा करने में क्यों इतना समय लग रहा है. इस पूरे मामले में लेतलाली करने वाले अफसरों पर क्या किसी तरह की कार्रवाई की जाएगी या इसी तरह आम आदमी सिस्टम का कहर झेलता रहेगा. किसान को इतने समय से नहीं मिल पाई सम्मान निधी का भी आखिर क्या होगा?