विश्व प्रसिद्ध अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में अकीदत रखने वाले हजारों लोग देश और दुनिया से जियारत करने पहुंचते हैं यहां न सिर्फ लोगों की मुराद पूरी होती है बल्कि अमन चैन व भाईचारे का पैगाम भी यहां से किया जाता है इस वर्ष ख्वाजा गरीब नवाज का 811 और मनाया जा रहा है.
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Ajmer: अजमेर ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में स्थित मुगलकालीन ऐतिहासिक देगों का इस उर्स के दौरान 15 दिन की अवधि का ठेका छोड़ा गया है. इस वर्ष रिकॉर्ड 3 करोड़ 70 लाख रुपए में यह ठेका छूटा है. यह ठेका उर्स के झंडे के दिन से शुरू होगा और बड़े कुल की रस्म के दिन तक रहेगा. इस दौरान देश और दुनिया से आने वाले जायरीन अपनी मुरादे पूरी होने या मन्नत मांगने के लिए दोनों देगो में चढ़ाव चढ़ाते है.
विश्व प्रसिद्ध अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में अकीदत रखने वाले हजारों लोग देश और दुनिया से जियारत करने पहुंचते हैं यहां न सिर्फ लोगों की मुराद पूरी होती है बल्कि अमन चैन व भाईचारे का पैगाम भी यहां से किया जाता है इस वर्ष ख्वाजा गरीब नवाज का 811 और मनाया जा रहा है. इसे लेकर विभिन्न व्यवस्थाएं की जा रही है तो वही अजमेर कि इस दरगाह में मुगलकालीन दो देग भी बनी है. जिनमें हजारों लोग अपनी मुरादे पूरी होने के साथ ही मन्नत मांगने के दौरान चढ़ावा चढ़ाते हैं और इस चढ़ावे को लेकर ख्वाजा गरीब नवाज की कमेटियों द्वारा ठेका छोड़ा जाता है.
इस वर्ष कोविड-19 महामारी के 2 साल बाद बड़ी संख्या में जायरीन आने की उम्मीद है. ऐसे में यह 1 वर्ष के दौरान होने वाला 15 दिन का ठेका 3 करोड़ 70 लाख में जोड़ा गया है इससे पहले 2022 में यही ठेका एक करोड़ 85 लाख में छोड़ा गया था. तो वहीं उससे पहले 2021 में यह ठेका दो करोड़ 700000 में छोड़ा गया था.
अजमेर दरगाह में सेवा देने वाले ख़ादिम ही इन दोनों देशों का ठेका ले सकते हैं.
दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान और अंजुमन शेखजादगान की ओर से संयुक्त रूप से यह ठेका दिया गया है. देग के ठेके की बोली खादिमों द्वारा निर्धारित की जाती हैं. खादिम समुदाय के लोग ही देग का ठेका ले सकते है .
अंजुमन सैयदजादगान के 811 वें उर्स के कन्वीनर सैयद हसन हाशमी ने बताया कि कोरोना से पहले उर्स और पुष्कर मेले का ठेका 25 दिन का संयुक्त रूप से होता था . अब दोनों के लिए अलग- अलग कर दिया है. इस बार पहली बार केवल उर्स का ही ठेका रिकॉर्ड 3.70 करोड़ रुपए पहुंचा है. इसके अलावा अन्य तमाम व्यवस्थाओं के लिए अलग से ठेका निकाला जाएगा. उन्होंने बताया कि आगामी 18 जनवरी से उर्स का मेला शुरू होगा झंडे की रस्म के साथ ही विभिन्न धार्मिक आयोजन इस दौरान किए जाएंगे वहीं उन्होंने कहा कि इस बार कोविड-19 महामारी के सभी पाबंदी हटा दी गई है. ऐसे में देश-विदेश से आने वाले जायरीन बड़ी संख्या में पहुंचने की उम्मीद है इसे लेकर व्यापक इंतजाम भी किए गए हैं.
अजमेर दरगाह में मौजूद बड़ी देग में 4800 किलो पकवान एक साथ बनाया जा सकता है वंही छोटी देग में 2240 किलो पकवान बनाया जाता है यह सभी पकवान दरगाह परिसर में आने वाले जायरीन में वितरित किया जाता है यह पकवान वह बनवाते हैं जिनकी मुराद पूरी होती है या फिर उन्होंने कोई मुराद रखे हो . खास बात यह है की दरगाह में मौजूद दोनों देख में केवल शुद्ध शाकाहारी पकवान ही बनाया जाता है. बड़ी देख अकबर और छोटी देख शाहजहां की गवाही की प्रतीक मानी जाती है.
उर्स की सभी रस्में 22 जनवरी से 1 फरवरी 2023 तक पूरी की जाएंगी. परंपरा के अनुसार दरगाह में जन्नती द्वार चांद रात यानी 22 जनवरी 2023 के दिन खोला जाएगा. अगर इस दिन रजब महीने का चांद दिखाई दे तो रात से ही उर्स का त्योहार शुरू हो जाएगा. ग़रीब नवाज़ की क़ब्र पर ग़ुस्ल करने की प्रक्रिया देर रात से शुरू होगी. यदि चंद्रमा दिखाई न दे तो अगले दिन से ये अनुष्ठान किए जाएंगे.
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