Happy Birthday Jaipur: आज जयपुर शहर का जन्मदिन है और सभी जयपुरवसी के लिए यह वैसा ही है जैसे खुद का जन्मदिन हो. 18 नवंबर 1727 को बसा जयपुर 295 साल का हो गया है, आज भी जयपुर के लोग आराध्य गोविंददेवजी के दर्शनों के साथ अपनी दिनचर्या की शुरूआत करते हैं.
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Happy Birthday Jaipur: जयपुर शहर का जन्मदिवस एक सच्चे जयपुरवसी के लिए वैसा ही है जैसे खुद का जन्मदिन. खास कर के उनके लिए, जिन्होंने जयपुर को हर रोज एक नई खूबसूरती से देखा है. सत्रहवीं शताब्दी में जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी, ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत, एक बडी ताकत के रूप में उभरी कर सामने आई.
जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह को तब मीलों के दायरे में फैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिए आमेर छोटा लगने लगा और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई. आज दुनियाभर में पिंकसिटी के नाम से मशहूर जयपुर आज 295 बरस का हो गया है.
गोविंददेवजी के दर्शनों से होती है दिन की शुरूआत
18 नवंबर 1727 को बसा जयपुर 295 साल का हो गया है, आज भी जयपुर के लोग आराध्य गोविंददेवजी के दर्शनों के साथ अपनी दिनचर्या की शुरूआत करते हैं. शतरंज के आकार में बसाए गए जयपुर की सीमा 9 मील की थी, जिसे ब्रह्मांड में नौ ग्रहों के नवनिधि सिद्धांत पर वास्तुकला के आधार पर नौ चौकड़ियों में बसाया गया. ज्योतिष विद्वान पंडित जगन्नाथ सम्राट, विद्याधर भट्टाचार्य और राजगुरु रत्नाकर पौंड्रिक सहित कई विद्वानों ने जयपुर की स्थापना के लिए गंगापोल पर नींव रखी थी. विरासत और विकास की जुगलबंदी जो इस शहर में है. शायद ही कहीं और हो.
18 नवम्बर, 1727 को हुई थी शहर की स्थापना
जयपुर को बसाने वाले सवाई जयसिंह द्वितीय रहे जिन्होंने 18 नवम्बर, 1727 को स्थापना की. इस शहर की नींव रखने वाले महाराजा जय सिंह ने एक ऐसे शहर की कल्पना थी जो न सिर्फ स्थापत्य कला की दृष्टि से बेहतरीन हो बल्कि कला, संस्कृति और फैशन की राजधानी कही जाने वाली पेरिस को भी टक्कर दे सके. जयपुर को पूर्व के पेरिस के नाम से भी जाना जाता है. जयपुर कच्छवाहा वंश की राजधानी रहा है. इसकी स्थापना से लेकर और आजादी तक कई शासकों ने जयपुर के विकास में अपनी-अपनी सामर्थ्य के हिसाब से योगदान दिया.
यूनेस्को वर्ल्ड हरिटेज की सूची में शामिल है जयपुर
आजादी के बाद जयपुर ने जबर्दस्त तरक्की की. आज यह शहर यूनेस्को वर्ल्ड हरिटेज की सूची में शामिल है. महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर शहर की स्थापना बड़ी दूरदर्शिता के साथ की थी. शहर के स्थापना के समय ही यहां चौड़ी-चौड़ी सड़कें रखी गई थी, ये सड़कें आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती है. पहले शहर को चारदीवारी के अंदर यानी कि परकोटे में बसाया गया था, लेकिन वक्त के साथ-साथ बढ़ती आबादी के कारण शहर परकोटे से बाहर निकलकर आज कई किलोमीटर दूरी तक फैल गया है. करीब 295 साल में जयपुर ने आधुनिक रूप ले लिया है.
'जैपर' के नाम से भी जाना जाता है
100 साल पहले यहां बग्गियों में घोड़े दौड़ते हुए देखे होंगे, जयपुर स्टेट की सड़कों पर चलने वाली ऊंट बग्गियां, इसमें शहर में रहने वाले लोग ट्रांसपोर्ट के तौर पर उपयोग किया करते थे. आज इनकी जगह भूमिगत मेट्रो ट्रेन, लो फ्लोर बस, ई-रिक्शा ने ले ली है. अपनी बेजोड़ वास्तुकला के लिए विश्वप्रसिद्ध जयपुर को 'जैपर' के नाम से भी जाना जाता है. हर साल 18 नवंबर को जयपुर का स्थापना दिवस मनाया जाता है. नगर निगम प्रशासन की ओर से हर साल जयपुर स्थापना दिवस समारोह एक माह तक मनाया जाता हैं.
एंट्री के लिए हैं कई दरवाजे
मोतीडूंगरी गणेशजी और शहर के प्रवेश द्वार-गंगापोल दरवाजे- पर विराजमान गणेशजी की पूजा अर्चना के साथ जयपुर स्थापना दिवस समारोह की शुरूआत होती हैं. जयपुर स्थापना के समय चारदीवारी के भीतर एंट्री के लिए कई दरवाजे भी बनाए गए थे. वहीं तत्कालीन राजपरिवार के रहने के लिए सिटी पैलेस बनाया गया था. जयपुर जंतर-मंतर, हवामहल, अल्बर्ट हॉल, नाहरगढ़, जयगढ़, आमेर महल, छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़, रामगंज चौपड़ समेत दर्जनों ऐसी धरोहर हैं, जो देसी और विदेशी पर्यटकों के लिए बेहद आकर्षण का केन्द्र हैं. शहर में सुरक्षा के लिए सबसे पहले उत्तर-पूर्व में गंगा पोल का निर्माण किया गया.
इसे कहते है घाटगेट
पूर्व दिशा में सूरजपोल और पश्चिम दिशा में चांदपोल गेट बनवाया. उत्तर दिशा में ध्रुवपोल स्थापित किया, इसे आज हम जोरावर सिंह गेट के नाम से जानते हैं. उत्तर-दक्षिण में शिवपोल गेट बनवाया, आज इसे सांगानेरी गेट कहा जाता है. दक्षिण दिशा में दो प्रवेश द्वार बनाए गए, इनमें एक कृष्णपोल (किशनपोल) और दूसरा रामपोल है, आज इसे घाटगेट कहा जाता है.
नगर के चारों ओर है एक परकोटा
इन सभी दरवाजों में गणेश जी, हनुमान जी और भैरव जी की स्थापना कराई गई. नियोजित तरीके से बसाए गए इस जयपुर में महाराजा के महल, औहदेदारों की हवेली और बाग बगीचे ही नहीं बल्कि आम नागरिकों के आवास और राजमार्ग बनाए. गलियों का और सड़कों का निर्माण वास्तु के अनुसार और ज्यामितीय तरीके से किया गया. नगर को सुरक्षित रखने के लिए इस नगर के चारों ओर एक परकोटा बनवाया गया. पश्चिमी पहाड़ी पर नाहरगढ़ का किला बनवाया गया. पुराने दुर्ग जयगढ़ में हथियार बनाने का कारखाना बनवाया गया, जिसे देखकर आज भी वैज्ञानिक चकित हो जाते हैं.
इन्हें कहते है चौकड़ी
इस कारखाने और अपने शहर जयपुर के निर्माता सवाई जयसिंह की स्मॄतियों को संजोये विशालकाय जयबाण तोप आज भी सीना ताने इस नगर की सुरक्षा करती महसूस होती है. महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को नौ आवासीय खंड़ों में बसाया, जिन्हें चौकडी कहा जाता है, इनमें सबसे बडी चौकडी सरहद में राजमहल, रानिवास, जंतर मंतर, गोविंददेवजी का मंदिर, आदि हैं. शेष चौकडियों में नागरिक आवास, हवेलियां और कारखाने आदि बनवाए गए.
इन सबका हुआ निर्माण
प्रजा को अपना परिवार समझने वाले सवाई जयसिंह ने सुन्दर शहर को इस तरह से बसाया कि यहां पर नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं के साथ अन्य किसी प्रकार की कमी न हो, सुचारु पेयजल व्यवस्था, बाग-बगीचे, कल कारखाने के साथ वर्षाजल का संरक्षण और निकासी का प्रबंध भी करवाया. सवाई जयसिंह ने लम्बे समय तक जयपुर में राज किया. इस शहर में हस्तकला, गीत संगीत, शिक्षा और रोजगार आदि को उन्होंने खूब प्रोत्साहित किया. अलग-अलग समय में वास्तु के अनुरुप ईसरलाट, हवामहल, रामनिवास बाग और विभिन्न कलात्मक मंदिर, शिक्षण संस्थानों का निर्माण करवाया गया.
समय के साथ करवट लेता गुलाबीनगर
- 18 नवंबर 1727 में जयपुर की स्थापना
- 1872 में शहर के बाजारों में टिनशेड लगवाई (बरामदों की जगह)
- 1875 में सवाई रामसिंह ने शहर का गुलाबी रंग करवाया. इससे पहले का शहर सफेद रंग था. वर्ष 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स (एडवर्ड सप्तम) जयपुर आए थे, उससे पहले शहर का रंग गुलाबी करवाया गया.
- 1942 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर सर मिर्जा इस्माइल ने जयपुर को आधुनिक रूप दिया. बाजारों के टिनशेड हटाकर बरामदें बनवाए और बाजारों को सुंदर बनाने के साथ उन्हें एकरूपता दी. आजादी के बाद धीरे-धीरे बाजारों में अतिक्रमण होता गया और बरामदे बंद होते गए.
- 2000 में ऑपरेशन पिंक के दौरान शहर के बरामदों को खाली करवाया गया.
- 2019 में जयपुर को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट का तमगा मिला
- 800 वर्ग किमी है दोनों नगर निगम का दायरा
- 3000 वर्ग किमी है जेडीए परिधि क्षेत्र
- 76 वर्ग किमी एरिया था पहले मास्टर प्लान में
- 3000 वर्ग किमी एरिया मौजूदा मास्टर प्लान में
देसी-विदेशी पर्यटकों को जयपुर करता है आकर्षित
जयपुर शहर के लिए कहा जाता है कि 'जयपुर शहर नगीना, नीचे माटी ऊपर चूना', गुलाबी नगर जयपुर और इसका इतिहास, जयपुर के फेसम बाजार और यहां की ऐतिहासिक इमारतें, यही खास आकर्षण देसी-विदेशी पर्यटकों को जयपुर खींच लाता है, यहां की कला संस्कृति, खानपान आज भी विश्व पटल पर अपनी अलग अहमियत रखता है.
295 साल का हो गया पिंक सिटी शहर
10 सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल जयपुर 295 साल का हो गया है, लेकिन आज भी इसकी विरासत अपनी कहानी खुद कहती नजर आती है. इस दौरान शहर ने कई बदलाव देखे हैं, लेकिन इन बदलावों के बीच भी आज यहां के किले, बावड़ियां, चौपड़ें, चौकड़ियां और दरवाजे शहर की धरोहर को बरकरार रखे हुए हैं. इसी का नतीजा है कि 2019 में जयपुर को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट का तमगा भी मिला और आधुनिक दौर में पिंक सिटी अब मेट्रो सिटी भी बन गई है.
वास्तुकला के दृष्टिकोण का एक नायाब शहर है जयपुर
पीढ़ियों से यहां बसे लोगों की मानें तो जयपुर शहर काफी बदल गया है, जयपुर वास्तुकला के दृष्टिकोण से एक नायाब शहर है. जयपुर ज्योतिष और संस्कृति की नगरी है. जयपुर की जंतर-मंतर वेद्यशाला इसका जीवंत उदाहरण है. सवाई जयसिंह ने ज्योतिष के इतिहास को नया मोड़ देते हुए देशभर में जयपुर के साथ 5 यंत्रशाला बनाई. इनमें दिल्ली, उज्जैन, काशी और मथुरा शहर शामिल है. जतंर-मंतर पर ज्योतिष से जुड़ी हर सटीक जानकारी उपलब्ध होती है. जयपुर विश्व का पहला शहर है, जिसका नक्शा पहले बना और स्थापना बाद में हुई.
नक्शे के आधार पर बसा विश्व का पहला शहर बना जयपुर
विद्याधर चक्रवर्ती इसके मुख्य अधिशांषी अभियंता थे, जिन्होंने नक्शा तैयार किया. इसके आधार पर जयपुर का निर्माण हुआ और नक्शे के आधार पर बसा विश्व का पहला शहर बना. इतिहासकार बताते हैं कि जयपुर की नींव गंगापोल दरवाजे से जुड़े परकोटे पर लगाई गई थी. साफ जाहिर है कि विश्व हैरिटेज में शुमार गुलाबी नगर का सुरक्षा कवच बुर्जे और परकोटा आज खुद को बचाने के लिए छटपटा रहा है. कभी पर्यटकों की आंखों का तारा रहा परकोटा अतिक्रमण से लाचार हो ओझल हो रहा है. एक वो भी समय रहा जब दुश्मनों से बचाने वाले परकोटे की दीवार के पास कोई फटक तक नहीं सकता था.
परकोटे का अब बिगड़ा हुलिया
नव ग्रहों के हिसाब से नौ वर्ग मील में मास्को के क्रेमलिन की दीवारों जैसे बने परकोटे का अब हुलिया ही बिगड़ गया है. इस धरोहर के प्रति ऐसे ही बेखबर रहे तो भविष्य में यह विरासत इतिहास के पन्नों तक ही सिमट कर रह जाएगी. राजा के राज में सबको पनाह देने वाले परकोटे की दोनों तरफ बीस-बीस फीट तक कोई भी निर्माण नहीं कर सकता था. सन् 1905 और 15 दिसंबर 1946 में राजा के बनाए कानून में इसके पास निर्माण पर कड़ी पाबंदी थी. आजादी के बाद पुरातत्व अधिनियम 1961 की धारा 22 के तहत परकोटे को राजकीय संरक्षित स्मारक की श्रेणी में रखा गया.
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स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मीचंद बजाज कि अपील पर उच्च न्यायालय ने परकोटे के दोनों तरफ पांच-पांच मीटर तक के निर्माण को अवैध माना था. 1990 में भी हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे. न्यायालय ने 2004 में फिर से संज्ञान लेते हुए परकोटे से क्रिमण हटाने के आदेश दिए थे. नगर निगम ने ठोस कार्रवाई करने की बजाय सूचना पट्ट में यह लिख कर इतिश्री कर ली कि परकोटा और दरवाजे राजस्थान पुरा अवशेष प्राचीन वस्तु अधिनियम 1961 की धारा 3 के तहत संरक्षित स्मारक है.
बुर्जी और परकोटे के सहारे बाहर और अंदर बने मकान
निगम की भवन विधियां 1970 की धारा 31 के तहत दोनों तरफ निर्माण करने के दोषी पर धारा 17 के तहत तीन साल के कारावास या एक लाख रुपये जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. हजारी बुर्ज के अलावा सभी बुर्जी और परकोटे के सहारे बाहर और अंदर मकान बन चुके हैं. पर्यटक तस्वीर भी लेना चाहे तो उसे परकोटे तक पहुंचने का रास्ता भी चांदपोल अनाज मंडी की बुर्ज से तोपखाना तक का परकोटा दोनों तरफ से बर्बाद हो गया है. चांदपोल से किशनपोल, घाटगेट, सूरजपोल, गंगापोल, जोरावर सिंह दरवाजा से माउंट रोड होते हुए चांदपोल दरवाजे तक परकोटे का अस्तित्व खतरे में है. बापू बाजार और नेहरू बाजार की दुकानों की लंबाई परकोटे को अंदर से तोड़, बढ़ा कर परकोटे को खोखला कर दिया है.
जयपुर में हैं अनगिनत व्यंजन
पिछले कुछ सालों से जयपुर में मेट्रो संस्कॄति के दर्शन होने लगे हैं. चमचमाती सडकें, बहुमंजिला शापिंग माल, आधुनिकता को छूती आवासीय कालोनियां आदि महानगरों की होड करती दिखती हैं. पुराने जयपुर और नये जयपुर में नई और पुरानी संस्कॄति के दर्शन जैसे इस शहर के विकास और इतिहास दोनों को स्पष्ट करते हैं. जयपुर कितना भी बदले पर इसके व्यंजनों का जायका बदस्तूर कायम है, जयपुर के व्यंजन अनगिनत हैं.
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