2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से डॉ. जितेंद्र सिंह एक बार फिर ताल ठोक सकते हैं तो वहीं लीलाधर सैनी भी यहां से कांग्रेस के टिकट की मांग कर रहे हैं. वहीं चर्चाएं है कि डॉ. जितेंद्र सिंह इस बार अपनी जगह अपने पुत्रवधू को टिकट दिलवाना चाहते हैं. वहीं भाजपा की ओर से धर्मपाल सिंह एक बार फिर टिकट की दावेदारी कर रहे हैं,
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Khetri Jhunjhunu Vidhansabha Seat : शेखावाटी के तांबे के नाम से मशहूर खेतड़ी विधानसभा सीट का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. इस सीट पर पिछले कई सालों से त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. जितेंद्र सिंह विधायक है.
खेतड़ी विधानसभा सीट से अब तक सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड कांग्रेस नेता डॉ. जितेंद्र सिंह के नाम है. डॉ. जितेंद्र सिंह ने 1988 में हुए उप चुनाव में पहली दफा जीत दर्ज की थी. इसके बाद वह 1993, 1998, 2008 और 2018 में जितने में कामयाब रहे. वहीं इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे शीशराम ओला भी दो बार विधायक चुने गए हैं. शीशराम ओला ने यहां से 1957 और 1962 में दो बार जीत हासिल की. इसके अलावा भाजपा नेता माला राम भी यहां से लगातार जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं.
खेतड़ी विधानसभा सीट पर गुर्जर समुदाय का सबसे ज्यादा दबदबा माना जाता है और यहां कई बार चुनावी समीकरण गुर्जर बनाम गैर गुर्जर का भी बनता रहा है. वहीं जाट, दलित, सैनी और राजपूत समुदाय का भी यहां खासा दबदबा माना जाता है.
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से डॉ. जितेंद्र सिंह एक बार फिर ताल ठोक सकते हैं तो वहीं लीलाधर सैनी भी यहां से कांग्रेस के टिकट की मांग कर रहे हैं. वहीं चर्चाएं है कि डॉ. जितेंद्र सिंह इस बार अपनी जगह अपने पुत्रवधू को टिकट दिलवाना चाहते हैं. वहीं भाजपा की ओर से धर्मपाल सिंह एक बार फिर टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, तो वहीं पूर्व विधायक दाता राम की पुत्री भी यहां से टिकट मांग रही हैं. इसके अलावा बसपा ने मनोज घुमरिया को अपना उम्मीदवार बनाया है.
1951 के चुनाव में खेतड़ी में दो विधानसभा सीटें थी. जिसमें कांग्रेस ने महादेव प्रसाद बांका और नाहर सिंह को टिकट दिया तो वहीं राम राज्य परिषद से ठाकुर रघुवीर सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में एक सीट पर राम राज्य परिषद के ठाकुर रघुवीर सिंह 13,114 मतों से जीतने में कामयाब हुए तो दूसरी सीट महादेव प्रसाद बांका ने 10,925 मतों से जीता.
1957 के विधानसभा चुनाव में भी यहां से दो सीटें थी, जिसमें कांग्रेस ने एक बार फिर दो उम्मीदवार उतारे. जहां एससी सीट से कांग्रेस ने महादेव प्रसाद बांका को टिकट दिया तो वहीं सामान्य सीट से शीशराम ओला को चुनावी मैदान में उतारा. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी से सामान्य सीट पर ख्याली राम ने ताल ठोका. साथ ही निर्दलीय के तौर पर शिव नारायण छछिया अनुसूचित जाति सीट से उतरे. इस चुनाव में सामान्य सीट से कांग्रेस के शीशराम ओला 19,620 मतों से विजयी हुए तो वहीं अनुसूचित जाति से के लिए आरक्षित सीट से महादेव प्रसाद 11,539 मतों से जीतने में कामयाब हुए.
1962 के विधानसभा चुनाव में परिसीमन के बाद यहां एक सामान्य सीट रह गई. यहां से कांग्रेस ने शीशराम ओला को टिकट दिया तो वहीं स्वराज पार्टी से चुन्नीलाल चुनावी मैदान में उतरे. चुन्नीलाल को 10,562 मत मिले तो वहीं शीशराम ओला 10,626 मतों से जीते में कामयाब हुए. यह मुकाबला बेहद करीबी मुकाबला रहा.
1967 के विधानसभा चुनाव में स्वराज पार्टी ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए फिर से रघुवीर सिंह को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस की ओर से शीशराम ओला चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में लगातार दो बार जीत हासिल करने के बाद शीशराम ओला को चुनावी शिकायत का सामना करना पड़ा, जबकि स्वराज पार्टी के उम्मीदवार रघुवीर सिंह एक बार फिर 23,981 मतों के साथ जितने में कामयाब हुए.
1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और स्वराज पार्टी दोनों ने अपना उम्मीदवार बदला. जहां कांग्रेस ने प्रहलाद सिंह को टिकट दिया, वहीं स्वराज पार्टी से रामजीलाल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में रामजीलाल को 14,433 मत मिले और इसके साथ ही रामजीलाल की इस चुनाव में जीत हुई और कांग्रेस को लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा.
1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर प्रहलाद सिंह पर ही दांव खेला, जबकि जनता पार्टी की ओर से मालाराम चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में प्रहलाद सिंह को 6,724 मत मिले जबकि जनता पार्टी के मालाराम 16,360 मत पाने में कामयाब हुए और उसके साथ ही मालाराम की जीत हुई.
1980 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालाराम को टिकट दिया जबकि कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और रणदीप को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में खेतड़ी की जनता को एक बार फिर माला राम ही रास आए और उन्हें 24,647 मतों से जिताया जबकि कांग्रेस के रणदीप चुनाव हार गए.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और नरेश पाल सिंह को चुनावी मैदान में उतारा जबकि भाजपा का अटूट विश्वास मालाराम के साथ रहा. इस चुनाव में मालाराम ने 25,184 मतों से जीत की हैट्रिक लगाई तो वहीं नरेश पाल सिंह की करारी हार हुई.
विधायक रहते हुए 23 मई 1987 को मालाराम का निधन हो गया. जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव करने पड़े. इस उप चुनाव में कांग्रेस ने डॉ. जितेंद्र सिंह को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी की ओर से हजारीलाल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के डॉ. जितेंद्र सिंह की 34,958 मतों से जीत हुई जबकि यह सीट कांग्रेस भाजपा के हाथ से निकल गई.
1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने डॉ. जितेंद्र सिंह को ही चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं अबकी बार हजारीलाल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के जितेंद्र सिंह 21,387 मत मिले तो वहीं निर्दलीय ही चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हजारीलाल 22,006 मतों से जितने में कामयाब हुए.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार और डॉ. जितेंद्र सिंह पर ही दांव खेला जबकि भाजपा ने दाताराम को टिकट दिया. इस चुनाव में बीजेपी के दाता राम 31,979 मत हासिल करने में कामयाब हुए जबकि कांग्रेस के जितेंद्र सिंह को 38,071 मत मिले और उसके साथ ही डॉ. जितेंद्र सिंह कांग्रेस को पुन: विधायकी दिलाने में कामयाब हुए.
1998 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला डॉ. जितेंद्र सिंह बनाम दाताराम हुआ. इस चुनाव में दाताराम निर्दलीय ही किस्मत आजमा रहे थे. वहीं डॉ. जितेंद्र सिंह को कांग्रेस से ही टिकट मिला. इसके साथ ही डॉ. जितेंद्र सिंह की 30,300 मतों से एक बार फिर जीत हुई तो दाताराम 28,965 मत पाकर भी चुनाव हार गए.
2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से दाताराम को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस से जितेंद्र सिंह ही चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में आखिरकार बीजेपी के दाताराम जीतने में कामयाब हुए और लंबे समय बाद खेतड़ी में बीजेपी की वापसी हुई. इस चुनाव में खेतड़ी की जनता ने दाताराम को 49,769 वोट दिए तो वहीं डॉ. जितेंद्र सिंह को लगातार दो बार चुनाव जीतने के बाद इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.
2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए धर्मपाल को टिकट दिया जबकि कांग्रेस की ओर से फिर से जितेंद्र सिंह ही चुनावी ताल ठोकने उतरे. इस चुनाव में बीजेपी के धर्मपाल कांग्रेस के दिग्गज नेता जितेंद्र सिंह के आगे बीजेपी की सियासी जमीन बचाने में नाकाम रहे और उसके साथ ही डॉ. जितेंद्र सिंह की 33,639 मतों से जीत हुई .
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से दाताराम ने फिर से किस्मत आजमाई तो वहीं कांग्रेस ने अपने दिग्गज और सबसे मजबूत सिपाही डॉ. जितेंद्र सिंह को ही टिकट दिया जबकि निर्दलीय के तौर पर उतरे पूरणमल सैनी ने इस चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया. इस चुनाव में बीजेपी के दाता राम तीसरे और कांग्रेस के जितेंद्र सिंह दूसरे स्थान पर रहे. जबकि बसपा के पूरणमल सैनी 42,432 मतों से जीते में कामयाब हुए.
2018 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला त्रिकोणीय था. इस चुनाव में बीजेपी की ओर से धर्मपाल सिंह गुर्जर चुनावी मैदान में उतरे तो कांग्रेस ने डॉ. जितेंद्र सिंह को ही टिकट दिया, जबकि बसपा से पूरणमल सैनी एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के डॉ. जितेंद्र सिंह 57,153 मतों से जीतने में कामयाब हुए जबकि महज 957 मतों से भाजपा के धर्मपाल गुर्जर को हार का सामना करना पड़ा. वहीं पूरणमल सैनी इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे.