आत्मनिर्भर भारत की सच्ची तस्वीर, फैशन डिजाइनर नहीं गांव की महिलाएं सिलेंगी अफसरों के कपड़े
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आत्मनिर्भर भारत की सच्ची तस्वीर, फैशन डिजाइनर नहीं गांव की महिलाएं सिलेंगी अफसरों के कपड़े

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर इन दिनों बैतूल के कई गांवों में नजर आ रही है. अपनी मेहनत और लगन से बिजनेस की एबीसीडी पढ़ रही महिलाओं ने यहां अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ना शुरू कर दिया है.

बैतूल सेल्फ हेल्प ग्रुप सेंटर में सिलाई करती गांव की महिलाएं.

इरशाद हिंदुस्तानी/बैतूलः ब्रैंडेड कंपनियों और ऊंचे दर्जे के दर्जियों के सिले कपड़े पहनने वाले अफसर अब गांव की महिलाओं के हाथों से बने कपड़े पहनकर बैतूल के सरकारी दफ्तरों में चहलकदमी करते नजर आ सकते हैं. महिलाओं के स्व सहायता समूहों को आत्मनिर्भर बनाने की कड़ी में यह नया प्रयोग बैतूल में शुरू किया गया है. बैतूल की महिलाएं अब शूट पैंट ही नहीं, कड़क डिजायनर ब्लेजर सिलने की तैयारी कर रही हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर इन दिनों बैतूल के कई गांवों में नजर आ रही है. अपनी मेहनत और लगन से बिजनेस की एबीसीडी पढ़ रही महिलाओं ने यहां अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ना शुरू कर दिया है. उसी की कड़ी में वे अब सरकारी दफ्तरों के बाबू से लेकर अफसरों तक के कपडे तैयार करने की कवायद में जुटी हैं. जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बनाए गए सैकड़ों स्व सहायता समूहों की महिलाएं इन दिनों अपने हुनर का जौहर दिखा रही हैं. यहां बनाए गए 9 हाईटेक सिलाई सेंटरों में सैकड़ो महिलाएं न केवल रोजगार पा रही हैं, बल्कि वे अपने काम धंधे की खुद मालिक बनी हुई हैं. 

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राजस्थान के भीलवाड़ा से कपड़ो की खरीदी और फिर उनकी कटिंग से लेकर सिलाई, पैकेजिंग और मार्केटिंग कर रही महिलाओं ने बीते लाकडाउन से अब तक लाखों रुपये का मुनाफा कमाकर, कामयाबी की इबारत लिख दी है. शूट, ब्लेजर, मास्क, शर्ट बनाकर इसका होलसेल बिजनेस कर रही महिलाएं प्रदेश के अलावा पड़ोसी राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र तक अपने सिले कपड़े भेज रही हैं.  अब उनकी तैयारी अफसरों के कपड़े सिलने की है.  बैतूल जिले के सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को निर्देश दिए गए हैं कि प्रत्येक अधिकारी कम से कम एक जोड़े कपड़े इन स्व सहायता समूहों की महिलाओं से जरूर सिलवाएं. 

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कपड़ों पर स्व सहायता समूह द्वारा निर्मित लोगो भी लगाया जाए. इस नवाचार से महिलाए खुश हैं. शारदा आजीविका समूह से जुड़ी सीमा वागद्रे कहती हैं कि हम गांव में सिलाई करते थे. अब यहां बड़ा काम मिला है. हाईटेक मशीनें हैं. इससे अच्छे से काम कर पाते हैं.  रुपाली ठाकरे  कहती हैं कि जब सबका काम बंद था तब हमारा काम चालू था. हम यहां मास्क बनाते थे. घर के लोगों को आर्थिक मदद कर रहे. बच्चो को पढ़ा रहे.  

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परियोजना अधिकारी सतीश पवार  ने बताया कि इन समूहों को उन्होंने आपस में जोड़ा. ये महिलाएं कभी पैडल की सिलाई मशीनें चलाती थी. अब तक 5 से 7 लाख का मुनाफा कमाया है. अब ब्रैंड वैल्यू बनाकर सप्लाई का प्लान है. जिला पंचायत सीईओ एमएल त्यागी ने बताया कि बैतूल में 9 स्थानों पर हाईटेक सिलाई सेंटर हैं. तय किया गया है कि सभी अधिकारी एक जोड़ी कपड़े स्व सहायता समूह सिलाई सेंटर पर सिलवाएं.

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