Chittorgarh News: जानें 8 वीं शताब्दी के मां गजलक्ष्मी मंदिर की खासियत, राजा के समय से दीपावली की रात होती आ रही है महा आरती
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Chittorgarh News: जानें 8 वीं शताब्दी के मां गजलक्ष्मी मंदिर की खासियत, राजा के समय से दीपावली की रात होती आ रही है महा आरती

Chittorgarh News: यूं तो देश में गिने चुनी संख्या में ही धन की देवी मां लक्ष्मी के देखने को मिलते हैं. वहीं चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक दुर्ग क्षेत्र में अलग-अलग पांच स्थानों पर लक्ष्मी मां की पांच प्रतिमाएं विराजमान हैं.

 

Chittorgarh News: जानें 8 वीं शताब्दी के मां गजलक्ष्मी मंदिर की खासियत, राजा के समय से दीपावली की रात होती आ रही है महा आरती

Chittorgarh News: चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक दुर्ग क्षेत्र में अलग-अलग पांच स्थानों पर लक्ष्मी मां की पांच प्रतिमाएं विराजमान है. राजा महाराजाओं की ओर से स्थापित कुछ प्रतिमाएं मंदिर में विराजमान है, तो कुछ प्रतिमाएं किसी विशेष स्थान पर मौजूद हैं.  इन सबमें 8 वीं सदी के गज लक्ष्मी मंदिर अपनी खास अहमियत रखता है. माना जाता है कि गज लक्ष्मी मां की अपने भक्तों पर विशेष कृपा रहती है. चित्तौड़गढ़ वासी मां गजलक्ष्मी में बड़ी आस्था रखते है. दीपावली पर्व की रात लोग अपने अपने घरों में लक्ष्मी पूजन के बाद गजलक्ष्मी मंदिर के दरबार में हाजरी लगाने पहुंचते है.

यूं तो पूरे सालभर देश के अलग-अलग कोनों श्रद्धालु चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित मां गजलक्ष्मी के दर्शन करने दुर्ग पर आते रहते है. वहीं विशेषकर पूरे साल में सिर्फ दीपावली महोत्सव का दिन मां गजलक्ष्मी की पूजा के लिए विशेष माना जाता है.

इस दिन मां गजलक्ष्मी को सोने चांदी के आभूषण पहना कर अलग-अलग दिन फूलों से अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है. वहीं दीपावली महोत्सव की रात सवा 12 बजे की महा आरती में ना केवल चित्तौड़गढ़, बल्कि दूर दराज से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां की कृपा पाने उमड़ पड़ते है. दीपावली पर्व की शाम से ही श्रद्धालु मां लक्ष्मी के दर्शन पूजा और महाआरती में शामिल होने के लिए ऐतिहासिक दुर्ग पर जुटना शुरू हो जाते है, जिसके चलते दीपावली के दिन यातायात विभाग की ओर से दुर्ग में प्रवेश करने वाले पाडन पोल द्वार से लेकर गजलक्ष्मी मंदिर के पास स्थित सूरजपोल गेट तक चप्पे चप्पे पर ट्रैफिक पुलिस के जवान तैनात किए जाते हैं. बावजूद इसके आधी रात को दुर्ग क्षेत्र में यातायात जाम की स्थिति पैदा हो जाती है.

मां गजलक्ष्मी मंदिर के इतिहास की बात करें तो माना जाता है कि सैंकडों साल पहले बप्पा रावल ने दुर्ग के मध्य पूर्व भाग में मां गज लक्ष्मी मंदिर की स्थापना की थी. मुगलों के आक्रमण में दुर्ग के अधिकांश मंदिर टूट गए थे. इसी तरह गज लक्ष्मी मंदिर की छत और दीवार भी टूटी हुई थी. जबकि मंदिर में विराजित मां लक्ष्मी की प्रतिमा अखंडित रही. ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के चलते प्रतिबंध के कारण सालों तक मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हो सका. अभी हाल ही में दस बारह साल पहले मां गजलक्ष्मी मंदिर की छत, दीवार और सीढियों का निर्माण कार्य करवाया जा सका. दूर्ग के भ्रमण मार्ग की मुख्य सड़क से करीब 50 मीटर दूर स्थित मंदिर परिसर में चबूतरे पर एक छोटे से मंदिर में मां गजलक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है. प्रतिमा में मां लक्ष्मी के दोनों तरफ दो गज यानी हाथी विराजमान है, जो अपनी सूंड से मां लक्ष्मी का अभिषेक करते नज़र आ रहे है.

मां गजलक्ष्मी मंदिर परिसर में मौजूद लक्ष्मी नाथ यानी भगवान विष्णु का मंदिर और मुख्य मंदिर परिसर से करीब 500 मीटर दूर स्थित भगवान कुबेर के मंदिर को लेकर अजीबोगरीब विडम्बना देखने को मिलती है. इन दोनों ही मंदिरों में न तो भगवान विष्णु और न भगवान कुबेर की मूर्ति मौजूद है. जानकारी में आया कि इसी वजह से पुरातत्व विभाग ने दोनों ही मंदिरों के गेट पर ताला लगा इन मंदिरों को बंद कर दिया. बात करें इन दोनों मंदिरों के रखरखाव की तो मंदिर परिसर में मौजूद भगवान विष्णु के मंदिर मुख्य मंदिर के पास होने से देखरेख हो जाती है. लेकिन भगवान कुबेर का मंदिर जाने के लिए कच्चे रास्ते से होकर जाना पड़ता है. वहीं बीच रास्ते में सीताफल के बगीचों की दीवारें फांद कर उबड़ खाबड़ रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है.

स्थानीय दुर्ग के गाइड के अनुसार मुग़लकों के आक्रमण के बाद जहां एक और गजलक्ष्मी मंदिर जीर्ण क्षीर्ण होने की बात सामने आई. वहीं तब से ही भगवान विष्णु और कुबेर मंदिर के गर्भ में मौजूद मूर्तियों का भी कुछ अता पता नहीं चल सका. हालांकि एक मंदिर के भवन में अलंकित कलाकृतियों में भगवान विष्णु जी की पहचान और मंदिर में गरूड़ स्थान की वजह से इस मंदिर की विष्णु भगवान के मंदिर के रूप में पहचान हो सकी. वहीं इतिहासकारों ने दूसरे मंदिर को कुबेर मंदिर के रूप में पहचाना.

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