कांग्रेसी कुनबे में सब ठीक नहीं चल रहा, कहीं नाराजगी तो कहीं गुटबाजी से कमजोर हो रही पार्टी
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कांग्रेसी कुनबे में सब ठीक नहीं चल रहा, कहीं नाराजगी तो कहीं गुटबाजी से कमजोर हो रही पार्टी

राजस्थान सरकार के दो मंत्रियों के बीच कैबिनेट में हुई तकरार के बाद आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा था.

फाइल फोटो

Manoj Mathur, Executive Editor, Jaipur: राजस्थान सरकार के दो मंत्रियों के बीच कैबिनेट में हुई तकरार के बाद आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा था. कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल ((Shanti Dhariwal) जयपुर के प्रभारी होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी की तरफ से कलेक्टर को फ्री वैक्सीन के मामले पर दिए जाने वाले ज्ञापन के दौरान मौजूद नहीं रहे. उस पर खास बात यह है कि ज्ञापन देने का समय 11:30 बजे का था और धारीवाल उससे ठीक आधा घंटा पहले जयपुर से कोटा के लिए रवाना हो गए. 

मंत्री परिषद के अन्य मंत्रियों ने अपने-अपने प्रभार वाले क्षेत्रों में फ्री वैक्सीन के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की, लेकिन धारीवाल जयपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए भी नहीं रुके. लिहाजा राज्यपाल को ज्ञापन देने के बाद पीसीसी चीफ और शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा (Govind Singh Dotasra) ने पीसीसी में प्रेस कॉन्फ्रेंस की.

हालांकि इस दौरान धारीवाल के नहीं आने को लेकर हुए सवाल पर डोटासरा ने कहा कि 'कांग्रेस के सीनियर लोग प्रोटोकॉल की ज्यादा पालना करते हैं.' दोनों मंत्रियों के बीच हुई तकरार के बाद मामला उतना सरल नहीं दिख रहा जितनी आसानी से गोविंद सिंह डोटासरा कह रहे हैं

सरकार में होने के बावजूद कांग्रेसी कुनबे की यह कलह पार्टी के ही कार्यकर्ताओं और नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर रही है. तीन दिन पहले जब मंत्री परिषद की बैठक हुई तभी अंदेशा होने लगा था कि बात बढ़ सकती है. अबसे पहले मंत्री परिषद की बैठक में ऐसा कभी नहीं हुआ कि दो वरिष्ठ नेता आपस में इस तरह भिड़ गए हों कि एक दूसरे को बाहर देख लेने तक की बात कह दी जाए. मामला गोविंद सिंह डोटासरा और वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल के बीच हुई कहासुनी का है. मंत्री परिषद की बैठक के दौरान संगठन के मुखिया और मंत्री परिषद में शिक्षा का जिम्मा संभालने वाले गोविंद सिंह डोटासरा अपनी बात रख रहे थे तो शांति धारीवाल ने उन्हें टोका. मामला वैक्सीन के मुद्दे पर ज्ञापन को लेकर था. डोटासरा कह रहे थे कि कलेक्टर को ज्ञापन देना चाहिए. जबकि धारीवाल का तर्क था कि कलेक्टर तो खुद सरकार के लिए काम कर रहे हैं, ऐसे में ज्ञापन राष्ट्रपति को दिया जाना चाहिए.

इसी बैठक के दौरान मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास (Pratap Singh Khachariyawas) ने जयपुर कलेक्टर और अशोक चांदना (Ashok Chandana) ने बूंदी कलेक्टर की कार्यशैली पर सवाल उठाए. अब मंत्रियों की तरफ से ब्यूरोक्रेसी पर सवाल उठाने को लेकर चर्चा यह भी होने लगी है कि, क्या ये मंत्री भी अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं? चर्चा इस बात की भी है कि पिछले दिनों वीडियो कांफ्रेंस के दौरान अधिकारियों पर मंत्री के आदेश की अनदेखी के आरोप लगाने के बाद एक मंत्री का कैमरा बंद हो गया. इसे भी मंत्री की नाराजगी से जोड़ा गया.

मंत्रियों की अलग-अलग कारणों से नाराजगी के इन किस्सों के साथ ही मारवाड़ के एक मंत्रीजी की नाराजगी भी चर्चा में है. अपनी नाराजगी का इजहार करने के लिए मारवाड़ के ये मंत्री एक बार तो अपनी सरकारी गाड़ी और स्टाफ भी लौटा चुके हैं. मंत्री जी की गाड़ी छोड़ने के बाद वो 'बे-कार' तो हो गए हैं, लेकिन क्या सरकार इन मंत्री जी को 'बे-कार' होने देगी?

सत्ताधारी पार्टी के कुनबे में चल रही कलह के यह किस्से नये हैं, लेकिन गुटबाजी तो कांग्रेस (Congress) में इससे पहले भी रही है. कांग्रेस में गुटबाजी किसी से छिपी हुई नहीं है. मौजूदा कार्यकाल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के खेमों के बीच प्रतिस्पर्धा जग जाहिर है.

 

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(मनोज माथुर, एग्जीक्यूटिव एडिटर, ज़ी राजस्थान)

 

विधानसभा चुनाव के वक्त ही रखी जा चुकी थी गुटबाजी की नींव
कांग्रेस में गुटबाजी के मौजूदाहालात की बात की जाए तो इसकी नींव पिछले विधानसभा चुनाव के समय ही रख दी गई थी. जब चुनाव नतीजों के बाद अशोक गहलोत और तत्कालीन पीसीसी चीफ सचिन पायलट में मुख्यमंत्री के पद के लिए प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई थी. अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बन भी गए तो पायलट को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी मिली, लेकिन यहां पर ही सब कुछ नहीं थम गया.
पिछले साल 40 दिन से ज्यादा चले राजनीतिक घटनाक्रम को सभी ने देखा. मानेसर से जैसलमेर तक दोनों नेताओं के अलग-अलग कैंप बन गए थे और उसका असर राजस्थान कांग्रेस के साथ प्रदेश की राजनीति पर अभी भी दिख रहा है.

हेमाराम चौधरी के इस्तीफे और उनके तेवरों ने सरकार को डाला परेशानी में
हालिया घटनाक्रम की बात करें तो गुढ़ामालानी के विधायक हेमाराम चौधरी (Hemaram Choudhary) ने कोविड-19 की दूसरी लहर से भी घातक झटका अपने इस्तीफे के रूप में सरकार को दिया. हेमाराम चौधरी ने इस्तीफे के जरिए अपनी नाराजगी ज़ाहिर करते हुए यह भी साफ कर दिया कि जिले में अधिकारी उनकी नहीं सुन रहे और कथित तौर पर एक ही मंत्री के हवाले  सब कुछ कर दिया गया है. हेमाराम की नाराजगी से जहां बीजेपी नेताओं के चेहरे पर मुस्कुराहट दिखी तो सरकार चला रहे कांग्रेसी कैंप के माथे पर चिंता की लकीरें भी उभरी. अभी हेमाराम चौधरी ने ना तो अपना इस्तीफा वापस लिया है और न ही उनके इस्तीफे को मंजूर या खारिज किया गया है. लिहाजा यह फाइल अभी जिंदा है.

विधायक मदन प्रजापत ने भी अपने जिले के मंत्री के खिलाफ खोला मोर्चा
दूसरी तरफ बाड़मेर जिले से ही आने वाले विधायक मदन प्रजापत (Madan Prajapat) ने भी हेमाराम की बात को ही दूसरे अंदाज में रखा. उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर तो भरोसा जताया, लेकिन जिले के एक मंत्री के व्यवहार पर मदन प्रजापत ने भी नाराजगी जताई.

हेमाराम के इस्तीफे के बाद पायलट कैंप के वेद प्रकाश सोलंकी ने दिखाए तेवर
इधर हेमाराम के इस्तीफे के तुरंत बाद चाकसू के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने भी मोर्चा खोल लिया. उनका कहना था कि सरकार में विधायकों के काम नहीं हो रहे और अगर ऐसा ही जारी रहा तो वह भी इस्तीफा दे देंगे. उनके सुर में सुर मिलाते हुए लाडनूं विधायक मुकेश भाकर ने भी काम नहीं होने की बात दोहराई.

पायलट कैंप के इंद्राज गुर्जर ने की वीडियो कांफ्रेंस में की सीएम गहलोत की तारीफ, लेकिन सोशल मीडिया पर पायलट को बताया अपना नेता.
पायलट कैंप के ज्यादातर विधायकों का यही रवैया दिख रहा था कि इस बीच मुख्यमंत्री ने जयपुर जिले में विराटनगर और जमवारामगढ़ क्षेत्र की सड़क योजनाओं का शिलान्यास लोकार्पण वर्चुअल कार्यक्रम में किया. इस दौरान हेमाराम चौधरी का नाम सीधे तौर पर तो नहीं लिया गया, लेकिन मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर विधायक सक्रिय हो और उसमें इच्छाशक्ति हो तो वह किसी भी तरह अपने क्षेत्र की जनता के काम करवा सकता है. क्षेत्र में हुए काम को लेकर सीएम अशोक गहलोत ने विराटनगर विधायक इंद्राज गुर्जर से अपनी तारीफ भी सुनी. हालांकि इस तारीफ के बाद सचिन पायलट के लॉयलिस्ट एमएलए इंद्राज के कैंप बदलने की चर्चा होने लगी तो उन्होंने अगले ही दिन सोशल मीडिया पर सचिन पायलट के साथ फोटो डालते हुए 'मेरा नेता मेरा अभिमान' का नारा देकर यह साफ कर दिया कि अभी कांग्रेस में गुटबाजी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. कांग्रेस में अंदर खाने चल रही खींचतान का ही नतीजा था कि पेंडिंग चल रही भर्तियों के मामले में बैकलॉग को लेकर मुकेश भाकर, वेद प्रकाश सोलंकी समेत नाराज कैंप के दूसरे नेता सक्रिय हो गए.

पिछले साल भी विधायकों ने जताई थी मंत्रियों के तौर-तरीकों पर नाराजगी
नाराजगी का आलम कांग्रेस में या सरकार के विधायकों मंत्रियों के बीच अचानक बना हो ऐसा भी नहीं है. इससे पहले पिछले साल कठूमर के विधायक बाबूलाल बैरवा सरकार के मंत्रियों की कार्यशैली पर अपनी नाराजगी जता चुके हैं. बामनवास की विधायक इंदिरा मीणा भी फेसबुक पर अपनी नाराजगी का इजहार कर चुकी हैं. 

इतना ही नहीं कुछ विधायक तो मंत्रियों से समय नहीं मिलने की पीड़ा भी वरिष्ठ नेताओं तक पहुंचा चुके हैं. विधानसभा के बीते सत्र में रमेश मीणा और स्पीकर सीपी जोशी के बीच में हुई तल्ख बहस भी सभी ने देखी. हालांकि इसका तात्कालिक कारण रमेश मीणा की सीट पर माइक नहीं होना देखा गया, लेकिन कांग्रेस के ही कार्यकर्ता मानते हैं कि इस बहस में भी कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी की झलक थी.

हालात ऐसे हैं कि अब कांग्रेस की गुटबाजी कुछ हद तक परिवारों के भीतर भी असर डालने लगी है. भरतपुर के पूर्व राजपरिवार में पिछले दिनों जो कुछ हुआ उसके बाद डीग-कुम्हेर विधायक विश्वेंद्र सिंह को लेकर उनके पुत्र अनिरुद्ध सिंह की ट्विटर टिप्पणियां भी इसी गुटबाजी से जोड़कर देखी जा रही हैं.

सीमावर्ती जिले जैसलमेर का हाल भी कुछ ऐसा ही है. पीसीसी चीफ बनने के बाद गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने पहले जैसलमेर दौरे के दौरान भले ही मंत्री शालेह मोहम्मद और जैसलमेर के विधायक रुपाराम धनदेव ने साथ में हाथ खड़े कराएं हों, लेकिन अभी भी दिलों में दूरियां दिखाई देती हैं.

पिछले दिनों राहुल गांधी के दौरे पर ट्रैक्टर रैली और किसान सभाओं के दौरान भी दिखी थी गुटबाजी
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान सभाओं को संबोधित करने और ट्रैक्टर रैली के लिए राहुल गांधी राजस्थान आए थे. तब उनके दौरे के वक़्त भी कांग्रेस के नेताओं में खेमेबाजी दिखी. राहुल गांधी की कार में जगह नहीं मिलने का मामला चर्चा में रहा तो मकराना की सभा में ट्रक ट्रॉले पर बनाए मंच से तो सचिन पायलट के साथ ही चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को भी उतार दिया गया था.

इसी दौरान किसान रैली की पूरी तैयारियां होने के बावजूद सचिन पायलट कैंप के विधायक रामनिवास गावड़िया के क्षेत्र परबतसर में तो आखिरी वक्त में रैली निरस्त करने को भी कांग्रेस की गुटबाजी से ही जोड़कर देखा गया. इससे पहले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे भी पार्टी में आपसी गुटबाजी की भेंट चढ़ चुके हैं.

दरअसल गुटबाजी और नाराज़गी राजनीतिक दलों का ऐसा तत्व हो गया है जिसे प्रत्येक दल में अघोषित रूप से जरूरी मान लिया गया है. कांग्रेस पार्टी के नेताओं और सरकार के मंत्रियों के बीच अलग-अलग मुद्दों पर हो रही नाराजगी के बाद पार्टी आलाकमान ने प्रदेश के मुद्दे प्रदेश में ही सुलझाने की बात जरूर कह दी है, लेकिन उन्हें डर इस बात का भी है, कि कहीं पंजाब की भड़की हुई आग, राजस्थान के लिए विनाशकारी चिंगारी ना बना दे.

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