मिलीभगत के चलते पंजीयन विभाग के अधिकारी भी आंखें मूंदे बैठे रहे.
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Jaipur: ई-ग्रास चालान (E grass challan) के जरिए राज्य सरकार को राजस्व (Revenue) की चपत लगाने वाला गिरोह राजधानी जयपुर (Jaipur News) में ही नहीं दूसरे जिलों में सक्रिय है, अफसरों के नाक के नीचे दो साल से घोटाला होता रहा, लेकिन मिलीभगत के चलते पंजीयन विभाग (Registration department) के अधिकारी भी आंखें मूंदे बैठे रहे.
-ई-ग्रास से जालसाजी कर रजिस्ट्री, दो साल से सोते रहे अफसर
-लेकिन पंजीयन विभाग के लेखाधिकारी ने खुद ही रजिस्ट्री में पकडी गड़बड़
-खुद की रजिस्ट्री करवाई तो ई-ग्रास चालान पर हुआ AAO को शक
-दो दिन में जांच कमेटी की रिपोर्ट आने का दावा-कौन दोषी ?
-ठेके पर लगे कार्मिकों को हटाने के बाद शुरू हुआ ये बड़ा खेल
-कार्मिकों ने सिस्टम में लीकेज का फायदा उठाया, किया फर्जीवाड़ा
-गिरोह के सदस्यों ने लोगों की 3 से 4 हजार रुपये में करवाई रजिस्ट्री
-सस्ती रजिस्ट्री होने चक्कर में झांसे में आए 676 लोग
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अफसरों के नाक के नीचे दो साल से होता रहा घोटाला
ई-ग्रास चालान के जरिए राज्य सरकार (State Government) को राजस्व की चपत लगाने वाला गिरोह राजधानी जयपुर में ही नहीं दूसरे जिलों में भी सक्रिय है. अफसरों के नाक के नीचे दो साल से घोटाला (scam) होता रहा, लेकिन मिलीभगत के चलते पंजीयन विभाग के अधिकारी भी आंखें मूंदे बैठे रहे. हालांकि विभाग के अधिकारी सोते रहे लेकिन पंजीयन एंव मुद्रांक विभाग (Registration and Stamps Department) के ही एक लेखाधिकारी ने ही खुद की रजिस्ट्री के दौरान ये मामला पकड़ा.
जांच रिपोर्ट अगले दो दिन में आ सकती हैं
ई-ग्रास चालान के जरिए 8 करोड़ के राजस्व को चपत लगाने में कौन-कौन दोषी हैं. किस स्तर पर चूक हुई. इसकी जांच रिपोर्ट अगले दो दिन में आ सकती हैं. लेकिन अभी तक जो मामला सामने आया वो बड़ा चौकाने वाला हैं. मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग में संविदा-ठेके पर लगे कार्मिकों की भूमिका इसमें सामने आ सकती हैं. जिन्हे इस खुलासे से पहले हटा भी दिया गया था. विभाग के जानकारों का मानना हैं की संविदा पर लगे कार्मिकों को सिस्टम में लीक की पूरी जानकारी थी. ठेके पर लगे कार्मिक लंबे समय पर मुदांक एवं पंजीयन विभाग में रजिस्ट्री के काम में लगे हुए थे.
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रजिस्ट्री के दस्तावेजों को अपलोड करने से लेकर ई-ग्रास चालान को सिस्टम में चढ़ाने का काम ये ही करते थे. जब इन्हे विभाग से हटाया गया तो ये बेरोजगार हो गए और उन्होंने सिस्टम में लीकेज का फायदा उठाया. और दो साल से यूज लिए हुए ई-ग्रास से रजिस्ट्री करवाने का काम करने का बड़ा गोरखधंधा खोल लिया और इस्तेमाल किए हुए ई-ग्रास चालान से रजिस्ट्री करवाने का खेल शुरू कर दिया. जयपुर से शुरू हुआ ये खेल दूसरे जिलों तक पहुंच गया और किसी को भनक तक नहीं लगी.
ये मामला जयपुर में ही खुला
आमतौर पर रजिस्ट्री करवाने के लिए जब आवेदक जाता हैं तो उनसे 11 से 21 हजार रुपये तक की फीस ली जाती हैं. लेकिन गिरोह में शामिल लोग सिर्फ दो से तीन हजार में ही रजिस्ट्री करवाने का काम करते थे. दरअसल ये मामला जयपुर में ही खुला. जब मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के लेखाधिकारी खुद की रजिस्ट्री करवाने के लिए पहुंचे. लेखाधिकारी जब खुद अपनी रजिस्ट्री करवाने पहुंचे तो चालान का जीआरएन नम्बर उन्हें गलत लगा. जब उन्होंने इसे क्रॉस चेक करवाया तो फर्जीवाड़ा (forgery) पकड़ में आया. एक ही नम्बर के दो चालान सामने आए.
विभाग के डाटा माइनिंग के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित की गई
पंजीयन एंव मुद्रांक विभाग को मामले की जानकारी लगी तो विभाग के डाटा माइनिंग के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित की गई. टीम की जांच की तो आंकड़ा 8 तक पहुंच गया. विभाग ने 2017 से अपना डाटा खंगालना शुरु किया तो राज्य के जिलों में विभाग के कई डाटा मिस मैच पाए गए. फर्जीवाड़े का आंकड़ा बढ़कर 676 तक पहुंच गया है. हालांकि जो गड़बड़ी सामने आई है वह कुल राजस्व का दशमलव 0.1 प्रतिशत है.
पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग के आईजी महावीर बुरडक (Mahavir Burdak) के मुताबिक ई-ग्रास के जरिए चालान जमा करवाने में जमकर फर्जीवाड़ा तो जयपुर में ही हुआ है. यहां सब-रजिस्ट्रार कार्यालय 2, 5, 8 और 10 में ही 500 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. इनमें फर्जी चालान ई-ग्रास के जरिए राशि जमा कराने के लगाए गए हैं. इसके अलावा बांसवाड़ा में 34, भीलवाड़ा 25, भरतपुर व धौलपुर में करीब 27 मामले सामने आ चुके हैं. इनके जरिए 7.94 करोड़ की राजस्व की हानि राज्य सरकार को हुई है.
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विभाग ने बकाया के नोटिस भेजना शुरू कर दिया है
ई-ग्रास के फर्जी चालान के जरिए जो रजिस्ट्री हुई है, उनमें जमा कराई जाने वाली राशि 2 करोड 20 लाख हैं. विभाग के अधिकारियों के मुताबिक फर्जीवाड़ा करने वालों ने शातिर तरीके से लोगों को झांसे में लिया उसके बाद एक रजिस्ट्री करवाने के लिए दो चालान काम में लिए. जिसमें एक ई-ग्रास चालान काम में लिया हुआ और दूसरा ई-ग्रास चालान नया लिया गया. जो ई-ग्रास चालान नया बनवाया उसकी राशि तो सरकार के खाते में पहुंच गई लेकिन काम में लिए हुए ई-ग्रास चालान की राशि जब सरकार के खाते में नहीं पहुंची तो विभाग ने बकाया के नोटिस भेजना शुरू कर दिया.
जानकारों का मानना हैं की प्रकरण में डीड राइटर व अन्य जितने जिम्मेदार हैं, उससे अधिक जिम्मेदारी पंजीयन विभाग के सब रजिस्ट्रार और अधीनस्थ कर्मचारियों की है. सब-रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी होती है कि स्टाम्प शुल्क जमा करने की रसीदों की जांच तत्काल कर विभागीय खाते में शुल्क जमा होने की पुष्टि करते, लेकिन सब-रजिस्ट्रार जांच करने की बजाय चहेते डीडराइटर और अन्य लोगों को हस्ताक्षर कर रजिस्ट्री थमाते रहे. फिर भी जिम्मेदार विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
जबकि पंजीयन एवं मुद्रांक महानिरीक्षक ने तो विभागीय अधिकारियों और डीडराइटर की गलती मानने की बजाय रजिस्ट्री कराने वाले लोगों को ही इस मामले में दोषी बताते हुए घोटालेबाज बता दिया. हालांकि प्रकरण में अकाउंट शाखा के अधिकारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं. जब खाते में दो साल से पैसा नहीं पहुंच रहा था तो उनकी पकड़ में क्यों नहीं आया.
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मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के आईजी महावीर बुरडक ने क्या बताया
मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के आईजी महावीर बुरडक ने बताया की ई-ग्रास के जरिए चालान जमा करवाने में विभागीय कर्मचारियों (Departmental Employees) की मिलीभगत की जांच के लिए विभाग ने फैक्ट फाइंडिग कमेटी गठित की है. कमेटी यह जांच रही है कि इस तरह की गड़बड़ी क्यों हुई और इसमें कौन-कौन शामिल हैं. कमेटी में एडिशनल आईजी, लेखा, विधि तथा तकनीकी एक्सपर्ट शामिल है. सॉफ्टवेयर को भी जांचा जा रहा है.
बहरहाल, पैसा जमा कराने के बाद भी बकाया का नोटिस घर पर आने के बाद रजिस्ट्री करवाने वाले लोग ठगा सा महसूस कर रहे हैं.....जब वो नोटिस लेकर अधिकारियों के चैंबर तक पहुंच रहे तो एक ही सवाल कर रहे हैं साहब हमने तो पैसा दिया हैं और हमारे पर रसीद भी हैं फिर हमे नोटिस क्यों भेजा गया.....लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही...एक ही बात कही जा रही है कि वे पैसा जमा करवाएं उनके खाते में राशि नहीं आई हैं.