अगर आप राष्ट्रपति रहने के दौरान प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) की मंदिर यात्राओं की जानकारी खंगालें तो पाएंगे कि इस मामले में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से पीछे नहीं थे.
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नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) के बारे में ये दिलचस्प जानकारी पश्चिम बंगाल के अलावा बाकी लोग कम ही जानते हैं कि उन्होंने संयुक्त बंगाल के पहले स्वतंत्र शासक और गौड़ साम्राज्य के संस्थापक राजा शशांक की दोनों राजधानियों की लोकसभा सीटों से जीत दर्ज की थी. इतना ही नहीं जब साल 1999 में किए गए उत्खनन में राजा शशांक द्वारा बनवाए गए जपेश्वर महादेव मंदिर के अवशेष मिले तो उन्होंने उसके पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई.
प्रणब मुखर्जी ने मंदिर के लिए सरकार से एक करोड़ रुपये की सरकारी सहायता दिलवाने में प्रमुख भूमिका अदा की थी. वो भी तब जब वो केंद्र सरकार में मंत्री थे. इस बात का जिक्र सुदर्शन भाटिया ने अपनी किताब ‘हिज एक्सलेंसी प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया’ में किया है.
राजा शशांक
संयुक्त बंगाल का पहला स्वतंत्र शासक शशांक को माना जाता है, उनका राज 590 से 625 ईस्वी के बीच माना जाता है. कन्नौज के राजा हर्षवर्धन का राजा शशांक से युद्ध हुआ था. राजा शशांक ने हर्षवर्धन के भाई राज्यवर्धन को मार डाला था. बंगाल के लोगों का मानना है कि चूंकि हर्षवर्धन बाद में बौद्ध बन गए थे, इसीलिए उनको वीर दिखाने का इतिहास बौद्ध यात्रियों और ग्रंथों के आधार पर लिखा गया.
आपको ये जानकर हैरत होगी कि राजा शशांक को हिंदूवादी शासक माना जाता था, जिसे वामपंथी इतिहासकारों ने बौद्धों का विरोधी बताया था. शशांक पर बौद्ध विरोधी होने का आरोप सदियों बाद लिखी गई किताबों के आधार पर लगाया गया. इसी के चलते इतिहास में आपने हमेशा उन्हें विलेन के तौर पर ही पढ़ा, लेकिन प्रणब मुखर्जी समेत उत्तर बंगाल के लोग राजा शशांक को काफी सम्मान देते हैं.
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जिस तरह से पीएम मोदी ने कभी भी अपने व्रत, त्यौहारों और धार्मिक आस्थाओं को किसी से नहीं छुपाया, उसी तरह प्रणब मुखर्जी ने भी कभी ऐसा नहीं किया. प्रणब मुखर्जी ने पिता के कहने पर ना केवल कांग्रेस से नाता जोड़े रखा, बल्कि दुर्गा पूजा की उनकी धार्मिक परंपरा को भी जिंदा रहने तक बनाए रखा. केवल पीएम मोदी ही नवदुर्गा के अवसर पर नवरात्रि व्रत के लिए नहीं जाने जाते, प्रणब मुखर्जी भी हर साल अपने गांव जाकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते थे, जो उन्हें कंठस्थ था.
इस दौरान वो चार दिनों की छुट्टी लेकर हर साल इस समय अपने गांव में ही होते थे, वो भी पारंपरिक रूप में. इतना ही नहीं पूजा के बाद प्रणब मुखर्जी केलाबहू स्नान के लिए परिवार के साथ नंगे पैर गंगा घाट तक पैदल ही जाते थे. महासप्तमी और महाअष्टमी के दिन तो वो खुद पुजारी के रोल मे आ जाते थे और खुद ही पूजा करते थे.
ये भी काफी दिलचस्प बात है कि राजा शशांक ने जिस शहर कर्णसुवर्ण को अपनी राजधानी बनाया था, उसके अवशेष प्रणब मुखर्जी के संसदीय क्षेत्र जंगीपुरा में ही मिलते हैं यानी मुर्शिदाबाद जिले का गंगाभाटी क्षेत्र. बाद में राजा शशांक अपनी राजधानी कर्णसुवर्ण वर्तमान में मुर्शिदाबाद को मालदा ले आए थे. इन दोनों लोकसभा सीटों से प्रणब मुखर्जी सांसद चुने गए इसीलिए उनकी जपेश्वर महादेव मंदिर में दिलचस्पी महज रुचि का विषय नहीं बल्कि जिम्मेदारी भी थी और उन्होंने ये बखूबी निभाई.
अगर आप राष्ट्रपति रहने के दौरान प्रणब मुखर्जी की मंदिर यात्राओं की जानकारी खंगालें तो पाएंगे कि इस मामले में वो पीएम मोदी से पीछे नहीं थे. इस दौरान वो बद्रीनाथ मंदिर, केदारनाथ मंदिर, तिरुवनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर, नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर, जनकपुर के जानकी मंदिर, कांची मठ, तिरुपति मंदिर, कांचीपुरम के कामाक्षी अम्मान मंदिर, बैंगलौर के इस्कॉन मंदिर, देवघर के बाबा वैद्यनाथ मंदिर, चीन के हुआलिन मंदिर, धर्मशाला के मां बगुलामुखी मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर, तेलंगाना का लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर, उडुपी के कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर और दतिया के पीताम्बरा पीठ मंदिर समेत सभी प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन करने के लिए गए.
इतना ही नहीं दुनिया में सबसे ऊंचे मंदिर के तौर पर बने वृंदावन के चंद्रोदय मंदिर और पुणे के इस्कॉन मंदिर में तो उन्हें खास मौके पर बुलाया गया था. शायद वो अयोध्या में रामलला के मंदिर भी चले जाते, अगर उस दौरान मंदिर सुप्रीम कोर्ट में विवादित केस के रूप में नहीं होता.
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