विंध्य में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी का अनोखा किस्सा, "व्हाइट टाइगर" को हराने वाला नेता ही लेगा उनकी जगह
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विंध्य में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी का अनोखा किस्सा, "व्हाइट टाइगर" को हराने वाला नेता ही लेगा उनकी जगह

मध्य प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी (srinivas tiwari) को चुनाव हराने वाले गिरीश गौतम (girish gautam) ही विधानसभा के नए अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, जो अपने आप में मध्य प्रदेश की सियासत में एक नया इतिहास बनने जा रहा है.

गिरीश गौतम और श्रीनिवास तिवारी

भोपालः रीवा जिले की देवतालाब विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक गिरीश गौतम (girish gautam) मध्य प्रदेश (madhya pradesh) विधानसभा के नए विधानसभा अध्यक्ष बनने जा रहे हैं. खास बात यह है कि कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करने की बात कही है, यानि चार बार के विधायक गिरीश गौतम निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष बनने जा रहे हैं. गिरीश गौतम के विधानसभा अध्यक्ष बनने के साथ मध्य प्रदेश की सियासत में एक अनोखा इतिहास भी बनने जा रहा हैं.

श्रीनिवास तिवारी को हराने वाले नेता हैं गिरीश गौतम
दरअसल, गिरीश गौतम से पहले विंध्य अंचल से आने वाले कद्दावर नेता श्रीनिवास तिवारी 10 साल विधानसभा अध्यक्ष के पद पर रहे. 2003 के विधानसभा चुनाव में गिरीश गौतम ने श्रीनिवास तिवारी के वर्चस्व को खत्म करते हुए मनगंवा सीट से जीत हासिल की थी. यह अजब संगोय बन रहा है कि अब विधानसभा अध्यक्ष  के पद पर गिरीश गौतम की ताजपोशी होने जा रही है. 

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2003 के विधानसभा चुनाव ने बदल दी थी विंध्य की सियासत
दरअसल, सफेद टाइगर के नाम से मशहूर नेता श्रीनिवास तिवारी 2003 में रीवा जिले की मनगंवा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे, वे विंध्य के ऐसे नेता थे, जिनको लेकर उनके समर्थकों ने बघेली में एक नारा बनाया था. ''दादा नहीं दऊ आंय, वोट न देवे तऊ आंय'' मतलब दादा को अगर वोट नहीं भी दिया जाएगा तो भी वे चुनाव जीतेंगे. इसी नारे के साथ उनके समर्थक 2003 के विधानसभा चुनाव में श्रीनिवास तिवारी का प्रचार कर रहे थे. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि श्रीनिवास तिवारी, जो 10 साल से विधानसभा के अध्यक्ष थे, उन्होंने भी इस नारे को मौन सहमति दे दी थी. क्योंकि वे अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे.

''दादा नहीं दाई है इस बार विदाई है''
श्रीनिवास तिवारी के सामने बीजेपी ने गिरीश गौतम को चुनावी मैदान में उतारा था. एक तरफ श्रीनिवास तिवारी के समर्थक पूरे जोश में थे. तो दूसरी तरफ गिरीश गौतम सधे हुए अंदाज में अपना चुनाव प्रचार कर रहे थे. खास बात यह है कि गिरीश गौतम के समर्थकों ने भी एक नारा बनाया ''दादा नहीं दाई है इस बार विदाई है'', जिसका मतलब था कि इस बार दादा का चुनाव हारना तय है क्योंकि जनता ने उनकी विदाई का मन बना लिया है.

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चुनाव परिणाम से बदल गई विंध्य की सियासत
जब 2003 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो मध्य प्रदेश में 10 साल से जमी कांग्रेस की सत्ता ही नहीं गई, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष और विंध्य के टाइगर कहे जाने वाले श्रीनिवास तिवारी भी चुनाव हार गए. गिरीश गौतम ने एक दिग्गज नेता को चुनाव हराया था. इस चुनाव के बाद से ही विंध्य में बीजेपी का दबदबा बनना शुरू हुआ था. गिरीश गौतम इसके बाद वह 2008, 2013 और 2018 में देवतालाब से विधायक बने. इस प्रकार वह लगातार चौथी बार विधायक बने हैं. ऐसे में अब बीजेपी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपने जा रही हैं.

गिरीश गौतम ने छात्र राजनीति से शुरू किया था सियासी सफर
गिरीश गौतम ने अपनी​ सियासी पारी 1977 में छात्र राजनीति शुरू की. वह 2003 से 2018 तक लगातार चौथी बार दो अलग-अलग सीटों से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. उन्होंने 1993 व 98 सीपीआई (Communist Party of India) से विधानसभा का चुनाव लड़ा. तब पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के हाथों ही गिरीश गौतम को हार का सामना करना पड़ा था.

विंध्य से आने वाले नेता गिरीश गौतम को विधानसभा अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. शिवराज सरकार जब से सूबे में चौथी बार सत्ता में आई है तभी से विंध्य क्षेत्र में विरोध की लहरें तेज हैं. क्योंकि सीएम शिवराज ने अपनी टीम में सिंधिया गुट के नेताओं को भरपूर मौका दिया और जिस विंध्य ने 2018 के चुनाव में भाजपा की इज्जत बचाई वहां से सिर्फ एक नेता को मंत्री बनाया गया. इसके अलावा बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन विंध्य से आने वाले गिरीश गौतम को बड़ा पद देकर विंध्य को महत्व दिया जा रहा है. 

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