चीन के महान दार्शनिक लाओ त्सु ने चाय को जीवन का अमृत कहा था. अब आप चाय को चाहे जिस भी रूप में देखें. लेकिन चाय के बगैर दुनिया के करोड़ों लोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते.
चाय भारत के लोगों की जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा है. ज्यादातर लोगों की सुबह की शुरुआत एक प्याली चाय के साथ होती है और शाम का स्वागत भी चाय के साथ ही होता है. जब आप किसी के घर जाते हैं तो सामने वाला प्यार से पूछता है, एक एक चाय हो जाए और अगर ऐसा न हो तो लोग बुरा मान जाते हैं और कहते हैं कि उनसे तो एक कप चाय तक नहीं पूछी गई. बहुत दिनों बाद आप से मिलने वाला दोस्त अगर आपको पुराने अड्डे पर ले जाकर चाय पिलाए तो दोस्ती के सुनहरे पल याद आ जाते हैं. अगर घर का कोई बड़ा चाय बनाए तो उसमें से स्नेह की खुशबू आती है , आशीर्वाद का भाव आता है, घर का कोई छोटा चाय बनाए तो उसे सबका ख्याल रखने वाला समझा जाता है. जब आप किसी से जबरदस्ती चाय बनाने के लिए कहते हैं, तो उसमें सामने वाले की खीज झलकने लगती है. हमारे देश में रिश्वत भी चाय-पानी की व्यवस्था कराने के नाम पर मांगी जाती है.
कहते हैं पानी के बाद चाय पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पिया जाने वाला पेय पदार्थ है. भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल समेत दक्षिण एशिया के कई देश हर साल 15 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस मनाते हैं. अब इनमें केन्या, मालावी, तंजानिया और युगांडा जैसे देश भी शामिल हो चुके हैं. मान्यता है कि चाय की खोज करीब 5 हज़ार वर्ष पहले चीन में हुई थी. तब चीन के इतिहास के दूसरे सम्राट शेन नोंग अपनी सेना के साथ किसी दूर दराज के इलाके में कुछ देर के लिए रुके. उन्हें पानी को उबालकर पीने की आदत थी. जब उनके नौकर उनके लिए पानी उबाल रहे थे. तभी पास ही मौजूद एक पेड़ से कुछ पत्तियां उस पानी में गिर गईं और पानी का रंग भूरा हो गया. लेकिन किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब सम्राट ने इसे उबला हुआ पानी समझकर पिया तो उन्हें इसका स्वाद बहुत पसंद आया और उन्हें बहुत ताज़गी महसूस हुई.
कहा जाता है कि यहीं से चीन में चाय बनाने की परंपरा शुरू हुई. चीन में इसे चा कहा जाता था. चीन में एक विशेष प्रकार की चाय की कीमत सोने की कीमत से भी 20 गुना ज्यादा है. इसे वहां Da Hong Pao कहा जाता है.
इसके लिए आपको प्रति एक ग्राम, एक लाख रुपये चुकाने होंगे. ऐसा इसलिए है क्योंकि जिस पेड़ से इस चाय की पत्तियां मिलती हैं, वो अब लगभग लुप्त हो चुका है.
भारत में दार्जिलिंग चाय की एक किस्म की कीमत 2 लाख रुपये प्रति किलोग्राम है. आज की तारीख में भारत और चीन ही दुनिया में सबसे ज्यादा चाय उगाते हैं. कहा जाता है कि भारत में चाय का प्रवेश सैकड़ो वर्ष पहले सिल्क रूट के जरिए हुआ था लेकिन औपचारिक तौर पर भारत के लोगों का चाय से परिचय कराने का श्रेय अंग्रेज़ों को जाता है.
अंग्रेज़ों ने ही सबसे पहले 1830 के दशक में भारत में चाय के बगान लगाने की शुरुआत की थी. लेकिन ये भी एक तथ्य है कि 16वीं शताब्दी तक पश्चिम के देशों ने चाय देखी तक नहीं थी.17वीं और 18वीं शताब्दी में यूरोप के लोगों का परिचय चाय से हुआ. लेकिन तब यूरोप के लोगों के लिए चाय बहुत महंगी हुआ करती थी और इसकी तस्करी करके, इसे यूरोप के देशों तक पहुंचाया जाता था.
400 ग्राम चाय का उत्पादन करने में चाय की 2 हज़ार से भी ज्यादा पत्तियों की जरूरत पड़ती है. पूरी दुनिया में वैसे तो चाय की 20 हज़ार से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं. लेकिन मुख्य रूप से 6 तरह की चाय पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं. पहली है दूध और पानी को मिलाकर बनने वाली पारंपरिक चाय, इसके बाद, ग्रीन टी, ब्लैट टी, हर्बल टी, व्हाइट टी, और फिर OoLong Tea का नंबर आता है.
Tea Bag के जरिए चाय बनाने की शुरुआत 1908 में अमेरिकी व्यापारी थॉमस सुलिवन ने की थी. लेकिन Tea Bag का अविष्कार एक संयोग था. दरअसल सुलिवन अपने ग्राहकों को छोटी छोटी पोटलियों में चाय बेचा करते थे. लेकिन कुछ ग्राहकों को लगा कि शायद इन पोटलियों को गर्म पानी में डुबोना होता है. कुछ लोगों ने ऐसा ही किया और यहीं से लोगों को चाय Tea Bag के साथ भी मिलने लगी और अब लोग जहां चाहें, जब चाहें Tea Bag की मदद से चाय पी सकते हैं.
मशहूर अंग्रेज़ लेखक Arthur Wing Pinero ने एक बार चाय की तारीफ में कहा था कि 'जहां चाय होती है वहां उम्मीद होती है.' इसे आप ऐसे भी कह सकते हैं कि जहां 'चाय, वहां राह.'
चीन के महान दार्शनिक लाओ त्सु ने तो चाय को जीवन का अमृत तक कहा था. अब आप चाय को चाहे जिस भी रूप में देखें. लेकिन चाय के बगैर दुनिया के करोड़ों लोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते. हालांकि जरूरत से ज्यादा चाय आपके लिए हानिकारक है. इसलिए इसे नियंत्रित मात्रा में ही पीएं.
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