IPC Section 353: लोकसेवक पर हमला रोकने की धारा का दुरुपयोग! पैनल ने कहा, 'घटाई जाए सजा'
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IPC Section 353: लोकसेवक पर हमला रोकने की धारा का दुरुपयोग! पैनल ने कहा, 'घटाई जाए सजा'

Recommendation on IPC Section 353: लोकसेवकों पर हमला रोकने के लिए आईपीसी में धारा 353 का प्रावधान किया गया था लेकिन अब इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग करने की शिकायतें आ रही हैं. इसे देखते हुए पैनल ने सजा घटाने की सिफारिश की है. 

IPC Section 353: लोकसेवक पर हमला रोकने की धारा का दुरुपयोग! पैनल ने कहा, 'घटाई जाए सजा'

Parliamentary Committee Recommendation on IPC Section 353: किसी सरकारी कर्मी को कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल करने के आरोप में अब सजा घट सकती है. संसद की एक समिति ने सिफारिश की है कि ऐसे मामलों में 2 साल की सजा को घटाकर एक साल कर दिया जाना चाहिए. समिति ने यह सिफारिश इस कानून के बड़ी संख्या में दुरुपयोग के मामले सामने आने के बाद की है. 

धारा-353 का हो रहा दुरुपयोग

बीजेपी सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि समिति के कई सदस्यों का मत है कि IPC की धारा 353, जो भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 130 से मेल खाती है, का सरकारी लोक सेवकों की ओर से व्यापक रूप से दुरुपयोग किया जा रहा है. 

सजा कम की जा सकती है

समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘चूंकि राजनीतिक प्रदर्शन लोकतंत्र की आत्मा हैं और अतीत में ऐसे उदाहरण हैं, जब राजनीतिक नेताओं को प्रदर्शन करते समय आईपीसी की इस धारा के तहत अपराधों के लिए परेशान किया गया और झूठा दोषी ठहराया गया. इसलिए यह सुझाव दिया गया कि इस खंड के तहत सजा को कम किया जा सकता है.’

2 साल से कम की जाए सजा

समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा, ‘समिति उसके सामने दी गई दलीलों से सहमत है और सिफारिश करती है कि धारा 130 के तहत दी गई सजा को दो साल से घटाकर एक साल किया जा सकता है.’ बीएनएस की धारा 130 के तहत लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निष्पादन में रोकने या हमला करने के लिए दो वर्ष तक के कारावास या जुर्माना, या दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान है. 

इस साल पेश किए गए 3 विधायक

बताते चलें कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) विधेयक को 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसए-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) विधेयकों के साथ पेश किया गया था. तीन प्रस्तावित कानून क्रमशः दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम, 1898, भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करेंगे. 

(एजेंसी भाषा) 

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