1 मार्च को महाशिवरात्रि है और भारत में ऐसे तो कई शिव मंदिर है, जहां शिव का जलाभिषेक और पूजा की जाती है. यहां लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामन लेकर दर्शन करने आते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे रहस्यमय मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं.
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Mahashivratri 2022: 1 मार्च को महाशिवरात्रि है और भारत में ऐसे तो कई शिव मंदिर है, जहां शिव का जलाभिषेक और पूजा की जाती है. यहां लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामन लेकर दर्शन करने आते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे रहस्यमय मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं.
जहां माथा टेकने के लिए भक्तों को सालभर इंतजार करना पड़ता है यानी एक ऐसा मंदिर जो केवल 1 वर्ष में एक बार खुलता है. यह रहस्यमय मंदिर राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर के मोती डूंगरी में स्थित है, इस मंदिर को एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही इसे शंकर गढ़ी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. जयपुर के मोती डूंगरी का एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर और चांदनी चौक का राज- राजेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसे दो मंदिर हैं जो सालभर में एकबार ही खुलते है.
शिव भक्त साल भर एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं और शिवरात्रि वाले दिन एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर के बाहर भक्तों की लम्बी कतार लगी रहती हैं और घंटो इंतजार के बाद लोग यहां के दर्शन करते हैं. वहीं, शिवरात्रि के दिन मंदिर में विशेष रूप से साजया जाता है, जो भक्तों का मन मोह लेती है. भक्तों को इस मंदिर तक पहुंचने एक किमी की चढ़ाई करनी पड़ती है.
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जानकारी के अनुसार, एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर कई सालों पुराना है और इस मंदिर की स्थापना जयपुर की स्थापना से पहले ही हो गई थी. एकलिंगेश्वर महादेव का मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और शिवरात्रि के दिन यहां भक्तों का तांता अल सुबह से ही लगाना शुरू हो जाता है. जब एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना हुई थी उस समय भगवान शिव के साथ उनके परिवार की भी मूर्तियां स्थापित की गई थी लेकिन कुछ समय बाद मंदिर से शिव परिवार गायब हो गया.
वहीं, कुछ समय बाद एक बार फिर इस मंदिर में शिव परिवार को स्थापित किया गया लेकिन फिर से यहां सभी मूर्तियां गायब हो गई. तभी से एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर को चमत्कारी मंदिर कहा जाने लगा और इसके बाद से अनहोनी के डर के कारण फिर कभी भी यहां शिव परिवार की मूर्ती की स्थापना नहीं की गई.
एकलिंगेश्वर महादेव की पूजा शिवरात्रि पर सबसे पहले जयपुर के राजघराने परिवार द्वारा की जाती थी, फिर यहां आए भक्तों द्वारा शिव का जलाभिषेक और पूजा की जाती थी.