असली बूटा सिंह की Love Story गदर से भी ज्यादा दर्दनाक, पाकिस्तान जाने पर हुआ ये...
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असली बूटा सिंह की Love Story गदर से भी ज्यादा दर्दनाक, पाकिस्तान जाने पर हुआ ये...

सनी देओल और अमीषा पटेल की फिल्म 'गदर 2' लगातार चर्चा में है. पाकिस्तान की जै़नब और सिपाही बूटा सिंह की प्रेम कहानी. दावा किया जाता है कि सनी देओल और अमीषा पटेल की 'गदर: एक प्रेम कथा' (Gadar) बूटा सिंह की रियल लाइफ स्टोरी पर ही आधारित है.

असली बूटा सिंह की Love Story गदर से भी ज्यादा दर्दनाक, पाकिस्तान जाने पर हुआ ये...

Real story of Gadar Tara Singh: मोहब्बत के बारे में किसी शायर ने ठीक लिखा है कि ''मैं मोहब्बत का इक नया अंदाज लिखती हूं, दो जिस्म इक जान लिखती हूं, तेरे यादों की बेचैनी पाल रखी हैं, बिन छूए वो प्यारा एहसास लिखती हूं''. मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज होती है. जब ये होती है तो बस कुछ भुला देती है. इतिहास की प्रेम की दांस्तानों में कुर्बानियां है जिद है पगलपन है. कहानियों में जिंदगी से बढ़ कर मोहब्बत है. इतिहास में दर्ज कुछ कहानियों को हम आज बताने जा रहे हैं जो आपको रोमांचित करेंगी. ये कहानी है पाकिस्तान की जै़नब और सिपाही बूटा सिंह. दावा किया जाता है कि सनी देओल और अमीषा पटेल की 'गदर: एक प्रेम कथा' (Gadar Film Based on Sipahi Boota Singh Life) बूटी सिंह की रियल लाइफ स्टोरी पर ही आधारित है. मोहब्बत की इस कहानी का अंत भी अधूरा रह गया.

1947 की एक प्रेम कहानी

सनी देओल और अमीषा पटेल की फिल्म 'गदर 2' लगातार चर्चा में है.  फिल्म गदर की कहानी रियल लाइफ पर आधारित है. आखिर कौन थे बूटा सिंह? ज़ैनब और बूटा सिंह की प्रेम कहानी दो मुल्कों ने एक प्रेमी जोड़े को अलग कर दिया. बूटा सिंह पत्नी को लेने पाकिस्तान गए और इधर ज़ैनब ने दूसरी शादी कर ली थी. बूटा सिंह को पुलिस उठा ले गई बूटा सिंह ने अपनी जान दे दी हर तरफ़ हुई 'शहीद-ए-मोहब्बत' की कहानी की चर्चा पूरी नहीं की गई मरते इंसान की आखिरी इच्छा बूटा सिंह की कब्र पर विवाद.

गदर की कहानी रियल लाइफ पर आधारित है

2001 में थी आई गदर एक प्रेम कथा

गदर एक प्रेमकथा एक सच्ची कहानी पर आधारित हिन्दी फिल्म है. ये फिल्म आधारित है द्वितीय विश्व युद्द के दौरान बर्मा (अब म्यांमार) में ब्रिटिश सेना में नौकरी करने वाले फौजी बूटा सिंह की प्रेम कहानी पर आधारित है.

बूटा सिंह अंग्रेज़ आर्मी के सिपाही थे. उनका जन्म जालंधर, पंजाब में हुआ था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उन्होंने लॉर्ड माउंटबैटन के नेतृत्व में दूसरे विश्व युद्ध में भी भाग लिया था. विभाजन के बाद जब हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे, औरतों को प्रताड़ित किया जा रहा था तब बूटा सिंह ने एक मुस्लिम युवती की जान बचाई थी. उस लड़की का नाम था, ज़ैनब. ज़ैनब और बूटा सिंह की प्रेम कहानी

बूटा सिंह रिटायर्ड फौजी

जैसा कि अक्सर प्रेम कहानियों के साथ होता है, ज़ैनब और बूटा सिंह की प्रेम कहानी के भी कई वर्ज़न मिलते हैं. हर कोई इन दोनों की कहानी को अपने ढंग से प्रस्तुत करता है. एक कहानी के मुताबिक ज़ैनब अमृतसर के खेतों में छिपी थी, बूटा सिंह ने दंगाइयों को पैसे देकर ज़ैनब को खरीदा था. एक दूसरी कहानी के मुताबिक बूटा सिंह 55 साल का रिटायर्ड फौजी था और ज़ैनब 19-20 साल की लड़की.

ज़ैनब और बूटा सिंह की प्रेम कहानी 

ज़ैनब बूटा सिंह के साथ ही रहने लगी और दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे. दोनों की मोहब्बत के आगे मजहब की दीवार भी नहीं टिक सकी. दोनों ने शादी कर ली और दोनों दो प्यारी बेटियों- तनवरी कौर और दिलवीर कौर के माता-पिता बने. एक रिपोर्ट के अनुसार, ज़ैनब का परिवार अविभाजित भारत के पूर्वी पंजाब में रहता था.

पूर्वी पंजाब भारत का हिस्सा बन गया. विभाजन के बाद के दंगों की वजह से ज़ैनब का परिवार पाकिस्तान के एक गांव में आकर बस गया. गौरतलब है कि ज़ैनब परिवार से बिछड़ गई. और इसी दौरान उसे बूटा सिंह ने बचाया. दो देशों ने एक प्रेमी जोड़े को अलग कर दिया. विभाजन के तकरीबन एक दशक बाद भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने एक निर्णय लिया. विभाजन के दौरान दोनों तरफ़ से कई लड़कियों और औरतों का अपहरण किया गया था.

बूटा सिंह पूरी तरह टूट गये

दोनों देशों ने ये तय किया कि उन लड़कियों और औरतों को खोजकर उनके घरों तक पहुंचाया जाएगा. हालांकि कई औरतों और लड़कियों से उनकी मर्ज़ी नहीं पूछी गई. ज़ैनब भी उन्हीं लड़कियों में से एक थी. एक लेख के मुताबिक ज़ैनब के किसी गांव के रिश्तेदार ने सरकार के नुमाइंदों को खबर कर दी. ज़ैनब को जब सरकारी गाड़ी लेने आई तब बूटा सिंह पूरी तरह टूट गए. बताया जाता है कि बूटा सिंह और ज़ैनब की छोटी बेटी भी ज़ैनब के साथ ही गई. ज़ैनब ने निकलते वक़्त बूटा सिंह से वादा किया था कि वो जल्दी लौटेंगी. बूटा सिंह पत्नी के लेने पाकिस्तान गए.

बूटा सिंह ने जैनब की बचाई थी

 इधर बूटा सिंह की रातों की नींद उड़ गई और दिन का चैन छिन गया. उन्हें ज़ैनब के बिना जीना भी मुश्किल लग रहा था. जब पाकिस्तान से ज़ैनब नहीं लौटी और उसकी दोबारा शादी की ख़बरें आने लगी तब बूटा सिंह ने पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया. एक लेख के मुताबिक बूटा सिंह दिल्ली के पाकिस्तान हाई कमीशन गया और वीज़ा की गुहार लगाई. ये भी कहा जाता है कि उसने सिख धर्म छोड़ मुस्लिम धर्म अपनाया और जमील अहमद बन गया ताकि पाकिस्तानी पासपोर्ट मिल जाए या पाकिस्तान जाने दिया जाए.

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बूटा सिंह को शॉर्ट टर्म वीज़ा मिला ज़ैनब ने कर ली थी दूसरी शादी. जैसा कि पहले ही बताया गया है ज़ैनब और बूटा सिंह की कहानी के कई वर्ज़न सामने आते हैं. एक वर्ज़न के मुताबिक जै़नब के घरवालों ने उसकी दूसरी शादी कर दी. जब तक बूटा सिंह पाकिस्तान पहुंचा तब तक ज़ैनब की शादी हो चुकी थी. बूटा सिंह ज़ैनब से मिला तो ज़ैनब रोने लगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा. अब कुछ लोग कहते हैं कि परिवार के दबाव की वजह से ज़ैनब खामोश थी. बूटा सिंह को पुलिस उठा ले गई बूटा सिंह को ज़ैनब से मिलने की जल्दी थी और वो पाकिस्तान आकर पुलिस स्टेशन में जानकारी देना भूल गया.

छलांग लगाकर खुदकुशी कर ली

बूटा सिंह को पुलिस ने उठा लिया और कोर्ट में पेश किया. उसने रो-रो कर बताया कि ज़ैनब उसकी पत्नी है और उनकी दो बेटियां हैं. कोर्ट ने ज़ैनब से जवाब मांगा. जिस पर ज़ैनब ने कहा, 'मैं शादी करके पाकिस्तान में रहना चाहती हूं. इस शख़्स से मेरा कोई वास्ता नहीं.' ज़ैनब ने ये भी कहा कि दोनों लड़कियों की ज़िम्मेदारी बूटा सिंह की है. लड़की पर घर वालों का दबाव पड़ा तो उसने वापस भारत आने से मना कर दिया. कहते हैं कि बूटा सिंह ने पाकिस्तान में ही एक चलती ट्रेन के आगे छलांग लगाकर खुदकुशी कर ली.

ज़ैनब से जुदा होने का दर्द बूटा सिंह बर्दाशत नहीं सका

 ज़ैनब से इस तरह जुदा होने का दर्द बूटा सिंह बर्दाशत नहीं कर पाया. वो स्टेशन पर रेलगाड़ी का इंतज़ार कर रहा था, उसकी गोद में उसकी छोटी बच्ची भी रो रही थी. तभी सामने से आ रही रेलगाड़ी के आगे बूटा सिंह कूद गया और अपनी जान दे दी. हर तरफ़ हुई 'शहीद-ए-मोहब्बत' की कहानी की चर्चा आज बूटा सिंह को 'शहीद-ए-मोहब्बत' का दर्जा प्राप्त है.

बताया जाता है कि इस गांव में आज भी ज़ैनब का परिवार रहता है, ये भी कहा जाता है कि ज़ैनब आज भी ज़िन्दा है. उसने एक स्थानीय निवासी से बात करने की कोशिश की और उसे गांव से चले जाने की हिदायत मिली थी. नूरपुर में आज भी लोग ज़ैनब और बूटा सिंह पर बात-चीत नहीं करना चाहते. जबकि बाकी पूरे पाकिस्तान में बूटा सिंह की मोहब्बत की मिसालें दी जाती हैं. मरते इंसान की आखिरी इच्छा पूरी नहीं की गई .

मोहब्बत की मिसाल

जीते जी वो अपनी मोहब्बत के पास न रह सका तो उसने आखिरी इच्छा ही ऐसी जताई जिससे वो अपनी ज़ैनब के करीब रह सके. बताया जाता है कि बूटा सिंह नूरपुर में यानि ज़ैनब के गांव में दफ़न होना चाहता था. जै़नब के घरवालों ने उसकी आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं होने दी.  बूटा सिंह ने अपनी सुसाइड नोट में लिखा था कि उन्हें नूरपुर के कब्रिस्तान में दफनाया जाए, लेकिन जैनब के परिजनों ने ऐसा नहीं करने दिया. इसके बाद उन्हें लाहौर के मियां साहिब में दफनाया गया.

 

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