पूलासर गांव में 400 साल से ही कोई भी दूल्हा घोड़ी नहीं चढ़ा है. शादियों में बाकि सभी रस्में पूरे रीति-रिवाज से निभाई जाती है, लेकिन यहां दूल्हे को घोड़ी पर नहीं बिठाया जाता है. लोगों को कहना है कि हम अपने पूर्वजों की पंरपरा निभा रहे हैं.
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Churu News: इंडिया की शादियों में अलग-अलग प्रकार की कई रस्में निभाई जाती हैं. आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां कोई भी दूल्हा शादी में घोड़ी नहीं चढ़ता है. ये पढ़ आप सोच रहें होंगे की यह कोई जाति विशेष का मामला होगा, लेकिन ऐसा नहीं है, बल्कि इसके पीछे बहुत पुराना इतिहास छुपा है.
राजस्थान के चुरू के सरदारशहर के पास पूलासर गांव में 400 साल से ही कोई भी दूल्हा घोड़ी नहीं चढ़ा है. शादियों में बाकि सभी रस्में पूरे रीति-रिवाज से निभाई जाती है, लेकिन यहां दूल्हे को घोड़ी पर नहीं बिठाया जाता है. लोगों को कहना है कि हम अपने पूर्वजों की पंरपरा निभा रहे हैं. आइए जानते हैं इसके पीछे का इतिहास क्या है?
जानकारी के अनुसार, दूल्हे को घोड़ी पर न बिठाने के पीछे का कारण रिवायतगांव में बने लोक देवता दादो जी महाराज है. कहते हैं आज से करीब 675 सालों पहले इस गांव को पुलाराम सारण नाम के शख्स ने बसाया था. ये गांव बहुत बड़ा था और लोग यहां प्यापार करते थे. साथ ही, ये जगह देवी-देवाताओं के लिए भी प्रसिद्ध है और यहां ब्राह्मण ज्यादा होने के कारण पूजा-पाठ ज्यादा होता है.
400 साल पुरानी कहानी
घोड़ी पर नहीं बैठने की परपंरा आज से करीब 400 सालों पहले उगाराम नाम का शख्स से जुड़ी हुई है. पूलासर को एक आजाद गांव कहा जाता था, लेकिन उस समय के बीकानेर के राजा यहां से टैक्स मांगता था. वहीं, यहां के लोग टैक्स देने से मना कर दिया और कहा कि हम ब्राह्मण हैं और पूजा करके अपना जीवन चलाते है, लेकिन राजा नहीं माना और उसने गांव पर चढ़ाई कर दी.
सिर काटकर दिया टैक्स
यह देख उगाराम घोड़ी पर बैठकर राजा के सामने लड़ने चला गया. वहां उसने राजा से कहा कि आप गांववालों से टैक्स न लें, लेकिन राजा ने अपनी जिद नहीं छोड़ी, वहीं,
उगाराम ने राजा को अपना सिर काटकर टैक्स के रूप में दिया. इसके बाद से यहां के लोगों ने उगाराम को देवता बना लिया और उसे पूजन लगे.
गांव में बना दादो जी महाराज का मंदिर
इस गांव के लोग उगाराम को दादो जी महाराज के नाम पुकारते हैं. इनका मंदिर गांव में स्थित है. गांव के लोगों में दादो जी महाराज की पूजा करते हैं, इसलिए यहां के लोग घोड़ी पर नहीं बैठते हैं.