जवाब करारा होगा, क्योंकि यह जंगे आजादी में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली रानी लक्ष्मी बाई की धरती झांसी से मिलेगा और हथियार होंगे साट ट्वाय. इस तरह के खिलौने झांसी की पहचान हैं.
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झांसी: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi adityanath) के शहर गोरखपुर की गौरी-गणेश टेरोकोटा की मूर्तियों के बाद अब शौर्य एवं संस्कार की धरती बुंदेलखंड (Bundelkhand) भी चीन को जवाब देने की तैयारी में है. जवाब करारा होगा, क्योंकि यह जंगे आजादी में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली रानी लक्ष्मी बाई की धरती झांसी से मिलेगा और हथियार होंगे साट ट्वाय. इस तरह के खिलौने झांसी की पहचान हैं. इसी नाते वर्ष 2018 में इसे मुख्यमंत्री की लैगिशप योजना एक जिला एक उत्पाद ओडीओपी (ODOP) में शामिल किया गया।
काम भी शुरू
इस उद्योग की बेहतरी के लिए काम भी शुरू हो चुका है. उद्योग की मौजूदा स्थिति क्या है? इससे जुड़े लोगों की समस्याएं और उनके समाधान क्या हैं? इन समस्याओं का अगर समाधान कर दिया जाये तो इसके नतीजे क्या होंगे? इस सबकी जानकारी के लिए डायग्ननोस्टि स्टडी रीपोर्ट (DSR) तैयार कर उस पर सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम विभाग एमएसएमई अमल भी कर रहा है.
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वोकल फॉर लोकल
इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित आत्म निर्भर भारत पैकेज की घोषणा के बाद उनके वोकल फॉर लोकल के सपने को साकार करने के लिए मई में मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित पहले मेगा ऑनलाइन लोन (Mega Online) मेले इसी उद्योग से जुड़ी झांसी की उदिता गुप्ता (Udita Gupta) को कारोबार के विस्तार के लिए 50 लाख रुपये का चेक भी दिया गया. प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में खिलौना उद्योग की चर्चा करने के बाद इसमें और तेजी आना तय है.
झांसी अपने साट ट्वायज के लिए जाना जाता है
ज्ञात हो झांसी अपने साट ट्वायज के लिए जाना जाता है. अधिकांश खिलौने दीनदयाल नगर में बनते हैं. खिलौने बनने के बाद बची चीजों से बच्चों के जूते और अन्य छोटे सामान बनते हैं. कटिंग से लेकर सिलाई, भराई, धुलाई, चौकिंग और परिवहन का अधिकांश काम परंपरागत तरीके से हाथ से होता है. प्रयुक्त होने वाला कच्चा माल सिंथेटिक फाइबर, कपड़े, बटन, आंख और पली क्लॉथ आदि दिल्ली से आता है. तैयार माल का अधिकांश बाजार भी दिल्ली ही है. अगर कच्चा माल स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो तो लागत 20 से 25 फीसदी तक घट सकती है. झांसी के खिलौनों को ब्रांड बनाकर आक्रामक मार्केटिंग करने से भी इस उद्योग से जुड़े हजारों लोग को लाभ होगा.
कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाने की योजना
सरकार की मंशा यहां ओडीओपी के तहत कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) बनाने की है। इसमें एक ही छत के नीचे डिजाइन स्टूडियो, गुणवत्ता जांचने के लिए लैब, रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर होंगे। इसके अलावा इस उद्योग से जुड़े लोगों की उत्पादन क्षमता बढ़े, तैयार माल की फिनिशिंग बेहतर हो और वे गुणवत्ता और दाम में प्रतिस्पर्धी हों, इसके लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के जरिए उनको लेजर कटिंग मशीन, कंप्रेसर, कारडिंग फर को संवारने मशीन और आटोमेटिक टेलरिंग मशीन भी उपलब्ध कराई जाएगी।
आईआईटी के विशेषज्ञों की भी मदद ली जाएगी
बाजार में किस तरह और किस डिजाइन के खिलौनों की मांग है, इसके लिए उनको प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। इसके लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्ननोलजी-आईआईटी(IIT), निड और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन एंड टेक्ननोलजी (NIFT) के विशेषज्ञों की भी मदद ली जाएगी.
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झांसी भौगोलिक रूप से देश के बीचो-बीच
अपर मुख्य सचिव (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग) नवनीत सहगल (Navneet Sehgal) ने बताया कि झांसी भौगोलिक रूप से देश के बीचो-बीच है. यह बुंदेलखंड का गेटवे है. रेल और सड़क से यह पूरे देश से बेहतर तरीके से जुड़ा है. झांसी में हवाईअड्डा बन जाने और बुंदेलखंड एक्सप्रेस के बन जाने पर यह कनेक्टिविटी और बेहतर हो जाएगी. मुख्यमंत्री बुंदेलखंड के विकास को लेकर बेहद संजीदा हैं. ऐसे में झांसी के परंपरागत खिलौना उद्योग को अगर तकनीक से जोड़ दें तो कारोबार और रोजगार की ²ष्टि से इसकी संभावना बहुत बेहतर है. (इनपुट आईएनएस)
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