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नई दिल्ली. किसी भी देश के लिए उसका राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) आन-बान-शान होता है. झंडे के रंग और डिजाइन देखकर ही देश की पहचान हो जाती है. जैसे भारत के झंडे में केसरिया रंग साहस और बलिदान का रंग है. सफेद रंग सच्चाई, शांति और पवित्रता का तो हरा रंग संपन्नता का है. इसी तरह दुनिया के सभी देशों के झंडों का मतलब भी अलग-अलग होता है. लेकिन क्या आपने कभी किसी भी देश के राष्ट्रीय ध्वज में बैंगनी रंग (Purple Colour in National Flags) देखा है? शायद नहीं. हर देश अपने झंडे में अलग-अलग रंग संजोए हुए हैं. लेकिन, झंडे में बैंगनी रंग से देशों ने दूरी बना रखी है. ये बेहद दुर्लभ है. आइए जानते हैं इसकी वजह.
वर्ल्डोमीटर्स (worldometers) वेबसाइट के मुताबिक, दुनिया में 195 देश हैं, इसमें सिर्फ 2 देश ऐसे हैं जिनके राष्ट्रीय ध्वज में बैंगनी रंग है. अन्य किसी भी देश के झंडे पर बैंगनी रंग नहीं है. इसके पीछे की वजह भी काफी रोचक है. साल 1800 तक बैंगनी रंग को बनाना कठिन था. बनता भी था तो महंगा होता था. क्वीन एलिजाबेथ ने घोषणा कर दी थी, कि रॉयल फैमिली के अलावा कोई भी बैंगनी रंग नहीं पहनेगा. इस वजह से बैंगनी रंग को खरीदना आम लोगों के बस की बात नहीं थी.
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दरअसल, उस समय बैंगनी रंग लेबनान के छोटे समुद्री घोंघे से पाया जाता था. एक ग्राम बैंगनी रंग बनाने में 10 हजार से ज्यादा घोंघे मारे जाते थे. इसके बाद डाई बनाने में काफी मेहनत और खर्च लगता था. ऐसे में 1 पाउंड बैंगनी डाई खरीदने में 41 लाख रुपये तक खर्च आ जाता था. इसलिए देशों ने बैंगनी रंग को झंडों में नहीं रखा. हालांकि बाद में साल 1856 में विलियन हेनरी पर्किन सिंथेटिक बैंगनी डाई बनाने में कामयाब हुए, जिसके बाद इसकी कीमतें कम होने लगीं. लेकिन तब तक ज्यादातर देशों ने बैंगनी रंग से दूरी बना ली थी.
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दुनिया में केवल दो ही देश ऐसे हैं, जिनके झंडे में बैंगनी रंग है. इनमें पहला देश डॉमिनिका है, जहां इसे साल 1978 में अपनाया गया था. वहीं दूसरा देश निकारागुआ है. इसके झंडे को 1908 में अपनाया गया और इसे आधिकारिक मान्यता साल 1971 में मिली.
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