राजस्थान के सीमाव्रती जिले जैसलमेर के सत्तों गांव से निकलकर बॉलीवुड ही नहीं बल्कि कई देशों की यात्रा कर लोकगीत और स्थानीय गायिकी की परंपरा को जिंदा रखने वाले संगीतकार मामे खान आज एक मशहूर शख्सियत हैं. मामे राजस्थान के मांगणियार समुदाय से हैं. यह समुदाय अपने लोक संगीत के लिए जाना जाता है. बचपन से ही मामे संगीत के माहौल से घिरे रहे.
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Jaisalmer: बदलते दौर में जहां लोग बदल रहे हैं, वहीं राजस्थान की लोक संस्कृति को अभी भी एक शख्स ने जीवित रखा है, उसी शख्स की एक कहानी जिसने राजस्थानी लोक गीतों को अमेरिका और यूरोप की गलियों तक पहुंचाया.
राजस्थान के सीमाव्रती जिले जैसलमेर के सत्तों गांव से निकलकर बॉलीवुड ही नहीं बल्कि कई देशों की यात्रा कर लोकगीत और स्थानीय गायिकी की परंपरा को जिंदा रखने वाले संगीतकार मामे खान आज एक मशहूर शख्सियत हैं. मामे राजस्थान के मांगणियार समुदाय से हैं. यह समुदाय अपने लोक संगीत के लिए जाना जाता है. बचपन से ही मामे संगीत के माहौल से घिरे रहे. जिंदगी की शुरुआत से ही मामे ने अपने आस-पास संगीत ही देखा. स्कूल में सुबह की पहली प्रार्थना हो, 'तुम्हीं हो माता, पिता तुम्ही हो' या फिर 'सरस्वती वंदना' मामे भी इनका हिस्सा रहते थे. बारह साल की उम्र में इन्होंने अपना पहला म्यूजिक शो दिल्ली में इंडिया गेट पर किया था. राजस्थान में यह अपने पिता के साथ आस-पास शादियों में भी जाकर गाया करते थे.
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सफलता को पाने का सफर में कई मुश्किलें
अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को कम उम्र में ही समझते हुए मामे खान का संघर्ष शुरू हुआ. बचपन में ढोलक और सितार मामे के खिलौने रहे. वह मांगणियार समुदाय के गीत, जो अब तक अपने आस पास की जगह तक ही सीमित थे. उन्हें मामे के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म मिलेगा, इस सोच को असलियत में बदलने का मामे का यह सफर लंबा और मुश्किल भी रहा. एक बाल कलाकार के रूप में मामे इंडिया गेट पर आये थे, जब उन्होंने अपने ग्रुप के साथ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने परफॉर्म किया.
साल 1999 में जब मामे पहली बार अपने म्यूजिकल प्रोग्राम के लिए अमेरिका गए तब स्टेज पर अपने बाकी साथियों के लिए मामे ढोलक बजा रहे थे. गाने का बहुत मन था लेकिन अभी पिता और ग्रुप से अंतर्राष्ट्रीय स्टेज पर गाने की इजाजत नहीं मिली थी. हालांकि बाद में एक दफा जब मामे ने कहा कि वह अपनी ढोलक को बेल्जियम में भूल आये हैं, तब उनके पिता समझ गए कि मामे अगले प्रोग्राम में ढोलक बजाना नहीं बल्कि गाना चाहते हैं. पिता ने तब कहा था कोई नहीं तुम कल से गाना शुरू कर दो, अल्लाह पाक जब एक दरवाजा बंद करता है तो हजार खोलता है.
रास्ता मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं
एक ऐसे गांव सत्तो से बाहर निकल कर आना जहां कभी बिजली पानी जैसी दैनिक जरूरतें भी एक बड़ी समस्या थी और बाहर आकर भी अपने लोग, संस्कार और रीति रिवाजों को अपने साथ जिंदा रखना मामे को अपने आप में खास बनाता है. सपनों की नगरी मुंबई में आज भी मामे का संघर्ष जारी है. लोक गीत को नई पीढ़ी के बीच नए ढंग से जिंदा भी रखना है और अपनी कलाकारी को निखारते भी रहना है. मांगणियार समुदाय की कला को दूर-दूर तक लोगों में पहुंचाना भी है और खुद को एक कला तक सीमित भी नहीं रखना है. सफर मुश्किल जरूर है पर जारी है.
सपने में भी नहीं सोचा था, बॉलीवुड में जाने का
मामे खां ने बताया कि बॉलीवुड जाने का कभी सपने में भी नहीं सोचा था, मैं बस चाहता था की मैं गाऊं और एक दिन अपने म्यूजिक शो के लिए विदेश जाऊं. हालांकि मैं बॉलीवुड में लता जी, किशोर दा, मुकेश, बड़े गुलाम अली खां साहब साथ ही और गायक गायिकाओं को सुनता जरूर था पर बॉलीवुड जाने के लिए कभी नहीं सोचा था. मामे की बॉलीवुड में भी एंट्री की एक अलग कहानी है. मामे कहते हैं, 'एक बार मैं इला अरुण जी की बेटी की शादी में वेडिंग शो के लिए मुंबई गया हुआ था. वहां बॉलीवुड की कई हस्तियां भी आई हुई थीं, जब संगीतकार और गायक शंकर महादेवन ने मेरा गाना सुना तब उन्होंने इला अरुण जी से मेरे बारे में पूछा और यहीं से मुझे फिल्म में गाने का पहला मौका मिला. मामे बताते हैं कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता था कि वह एक फिल्म के लिए रिकॉर्डिंग कर रहे थे. यह गाना था फिल्म लक बाय चांस से बावरे. मामे के लिए स्टूडियो में गाने की रिकॉर्डिंग का यह अनुभव बिलकुल नया था. पारंपरिक कपड़ों में पहली दफा माइक्रोफोन लगाने की वो यादें भी काफी मजाकिया हैं.
मांगणियार घराने के लोक गीत
साल 1999 में मामे खान ने अपने वर्ल्ड टूर के दौरान कई लाइव म्यूजिक शोज किये और उन्होंने अपने हर शो से कुछ नया सीखा. हर राजस्थानी गाने में एक अलग ही कहानी होती है और इस वर्ल्ड टूर के दौरान ही मामे ने यह सोचा कि मांगणियार गाने भी पूरे राजस्थान का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. इस यात्रा से लौटना ही मामे के म्यूजिक करियर का एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा और फिर वापस भारत आकर इन्होंने एक प्रोफेशनल सिंगर के तौर पर गाना शुरू किया. अपने एक अनुभव के बारे में मामे बताते हैं, जब वह एनएच सेवन म्यूजिक फेस्टिवल का हिस्सा बने थे, वहां युवा दर्शक ज्यादा थे. जरूरी था गाने ऐसे ही गाये जाए जो युवा सुने या समझें और जब सावन, बिछुड़ों, लोली और केसरिया बालम जैसे मामे के गानों को भी युवा दर्शकों का प्यार मिला, तब इनके लिए यह एक खुशी का मौका था.
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हर राजस्थानी लोक गीत की है अपनी एक अलग पहचान
मामे खां हर गानों में एक कहानी बताते हैं. गाना लोली, जो मामे ने अपने पिता से सीखा उनके दिल के बहुत ही करीब है. यह एक सूफी गाना है जिसमें एक सूफी संत मरे हुए बच्चे को जिंदा करने की कोशिश करता है. वहीं गाना सावन, एक ऐसी औरत की कहानी बयां करता है. जो सावन की पहली बारिश के बाद अपने पति से घर लौट आने को कह रही है. वह कहती है अब सावन आ गया है, लूनी नदी भी उफान पर है अब बस लौट आओ. इस गाने ने आगे मामे खान को सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक लोक एकल के लिए जीआईएमए पुरस्कार भी दिलवाया। चौधरी गाना, जो भारतीय वादक, गायक, संगीतकार, गीतकार अमित त्रिवेदी का कॉम्पोजीशन है और जिसे मामे खान ने गाया है.
आज ममे खान कई बॉलीवुड एल्बम व कई फिल्मों में अपने गाने गा चुके हैं उसी के साथ मम्मी खान ने भारत ही नहीं 1 दिन से अधिक देशों में अपनी प्रस्तुति दी है वममे खां राजस्थानी लोकगीत के साथ बॉलीवुड ने भी अपनी खास जगह बना चुके हैं.
Reporter- Shankar Dan