success story: बेटी को चैंपियन बनाने के लिए पिता ने लगा दी सारी जमा पूंजी, छोड़ दिया गांव
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success story: बेटी को चैंपियन बनाने के लिए पिता ने लगा दी सारी जमा पूंजी, छोड़ दिया गांव

success story: कुछ दिन पहले ही भारत की पहलवान पहली महिला अंतिम पंघाल ने senior world championship डेब्यू में ब्रॉन्ज अपने दर्ज किया है. आपको जान कर हैरानी होगी की अंतिम ओलंपिक मेंभागीदारी पाने वाली पहली पहलवान बनीं है. 

success story: बेटी को चैंपियन बनाने के लिए पिता ने लगा दी सारी जमा पूंजी, छोड़ दिया गांव

Antim panghal success story: कुछ दिन पहले ही भारत की पहलवान पहली महिला अंतिम पंघाल ने senior world championship डेब्यू में ब्रॉन्ज अपने दर्ज किया है. दरसअल अंतिम ने इस जीत के साथ ही 2023 में पेरिस में होने वाले ओलंपिक में अपनी भागीदारी पक्का कर लिया है. आपको जान कर हैरानी होगी की अंतिम ओलंपिक मेंभागीदारी पाने वाली पहली पहलवान बनीं है. 

World championship में 53 किलो भार वर्ग में पंघाल ने यूरोप की जोना माल्मग्रेन को पराजय कर दिया. इरादे पक्का कर 19 साल की अंतिम पंघाल ने World championship में ब्रॉन्ज जीतने वाली छठी भारतीय पहलवान महिला बनी है. अंतिम पंघाल को आज देश सलाम कर रहा है लेकीन इस खिलाड़ी के कड़ी तपस्या के बाद इस मेडल तक पहुंची है. 

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इतना आसान नहीं था सबकुछ

अंतिम पंघाल ने  बेलग्रेड में अपना पहला senior world championship कांस्य पदक जीती. आपको बता दें की अंतिम दो बार की यूरोपियन चैंपियन स्वीडिश पहलवान जोना माल्मग्रेन को 16-6 से पटलते हुए पेरिस ओलिंपिक का टिकट भी हासिल  किया. जीत के बाद उनके घर-गांव-परिवार में खुशी का हो गया. लेकीन इस जीत की खुशी अंतिम और उनके मां-बाप को यह खुशी इतनी आसानी से नहीं मिली.

'अंतिम' पिता की तपस्या है

अंतिम (Antim panghal) हरियाणा के हिसार के भगाना गांव की की बेटी है. वे पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी बेटी है. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग दिला सके, परन्तु रामनिवास  किसान पिता ने भी जिद ठान ली थी कि बेटी को चैंपियन बनाकर रहूंगा और बिना सोचे समझे गाड़ी, ट्रैक्टर से लेकर डेढ़ एकड़ जमीन और यही नहीं कई मशीनें भी बेच दी. बेटी के सपने को पंख लगाने के लिए, कोचिंग की सुविधा नहीं होने की वजह से गांव ही छोड़ दिया. शुरुआत दौर में अंतिम ने महाबीर स्टेडियम में एक साल तक परिश्रम किया. फिर जा कर चार साल से हिसार के गंगवा में रहकर बाबा लालदास अखाड़ा में ट्रेनिंग करती हैं.

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