जहां गरजती थी डकैतों की बंदूकें वहां अब पेड़ों पर लदे हैं पपीते, हो रहा लाखों का फायदा
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जहां गरजती थी डकैतों की बंदूकें वहां अब पेड़ों पर लदे हैं पपीते, हो रहा लाखों का फायदा

किसान जगदीश और सहायक कृषि अधिकारी पिंटू मीना  के मार्गदर्शन और कृषि विभाग के प्रयासों की वजह से इस डांग क्षेत्र में अब पपीते की मिठास घुलने लगी है.

पपीते की खेती से किसानों को हो रहा लाभ.

Dholpur: धौलपुर जिले के बीहड़ क्षेत्र में खेती होने की कोई संभावना नही थी. किसान जगदीश और सहायक कृषि अधिकारी पिंटू मीना के मार्गदर्शन और कृषि विभाग के प्रयासों की वजह से इस डांग क्षेत्र में अब पपीते की मिठास घुलने लगी है.

डांग क्षेत्र की मिट्टी पपीते के पौधों के लिए अब उपयुक्त मानी गई है. एक पौधे से तकरीबन 50 किलो पपीता (Papaya) तैयार किया जाएगा. जिले में अब उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से पपीते की खरीदारी नहीं करनी पड़ेगी. कई दूरी तक फैले बीहडी डांग क्षेत्र अब तक केवल बीहड़ बागी बन्दूक डकैतों के लिए ही जाना जाता था.

पपीते की खेती से किसान कमा रहे लाखों रुपए
धौलपुर जिले के सरमथुरा उपखंड के डांग क्षेत्र में अब घुलने लगी है पपीता की मिठास. सहायक कृषि अधिकारी पिंटू मीना के मार्गदर्शन से किसानो की मेहनत रंग ला रही है. अब एक बीघा की खेती में किसान को लाखो रुपये की आमदनी हो रही है. पपीते की फसल वर्ष भर के अंदर ही फल देने लगती है, इसलिए इसे नकदी फसल कहा जाता है. इसको बेचने के लिए कच्चे से लेकर पक्के होने तक किसानो के पास काफी समय होता है. साथ ही फसलों के उचित दाम भी मिलते हैं.

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पथरीली है यहां की जमीन

सरमथुरा उपखंड में बड़ागांव के किसान जगदीश  ने अपने एक बीघा खेत में सैकड़ो पपीते के पौधे लगाए है. जंगली पथरीली क्षेत्र होने के कारण किसानो को एक बीघा खेत तैयार करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था. समतल क्षेत्र नहीं होने के कारण अब तक यहां किसी किसानो ने खेती नहीं की थी. यह पहला मौका है जब बीहड़ क्षेत्र में खेती की गई. किसान जगदीश को उपखंड स्तर पर स्वाधीनता दिवस समारोह में सम्मानित किया गया. साथ ही दूसरे किसानों को भी पपीते की पैदावार करने के लिए प्रेरित किया.

इस बदलते हुए युग मे खेती के तौर तरीके भी बदलने पड़ेंगे, परम्परागत खेती की तुलना में तकनीकी खेती अपनाकर आप आर्थिक रूप से सक्षम हो सकते है. फल बगीचे सब्जियों की खेती किसानों की आय बढ़ाने में सार्थक पहल साबित हो सकती है. कृषि विभाग टीम सरमथुरा के प्रयासों से प्रगतिशील किसान जगदीश बड़ागांव ने हमारे मार्गदर्शन में पपीते की खेती प्रारंभ की जो कि सरमथुरा क्षेत्र में पहला प्रयास है. किसान जगदीश ने ग्रीन बैरी वैरायटी (green berry variety) के पौधे लखनऊ से मंगवा कर लगाये है, जो वर्तमान में अच्छी बढ़वार के साथ खेतो में लहला रहे है. सभी पौधों में फल आ चुके हैं जो कि अब जल्द ही पक कर तैयार हो जाएंगे. धौलपुर में लगाए बाग से प्रति सीजन 300  क्विंटल पपीते की खेप बाजार में लाई जाएगी. जिससे कृषि मंडी में काफी सस्ता पपीता  बेचा जा सकेगा तो वही किसान को करीब 2 लाख रुपए प्रति सीजन आय होगी.

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3 से 5 साल तक फल देगा पपीते का एक पौधा
एक पपीते के पौधे की उम्र 3 से 5 वर्ष तक होती है. धौलपुर में लगाए गए पौधों से किसानो को 4 साल तक लगातार आय मिलती रहेगी. जिनमें किसानो को सिर्फ 20 हजार रुपए प्रति सीजन पेड़ों के रख-रखाव में खर्च करना पड़ेगा. धौलपुर में शुरू की गई नवाचार के लिए लखनऊ से 25 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से ग्रीन बेरी वैरायटी के पौधों को खरीदकर रोपा गया था. जिनमें कीटनाशक (insecticide) दवा को मिलाकर पहले सीजन में 45 हजार रुपए का खर्चा किसान को आया था.

इस इलाके में फसल उगाना क्यों है चुनौती?
धौलपुर जिले में कई किलोमीटर तक बीहडी डांग क्षेत्र है जहा पपीते का बाग लगाया गया है. इसे एक पथरीली इलाके का क्षेत्र माना जाता है. जहां किसी भी फसल या फल के लिए एक सी जमीन नहीं मिलती है. जंगली क्षेत्र होने की वजह से यहां दूर-दूर तक हरियाली भी नजर नहीं आती है. अभी तक धौलपुर का डांग क्षेत्र सिर्फ बागी बंदूक डकैतों के लिए जाना जाता था. 

पपीता है सेहत के लिए फायदेमंद
आम के बाद पपीता में विटामिन ए (Vitamin A) का सबसे अच्छा स्रोत है. यह कोलेस्ट्रोल, सुगर और वजन घटाने में भी काफी मदद करता है, इसी कारण डॉक्टर (Doctor) भी इसे खाने की ज्यादातर सलाह देते हैं. यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है. पपीते में पाया जाने वाला एन्जाइम ‘पपेन’(Papen) औषधीय गुणों से युक्त होता है. यही कारण है कि पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है. बढ़ते बाज़ार की मांग को देखते हुए किसानो ने इसकी खेती की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया, जिससे सिर्फ एक दशक में पपीते की खेती तीन गुना बढ़ गई है.

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