51 शक्तिपीठों में से एक है मां अंबिका का यह मंदिर, पांडवों ने बिताया अज्ञातवास, जानें कहानी
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51 शक्तिपीठों में से एक है मां अंबिका का यह मंदिर, पांडवों ने बिताया अज्ञातवास, जानें कहानी

अंबिका पीठ के सीढ़ियां उतरकर दूसरी अन्य छोटी पहाड़ी पर भृतहरी बाबा का मंदिर स्थित हैं, इसे ग्यारह मूर्तिधाम दिया गया है. इसमें देवी-देवताओं के सुंदर विग्रहों को सुशोभित किया गया है. इस स्थल से भी कम सीढ़ियां चढकर शक्तिपीठ के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. 

51 शक्तिपीठों में से एक है मां अंबिका का यह मंदिर, पांडवों ने बिताया अज्ञातवास, जानें कहानी

Jaipur: आस्था, भक्ति और विश्वास की असीमित सत्ता को अपने में समेटे हुए जयपुर जिले के विरानगर तहसील का पापडी गांव में स्थित मां अंबिका पीठ शक्तिपीठ (मनसा माता) क्षेत्र के श्रद्धालुओं के अलावा पास के दर्जनों जिलों के साथ ही पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था का केंद्र बना हुआ है.

अरावली की पहाड़ियों के मध्य में बसे इस जगह का तंत्र चुडामणि, महाभारत का विराटपर्व में मिलता है. इस भूमि पर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी आए थे.

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जयपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर बैराठ, जिसे अब विराटनगर के नाम से जाना और पहचाना जाता है. प्राचीन काल में मत्स्य देश की राजधानी रही इस जगह का वर्णन शिव पुराण, महाभारत सहित कई धर्मग्रंथों में मिलता है. यह प्राचीन महत्व का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है. विराटनगर कस्बा महाभारत काल में पाण्डवों के अज्ञातवास का साक्षी रहा है और यही ग्राम पंचायत सोठाना के गांव पापडी की छोटी पहाड़ी के शिखर पर विराजमान हैं मां अंबिका, जो की लोगों की अगाध आस्था का केन्द्र है. यह 51 शक्ति पीठों में से 41वां शक्ति पीठ है.

कहा जाता है कि यहां मां सती के दायें पैर की चार अंगुलियां गिरी थी, जिससे इस शक्तिपीठ की स्थापना हुई थी. यहां माता सती अंबिका के रूप में और भगवान शिव अमृत भैरव के रूप में पूजे जाते हैं. जानकार बताते हैं कि प्राचीन मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया था और वर्तमान में प्राचीन पत्थरों से बनी दीवारे ही इसका प्राचीन होना प्रदर्शित करती हैं. वर्तमान में एक ऊंचे चबूतरे पर मुख्य मंदिर हैं, जिसमें एक छोटा चौकोर तीन ओर से खुला मंडप हैं. बीच में एक छोटा यज्ञ कुंड हैं और ठीक सामने एक छोटा चौकोर गर्भगृह हैं, जिसके अंदर एक वेदी पर देवी मां की धवल संगमरमर से निर्मित नवीन विग्रह विराजित हैं. बताया जाता है कि माता रानी की प्रतिमा चोरी होने के बाद यहां दूसरी प्रतिमा की विधि-विधान के साथ प्राण-प्रतिष्ठा की गई.

मशहूर हैं ये किवदंतियां
कुछ किदवंतिया जिसमें बताते हैं कि जब भी कोई संकट आता था तो माता रानी मुहं से बोलकर कस्बे के लोगों को सचेत करती थी. मातारानी का गर्भगृह सज्जा रहित साधारण हैं और इसमें कुछ देवी-देवताओं का चित्रण हैं. गर्भगृह का आकार गोलाकार ध्वजयुक्त हैं, जिसके बाहर एक दीवार पर शक्तिपीठो के निर्माण बाबत कथा अंकित हैं. में एक अत्यधिक रोचक तथ्य भी सामने आया, जिसमें इस गांव का नाम प्राचीन समय में 'पांव-पडी' (देवी के पांव पड़े) था, जो वर्तमान में 'पापडी' हो गया हैं. के चारों ओर खुला परिक्रमा स्थल है और इसके बांयी ओर एक खुले स्थल पर भैरव अमृत का एक छोटा मंदिर है.

देवी-देवताओं के सुंदर विग्रहों को सुशोभित किया गया
अंबिका पीठ के सीढ़ियां उतरकर दूसरी अन्य छोटी पहाड़ी पर भृतहरी बाबा का मंदिर स्थित हैं, इसे ग्यारह मूर्तिधाम दिया गया है. इसमें देवी-देवताओं के सुंदर विग्रहों को सुशोभित किया गया है. इस स्थल से भी कम सीढ़ियां चढकर शक्तिपीठ के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली माता के रूप में विशेष पहचान ओर मान्यता है. जयपुर, अलवर, दिल्ली, कोलकाता, गुजरात, पंजाब सहित दर्जनों प्रदेश के लोग यहां आते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क बनी हुई है, जहां निजी साधनों से पहुंचा जा सकता है.

मंदिर तक पहुंचने के दो रास्ते हैं- एक रास्ते में 108 सीढ़ियां हैं तो दूसरे रास्ते में 50 सीढ़ियां हैं. विराट नगर में बस स्टैंड है, जिसकी कनेक्टिविटी जयपुर, अलवर समेत कई शहरों से है. चैत्र और अश्विनी मास के नवरात्रों में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है. भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली माता के रूप में विशेष पहचान ओर मान्यता है. दिन रात भजनों और कीर्तन होते हैं. देशभर से श्रद्धालु यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं. इसके अलावा आसपास के जयपुर, अलवर और आसपास के गांवों में भी कई परिवार यहां जात-जडूले के लिए आते है. 

क्या है इस मंदिर की मान्यता
इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब पांडवों ने विराटनगर में अज्ञातवास बिताया था तो राजा युधिष्ठिर ने विराटनगर पहुंचकर अपनी कुलदेवी का मानस पूजन किया. अज्ञातवास के समय देवी ने उन्हे विराटनगर का आश्रय स्थल दिया. इसी मानस पूजा से मां मनसा के रूप में प्रतिस्थापित किया गया. इसके बाद से इसे मनसा माता के रूप में भी जाना जाने लगा. इस मंदिर की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां देश के कोने-कोने से शीश नवाने लोग आते हैं. इस मंदिर की पूजा अचर्ना 'नाथ सम्प्रदाय' करते आ रहे हैं. 

क्या कहना है पुजारियों का
पुजारी बताते हैं कि माता रानी के दर्शन दिनभर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं. मातारानी के दो समय भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि माता के दर्शन से मनोकामनाएं पूरी होती है. बारिश के दौरान यह स्थान हराभरा हो जाता है और यहां पिकनिक मनाने भी बहुत से लोग पहुंचते हैं. दूसरी खास बात यह है कि इस मंदिर के आसपास अन्य और भी कई धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल जैसे पंचखंड पर्वत, भीम की गुफा, प्रसिद्ध गणेश मंदिर, केशवराय का मंदिर, जैन मंदिर है. पांडूपोल, भृतहरि, तालवृक्ष, नारायणी धाम भी यहां से ज्यादा कुछ किलोमीटर के दायरे में है.

शादी के बाद जरूर आते लोग
मां दुर्गा के नौ स्‍वरूपों के बारे में हर को. जानता है और नवरात्रि में मां के इन्‍हीं रूपों की आराधना की जाती है. हिंदू धर्म में नवदुर्गा पूजन के समय ही मां के मंदिरों में भी भक्‍तों का तांता लगता है और उनमें भी मां के शक्तिपीठों का महत्‍व अलग ही माना जाता है. माता रानी के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं ने बताया की मां के दरबार में आने से सकूं मिलता है. मातारानी हर मुराद को पूरा करती हैं. दर्शन करने के बाद रास्ते मिली दो महिला श्रद्धालु ने बताया कि शादी के बाद से यहां आते हैं. अष्टमी के दिन तो जरूर आते हैं. ससुराल में मंदिर को लेकर किस्से सुनते हैं. नवरात्रि में तो यहां रंगत कुछ अलग हो जाती हैं. आम से लेकर खास यहां पहुंचता हैं. 

चुन्नी लपेटे भक्त अंबिका माता के मंदिर पहुंचने के लिए पैदल निकलते
शक्ति और शाक्त चिन्तन, अनुशीलन और आराधन का स्थल है. शक्ति और भक्ति का समन्वय यहाँ के कण-कण में विद्यमान है. 'जय जय अंबे' के जयघोष करते, मां की चुन्नी लपेटे भक्त अंबिका माता के मंदिर पहुंचने के लिए पैदल निकलते हैं. अलग-अलग राज्य से आने वाले भक्त हाथों में ध्वजा-पताका लिए हुए, मां के भजनों में लीन होकर मां के दर्शनों के लिए कदम बढ़ाते हैं. मां के दर्शनों के लिए आतुर इन भक्तों को किसी बात की को. चिंता नहीं रहती. भजनों की ताल पर झूमते हुए, होठों पर मां के भजन और 'जय जय अंबे' के बुलंद जयकारे लगाकर भक्तजन अपनी हाजरी लगाने मां के दरबार तक पंहुचते हैं. यहां से आज तक को. खाली हाथ नहीं लौटा. पैदल चलकर आने के साथ-साथ ध्वजा पताका लेकर आने की भी विशेष परंपरा रही है. भक्त छोटे-छोटे झंडे और लंबी ध्वजाएं लेकर माता के मंदिर पर चढ़ाकर अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं.

मां अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती 
इतना ही नहीं यहां देवी के चमत्कार देखने को मिलते हैं. श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं मातारानी के समक्ष रखते हैं. मान्यता है कि यहां देवी के दर्शन मात्र से ही लोगों की समस्याएं दूर हो जाती है. यहां के लोग मां अंबिका (मनसा माता) को अपनी आराध्य देवी के रूप में पूजते हैं और को. भी शुभ काम करने से पहले मां के दर्शन जरूर करते हैं. चाहे को. प्रशासनिक अधिकारी हो, राजनेता हो. कोई शुभ काम हो, को. इम्तिहान हो या राजनेता चुनाव में जाने से पहले. अपना नामांकन करने से पहले या चुनाव के बाद पद ग्रहण करने से पहले हर को. व्यक्ति मां से आशीर्वाद लेना नहीं भूलता. कहते हैं जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर मां के इस दरबार में पहुंचता है उसकी को. भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती. फिर चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की चाह. मां अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं. 

आरती में हर कोई शामिल होना चाहता
इस दरबार में आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की ख्वाहिश हर भक्त के मन में होती है. सवेरे मंदिर के द्वार खुलते ही भक्त आतुर हो जाते हैं मां के दर्शन पूजन को. वो पूजा जिससे पूरी होती है उनकी हर मनोकामना और होता है समस्त कष्टों का निवारण. सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां को उठाया जाता है.

शक्तिपीठ को लेकर प्रसिद्ध है यह कहानी
शक्तिपीठ को लेकर कहानी है कि आदि शक्ति के एक रूप सती ने शिवजी से विवाह किया लेकिन इस विवाह से सती के पिता दक्ष खुश नहीं थे. बाद में दक्ष ने एक यज्ञ किया तो उसमें सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया. सती बिना बुलाए यज्ञ में चली गईं. दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक बातें कहीं. सती इसे सह न सकीं और सशरीर यज्ञाग्नि में स्वयं को समर्पित कर दिया. सती की अग्निसमाधि के बाद जब शिव, सती का शरीर लेकर समूचे ब्रह्मांड में भटक रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. धरती पर ये टुकड़े जहां-जहां गिरे वो स्थान शक्तिपीठ कहलाए. उन 51 शक्तिपीठों में से एक है, जयपुर जिले के विराटनगर तहसील पापडी गांव में अंबिका पीठ मंदिर है, जहां गिरी थी सती की पैर की चार अंगुलियां. जयपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर विराटनगर की स्थापना राजा विराट ने की थी और ये प्राचीन राज्य मत्स्य की राजधानी थी.

विराटनगर में ऐसे साक्ष्य मिलते हैं, जिनसे पता लगता है कि यह पौराणिक, महाभारतकालीन, गुप्तकालीन ही नहीं मुगलकालीन महत्वपूर्ण घटनाओं को भी अपने में समेटे हुए है. महाभारत के अनुसार पांडवों ने अपने 13 साल के वनवास के अज्ञातवास के दौरान अंतिम साल यही बिताया था. मान्यता है कि यहां स्थित भीम की डूंगरी भी हैं. यहीं पर पहाड़ों से बनी कुछ विशाल आकृतियां हैं जिनमें भीम गट्टे जिनके बारे में कहा जाता है कि भीम इनसे खेलते थे. जब 'कुंती' को प्यास लगी तो भीम ने जमीन पर पैर मारा जो की आज भीमलता के नाम से फेमस हैं.

क्या कहता है आर्कोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया का शोध
आर्कोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की ओर से की गई शोध और खुदाई में यहां बहुत से प्रीहिस्टोरिक साक्ष्य मिले हैं. यहीं एक दीर्घ कला भी है, जिसमें यहां की खुदाई में मिले स्कल्पचर्स, सिक्के, धातु की अन्य सामग्री को प्रदर्शित किया गया है. यहां की विभिन्न दर्शनीय इमारतें जैसे पंच महल (मुग़ल गेट), छतरियों के साथ-साथ बीजक की पहाड़ी पर स्थित बौद्ध स्तूप, बौद्ध मोनेस्ट्री, जैन मंदिर, जैन नसिया, गणेश मंदिर, हनुमान मंदिर और यहीं प्राचीन विंध्यचल मंदिर इस क्षेत्र के ऐतिहासिक होने की पुष्टि भी करते हैं. इतना ही यहां पुरानी आदिमानव कालीन पेंटिंग्स भी मिली हैं, जिनको आर्कोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया ने 25 हजार साल पुराना बताया है. बताया जाता है कि मुगल सम्राट अकबर जब भी आगरा यात्रा के दौरान जाते थे तो ये क्षेत्र जंगली जानवरों से संपन्न था तो समय-समय पर वो और उनके साथी यहां शिकार करने भी आया करते थे.

दू-दूर से आते हैं माता के भक्त
बहरहाल, भक्त मुरादें पूरी होने पर मां को श्रद्धा के फूल चढ़ाना भी नहीं भूलते. आज के दौड़ते-भागते और तनावग्रस्त जीवन से बहुत दूर कल्पनातीत शांति, सौंदर्य, आध्यात्मिक स्थल के रूप में अंबिका शक्तिपीठ अलग ही जगह हैं. दिन विशेष तौर पर नवरात्रि पर श्रद्धालु अटूट विश्वास-आस्था से अपनी मनोकामना पूरी करने यहां आते हैं लेकिन कई बार इस विश्वास और आस्था पर समाज के चंद लोग चोट पहुंचाने का काम कर देते हैं. हो सकता है उनके जीवन में आस्था-विश्वास का कोई विशेष महत्व न हो परंतु वह भूल जाते हैं कि ऐसे भी बहुत से लोग हैं जिनके जीवन-मरण में आस्था-विश्वास एक ऐसा तत्व है, जिसके बिना न तो उनके दिन की शुरुआत होती और न ही अंत.

 

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