इन दोनों ही मंदिरों की मूर्तियां सैकड़ों वर्ष पुरानी है.
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Dausa: नवरात्रि (Navratri) के नौ दिन नियम और निष्ठा के साथ मां आदिशक्ति के नौ अलग अलग स्वरूपों की पूजा अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और सभी समस्याओं का निवारण होता है. वर्ष में चार नवरात्रि मनाई जाती है, जिसमें शारदीय नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि, माघ गुप्त नवरात्रि और आषाढ़ गुप्त नवरात्रि आती है. चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि का सनातन धर्म में विशेष महत्व है.
नवरात्रि के पीछे क्या है पौराणिक मान्यता
नवरात्रि मनाए जाने के पीछे दो पौराणिक कथाएं (Mythology) काफी प्रचलित हैं. पहली पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर का वध करने के लिए भगवान ब्रम्हा, विष्णु और महेश के तेज से इस दिन देवी दुर्गा ने जन्म लिया था. वहीं दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम (Lord Ram) ने लंका पर चढ़ाई से पहले रामेश्वरम (Rameshwaram) में नौ दिनों तक मां दुर्गा की अराधना की थी.
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नवरात्रि पूजा का वैज्ञानिक कारण
नवरात्र मनाने का वैज्ञानिक महत्व (scientific significance) भी है. वर्ष के दोनों प्रमुख नवरात्र प्रायः ऋतु संधिकाल में या दो ऋतुओं के सम्मिलिन में मनाए जाते हैं. जब ऋतुओं का सम्मिलन होता है तो आमतौर पर शरीर में वात, पित्त, कफ का समायोजन घट बढ़ जाता है. इससे रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है. ऐसे में नवरात्र पूजा-अर्चना और उपवास (Fasting) करने से जहा शरीर शुद्ध होता है. वहीं, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.
दौसा जिले में भी नवरात्रि पर होती है विशेष पूजा अर्चना
दौसा जिले (Dausa News) में वैसे तो सभी जगह मां दुर्गा की नवरात्रों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है लेकिन दौसा जिले के लालसोट उपखंड क्षेत्र में स्थित पपलाज माता (Paplaj mata) का मंदिर और बांदीकुई उपखण्ड क्षेत्र के आभानेरी में स्थित हर्षद माता (Harshad Mata) का मंदिर विशेष महत्व रखते हैं. इन दोनों ही मंदिरों की मूर्तियां सैकड़ों वर्ष पुरानी है और बड़ी ही चमत्कारी मानी जाती है. मान्यता है जो भी नवरात्र के समय इन मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं. मां उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करती है.
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पपलाज माता का महत्व
लालसोट की धरती पर सात शक्तिपीठों की मान्यता है, मगर सर्वाधिक मान्यता आंतरी क्षेत्र में बसी मां पपलाज की है, जहां पर लाखों की तादाद में श्रद्धालु (Devotees) मनौतियां मांगते हैं. जागा पोथी के अनुसार तकरीबन 1100 वर्ष तथा पुरातत्व विभाग के अनुसार 788 वर्ष पूर्व स्थापित पपलाज माता की मूर्ति चमत्कारी है. दौसा जिले में ही नहीं अपितु प्रदेश स्तर पर अपनी ख्याति के चलते लोग माता के दर्शन करने पहुंचते हैं.
गूंगे, बहरे, अंधे, लकवा ग्रस्त, व्यापार, विवाह या फिर अन्य अड़चनों से पीड़ित लोग माताजी के ढोक लगाने पहुंचते हैं. यहां भाद्र पक्ष के शुक्ल पक्ष की छठ से शुरू होने वाला मेला अष्टमी तक रहता है. मंदिर के नीचे से निकल रहा जल स्रोत का सपड़ावा लोगों के कहे अनुसार चर्मरोग को दूर करने में राम बाण साबित होता है. पपलाज माता की मान्यता दौसा जिले के गांव-गांव में है. जहां बड़ी तादाद में ग्रामीण माता के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. पपलाज माता के मंदिर (Temple) में हमेशा मेले का माहौल रहता है.
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कोविड (Covid) के चलते इन दिनों भीड़-भाड़ जैसी स्थिति नहीं रहती. ग्रामीण परिवेश के लोग किसी भी शुभ काम को करने से पहले पपलाज माता के ढोक जरूर लगाते हैं. पपलाज माता के भक्तों का इतना भरोसा है कि जो भी यहां अपनी परेशानी लेकर पहुंचा है माता ने उसको निराश नहीं किया है. दौसा जिले के जनप्रतिनिधि भी जब भी चुनाव लड़ते हैं तो अपने चुनावी प्रचार का सफर सबसे पहले पपलाज माता के ढोक लगाकर ही शुरु करते हैं. वहीं जिन लोगों के काम बनते हैं वह पपलाज माता के यहां पहुंचकर सवामणी और भंडारे का आयोजन करते हैं.
आभानेरी की चमत्कारी हर्षदमाता
हर्षत माता का बड़ा मंदिर था, जिसे इस्लामिक शासकों (Islamic rulers) ने नष्ट कर दिया था और लगभग १००० साल बाद मुख्य मंदिर ही यहां पर बचा है. इस मंदिर के पत्थरों को अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) द्वारा चांद बावड़ी के गलियारे में रखा गया है. विश्व विख्यात चांद बावड़ी भी हर्षत माता के मंदिर के सामने स्थित है. यह मंदिर वास्तुकला का भी बेजोड़ नमूना है.
यह मंदिर एक छोटा मदिर है जो एक बड़े मंच पर बना हुआ है इस मंच पर पहुंचने के लिए कुछ सीड़ियां चढ़नी पड़ती हैं. इस मंदिर के चारो तरफ मंदिर की टूटी हुई दीवारे और मुर्तिया रखी हुई हैं. इस मंदिर की भितयों पर सूर्यमुखी पुष्प की नक्कासी की गई है. ये मंदिर यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और इसकी बहुत ही मान्यता है भक्त गण यहां पर पूजा अर्चना करते हुए दिखाई देते है. मंदिर के पुजारी से बात करने पर पता चला कि दशहरा से 10 दिन पहले, जब नवरात्रि पर पूजा अर्चना शुरू होती है, तो यहां 3 दिनों के लिए आभानेरी मेला (Abhaneri Fair) आयोजित किया जाता है. पुजारी ने हमें यह भी बताया कि अप्रैल के महीने में एक मेला भी लगता है.
इस मंदिर के आस पास का वातवरण भी बहुत सुन्दर है. ये मंदिर पर्यटकों (tourists) को अपनी ओर आकर्षित करता है यदि आप आभानेरी आते है तो इस मंदिर की जरूर देखें. मान्यता यह भी है हर्षत माता की मूर्ति इतनी चमत्कारी थी कि यह बोलती और आने वाले खतरे का पहले ही अहसास करवा देती थी.
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दौसा जिला मुख्यालय पर देवगिरी पर्वत की तलहटी में भी मां दुर्गा का मंदिर स्थित है, जहां बारह महीने मां के भक्त पहुचकर सुबह शाम पूजा अर्चना करते है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह पहाड़ की तलहटी में स्थित है और पहाड़ पर साक्षात नीलकंठ महादेव विराजमान है. नवरात्र के दौरान हमेशा यहां सामूहिक पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है. इस बार भी यहां नौ देवियों की पूजा अर्चना की जा रही है. नवरात्रि पूर्ण होने में नौ देवियों की मूर्तियों का विषर्जन छोटे पुष्कर के नाम से विख्यात गेटोलाव धाम के बांध में किया जाएगा.
Report- Laxmiavtar