तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन, आज एक साथ मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की पूजा का संयोग
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तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन, आज एक साथ मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की पूजा का संयोग

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन होने की वजह से मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की पूजा एक साथ की जा रही हैं.

 मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा

Jaipur: शारदीय नवरात्रि पर माता के जयकारों से छोटीकाशी गुंजायमान हैं. मंदिरों से लेकर घरों तक भक्त माता रानी की भक्ति में लीन नजर आ रहे हैं. नवरात्रि (Navratri) के नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौं स्वरुपों की पूजा करने का विधान है. नवरात्रि के तीसरे दिन मां भगवती की तृतीय शक्ति मां चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) की आराधना की जाती है. 

तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन
हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन होने की वजह से मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा (Maa Kushmanda) की पूजा एक साथ की जा रही हैं. तृतीया तिथि सुबह 7 बजकर 48 मिनट तक रही उसके बाद चतुर्थी शुरू हो गई जो कल सूर्योदय से पहले 4 बजकर 54 मिनट तक रहेगी. तृतीया और चतुर्थी एक ही दिन होने के कारण इस बार नवरात्रि का समापन भी आठ दिन में हो जाएगा. 

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इसलिए ये मां चंद्रघंटा कहलाती हैं
मां चंद्रघंटा राक्षसों के संहार के लिए अवतार लिया था. इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों की शक्तियां समाहित हैं. ये अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, धनुष व गदा धारण करती हैं. इनके माथे पर घंटे के आकार में अर्द्ध चंद्र विराजमान है. इसलिए ये चंद्रघंटा कहलाती हैं. अपने भक्तों के लिए मां चंद्रघंटा का स्वरुप सौम्य व शांत है. ये दुष्टों का संहार करती हैं. 

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इन्हीं के द्वारा ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी
वहीं मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरुप कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएं है. इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. इनके शरीर की कांति-प्रभा सूर्य के समान दैदीप्यमान है. ये अपनी अष्ट भुजाओं में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा धारण आदि सभी चीजें करती हैं. पौराणिक कथाओं (mythology) के अनुसार जब चारों ओर अंधकार था तो इन्हीं के द्वारा ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी. इन्हीं के प्रकाश व तेज से 10 दिशाएं प्रकाशित होती हैं. यही सृष्टि की आदिस्वरुपा मां आदिशक्ति हैं.

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