Rahul Gandhi क्यों नहीं लगाते नेहरू सरनेम? उनके परिवार को कैसे मिला गांधी उपनाम
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Rahul Gandhi क्यों नहीं लगाते नेहरू सरनेम? उनके परिवार को कैसे मिला गांधी उपनाम

Gandhi Surname Reason: राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और उनका परिवार नेहरू सरनेम (Nehru Surname) क्यों नहीं लगाता है, इसके पीछे एक खास वजह है. आइए इसके बारे में जानते हैं.

Rahul Gandhi क्यों नहीं लगाते नेहरू सरनेम? उनके परिवार को कैसे मिला गांधी उपनाम

Rahul Gandhi Surname: संसद सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने गांधी परिवार (Gandhi Family) पर निशाना साधते हुए सवाल पूछा था कि वे नेहरू (Nehru) सरनेम क्यों नहीं लगाते हैं, गांधी ही क्यों लगाते हैं? दरअसल इसका जवाब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के दादा फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) के सरनेम बदलने के किस्से से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि फिरोज गांधी का सरनेम पहले घांडी था. हालांकि, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने अपना सरनेम बदलकर गांधी कर लिया था. फिरोज गांधी के बदले सरनेम को आगे राजीव गांधी और फिर उनके बेटे राहुल गांधी अपने नाम के आगे लगा रहे हैं. भारतीय परंपरा के अनुसार उन्होंने अपने पिता का सरनेम अडॉप्ट किया है.

स्वाधीनता आंदोलन की फिरोज के जीवन में भूमिका

बता दें कि फिरोज गांधी का जन्म 12 सितंबर, 1912 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी में हुआ था. उनके पिता का नाम जहांगीर घांडी और माता का नाम रतिमाई था. पिता के निधन के बाद युवा फिरोज को उनकी आंटी ने पाला था. वह उन्हें लेकर आज के प्रयागराज आ गई थीं. फिरोज घांडी 18 साल की उम्र में एविंग क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ते थे. तब उनके जीवन में बड़ा ट्विस्ट आया था. नेहरू परिवार और स्वाधीनता आंदोलन ने उनके जीवन में अहम भूमिका निभाई थी.

नेहरू परिवार से कैसे बढ़ीं नजदीकियां?

जान लें कि जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू जो बाद में फिरोज की सास बनीं, उनकी मुलाकात फिरोज से आंदोलन के दौरान हुई थी. एविंग क्रिश्चियन कॉलेज के बाहर जब कमला नेहरू धरना दे रही थीं तब वह पहली बार फिरोज से मिली थीं. इसके बाद से फिरोज का आनंद भवन आना-जाना बढ़ गया था. वहीं, उनकी मुलाकात इंदिरा प्रियदर्शिनी से हुई थी.

फिरोज-इंदिरा की शादी

गौरतलब है कि फिरोज के परिवार की हैसियत नेहरू परिवार से कम थी. शुरुआत में नेहरू परिवार को फिरोज और इंदिरा के रिश्ते की बात रास नहीं आई थी, लेकिन बाद में 26 मार्च, 1942 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए थे. महात्मा गांधी ने भी शादी के बाद दोनों को आशीर्वाद दिया था.

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