Shila Mata Amer : 400 साल से पुराना मंदिर जहां शीश नवाने से पूरी होती हैं सारी मन्नतें
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Shila Mata Amer : 400 साल से पुराना मंदिर जहां शीश नवाने से पूरी होती हैं सारी मन्नतें

Shiladevi Amer :  जयपुर के आमेर के किले में माता शिला देवी के 400 साल पुराने मंदिर में शीश नवाने से सारी मन्नतें पूरी होती हैं.

Shila Mata Amer : 400 साल से पुराना मंदिर जहां शीश नवाने से पूरी होती हैं सारी मन्नतें

Shiladevi Amer : मशहूर पिंकसिटी ऐतिहासिक इमारतों और सुन्दर पर्यटन स्थलों के लिए दुनियाभर के सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता हैं. आमेर के किले में स्थापित माता शिला देवी का मंदिर अपनी बेजोड़ स्थापत्य कला के लिए जाना जाता हैं. महिषासुर मर्दन करती मातारानी अपने भक्तों को दर्शन देती है. आमेर महल के प्रांगण में स्थित शिला देवी जयपुरवासियों की आराध्य देवी बन गई है. हर साल नवरात्रि में यहां मेला लगता है और देवी के दर्शनों के लिए हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. नवरात्रि के पावन अवसर पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं आमेर की शिला देवी मंदिर के बारे में जिनकी मान्यता देशभर में है.

आमेर किला और शिला माता मंदिर. पर्यटक यहां किले को निहारने के साथ मातारानी का आशीर्वाद जरूर लेते हैं. नवरात्र में दस दिनों तक आस्था का सैलाब उमडता है. आसपास के ग्रामीण बाहुल्य क्षेत्रों से पदयात्रा पहुंचती है. कोई हाथों में दिया लेकर तो कोई दंडवत करते हुए माता रानी की चौखट तक पहुंचता है. शिला देवी की यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के रूप में बनी हुई है. सदैव वस्त्रों और लाल गुलाब के फूलों से ढंकी मूर्ति का केवल मुहं और हाथ ही दिखाई देते है. मूर्ति में देवी महिषासुर को एक पैर से दबाकर दाहिनें हाथ के त्रिशूल से मार रही है. इसलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर झुकी हुई है. मूर्ति चमत्कारी मानी जाती है.

यह कहते हैं इतिहासकार

इतिहासकारों और गाइड्स का कहना है कि शिला माता की प्रतिमा एक शिला के रुप में मिली थी. इतिहास में शिला देवी प्रतिमा को लाने के संबंध में कई मत चलन में है. 1580 ईस्वी में इस शिला को आमेर के शासक राजा मानसिंह प्रथम बंगाल के जसोर राज्य पर जीत के बाद वहां से इसे लेकर आमेर लेकर आए थे. यहां के प्रमुख शिल्प कलाकारों से महिषासुर मर्दन करती माता के रुप में उत्कीर्ण करवाया. मंदिर के प्रवेश द्वार पर पुरातत्वीय ब्यौरा मिलता है जिसके अनुसार बताया गया है कि इस मूर्ति की महाराज मानसिंह 16 वीं शताब्दी के अंत में लाए थे. प्रतापादित्य के राज्य में केदार राजा से युद्ध करने पर जब वह पहली बार असफल रहे तो उन्होने काली की उपासना की. काली देवी ने प्रसन्न होकर स्वप्न में उन से अपने उद्धार का वचन लिया और उन्हे विजयी होने का वरदान दिया. उसी के फलस्वरूप समुद्र में शिला रूप में पडी हुई यह प्रतिमा महाराजा द्वारा आमेर लाई गई और शिला देवी के नाम से घोषित हुई.

दूसरा मत है कि राजा केदार ने हार मानकर मानसिंह महाराज को अपनी पुत्री ब्याह दी थी. साथ में यह मूर्ति भेंट की थी. तीसरा मत यह भी है कि राजा केदार को माता का यह वचन था कि जब तक वह राजी होकर माता को जाने के लिए नहीं कहेगा. तब तक देवी उसके राज्य में ही रहेगी. राजा मानसिंह की पूजा से पूजा से प्रसन्न होकर देवी राजा केदार की पुत्री का रूप धर कर पूजा कक्ष में उसके पास बैठ गई. पूजा में विध्न नहीं पड़े, इसलिए राजा ने उसे अपनी पुत्री समझ कर तीन बार कहा. जा बेटा यहां से चली जा मुझे पूजा करने दे. इस प्रकार माता ने राजा के मुंह से अपने पास से जाने की बात कहलवा दी.

मानसिंह ने किया था स्थापित

कहा जाता है कि जब राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने माता की प्रतिमा को समुद्र में फेंक दिया. बाद में राजा मानसिंह ने माता की प्रतिमा को शिला के रूप में समुन्द्र में से निकाल लिया. शिला के रूप में मिलने से देवी शिला माता के नाम से विख्यात हुई और आमेर महल में भव्य मंदिर बनाकर प्रतिस्थापित करवाया. शिलादेवी मन्दिर में दर्शन के बाद बीच में भैरव मन्दिर बना हुआ है. जहां माता के दर्शन के बाद भक्त भैरव दर्शन करते हैं. मान्यता है कि माता के दर्शन तभी सफल माने जाते हैं, जब वह भैरव दर्शन करके नीचे उतरता है. कहा जाता है कि वध करने पर भैरव ने अंतिम इच्छा में माता से वरदान मांगा था कि आपके दर्शनों के बाद मेरे दर्शन भी भक्त करें. माता ने उसे आशीर्वाद देकर उसकी इच्छा को पूर्ण किया था.

मंदिर के बारे में ये भी जानना जरूरी

किंवदंतियों के अनुसार मंदिर में 1977 तक पशु बलि दी जाती थी लेकिन अब सार्वजिनक तौर पर पशु बलि नहीं दी जाती है. शिलादेवी के मंदिर में जल-मदिरा के रूप में भक्तों को चरणामृत दिया जाता. शिलादेवी की प्रतिमा अष्टभुजी काले पत्थर की है. भगवती महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति के ऊपरी हिस्से पर पंचदेवों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है. इस देवी का मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है जो स्थापत्य कला की उत्कृष्टकृति है. मानसिंह द्वितीय ने शिलादेवी के मंदिर में चांदी के किवाड़ भेंट किये. शिला देवी के बाई तरफ अष्टधातु की हिंगलाज माता की मूर्ति प्रतिष्ठित शिला के रूप में मिलने कारण शिला देवी के रूप में प्रसिद्ध, यह मूर्ति चमत्कारी मानी जाती है.

आमेर शिला माता में चढ़ाया जाता है गुजियां और नारियल का प्रसाद 
यहां वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन के नवरात्र में मेला लगता है. आमेर की शिला माता माता मंदिर में नवरात्रि में रंगत कुछ अलग ही हो जाती है. धूमधाम से मनाया जाने वाले इस पर्व में नौ दिन तक देवी की आराधना की जाती है. वैसे तो 12 माह में चार बार नवरात्रि आती है. जिसमें दो आषाढ़ और माघ माह की नवरात्री गुप्त होती है. वहीं चैत्र और आश्विन माह की नवरात्रि ज्यादा लोकप्रिय है. पूरे देश में नवरात्रि की पूजा अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार होती है. घरों से लेकर हर मंदिर में नवरात्रि पर घट स्थापना होती है. घट स्थापना के बाद ही मंदिर के पट आम दर्शनार्थियों के खुलते हैं. बेंगलुरू, पुणे और दिल्ली से मातारानी के दर्शन करने आए परिवार के सदस्यों से जब बातचीत की तो बहुत खुश नजर आए. उनका कहना था की अब तक मातारानी के बारे में सुना था पढा था इतिहास और चमत्कार के बारे में. लेकिन आज दर्शन करने के बाद लग रहा है वास्तव में जो पढा, सुना वो सच है. मंदिर में जाने के बाद लगता है दिनभर माता के चरणों में ही बैठे रहे. दिल्ली में फूलों का व्यापार करने आए दंपत्ति का कहना है की ये हमारी कुलदेवी है. किसी भी काम की शुरूआत माता के दरबार में आकर ही करते हैं. माता रानी का श्ऱृंगार करने के लिए फूल लेकर आए हैं.

नवरात्रों में उमड़ती है भीड़ 

 

आमेर महल अधीक्षक पंकज धीरेन्द्र का कहना है की देशभर में अति प्राचीन मंदिर हैं जहां ईश्वर अपने श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं. इन मंदिरों में अगाध आस्था और श्रद्धा के साथ श्रद्धालु शीश नवाते हैं और अपनी मनोकामना के लिए याचना करते हैं. .श्रद्धालुओं की अर्जी इन मंदिरों में सुनी जाती है और फिर श्रद्धालु इन्हें शक्ति के जागृत स्थल मानकर यहां पूजन के लिए उमड़ने लगते हैं. ऐसा ही स्थल है आमेर में शिला देवी मंदिर का. नवरात्रि में सभी आने वाले भक्तों के लिए दर्शन की विशेष सुविधा का प्रबन्ध किया जाता है.

सभी भक्त पंक्तिबद्ध होकर बारी-बारी से दर्शन करते है. भीड़ अधिक होने पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग पंक्तियां बनाकर दर्शन का प्रबन्ध किया जाता है. मन्दिर की सुरक्षा का सारा प्रबन्ध पुलिस अधिकारियों की ओर से किया जाता है. मंदिर में श्रद्धालु नवरात्रि उत्सव के दौरान उमड़ते हैं और देवी मां की आराधना करते हैं. माता को प्रसन्न करने के लिए यहां चुनरी और सौलह श्रृंगार की सामग्री अर्पित की जाती है. यहां प्रतिदिन चार से पांच हजार पर्यटक आमेर महल को देखने आते है, लेकिन उससे पहले मंदिर में दर्शन करना नहीं भूलते. गाइड भी सबसे पहले मंदिर के इतिहास से सैलानियों को रूबरू करवाते और मंदिर के दर्शन करवाते उसके बाद ही महल लेकर जाते हैं.

बहरहाल, समय के साथ-साथ आस्था का रैला भी बढता जा रहा है. नवरात्रि के दिनों में चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है जयकारे सुनाई देते हैं. माथे पर लाल चुनारी बांधे छोटे-छोटे बच्चे अपने माता-पिता का हाथ थामे कदम से कदम मिलाकर मां भगवती के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.

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