आखिर क्यों हो रहा राइट टू हैल्थ बिल का विरोध, बिल को लेकर पढ़िए पूरी जानकारी
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आखिर क्यों हो रहा राइट टू हैल्थ बिल का विरोध, बिल को लेकर पढ़िए पूरी जानकारी

राज्यपाल के अभिभाषण के साथ ही राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो चुका है.

आखिर क्यों हो रहा राइट टू हैल्थ बिल का विरोध, बिल को लेकर पढ़िए पूरी जानकारी

जयपुर: राज्यपाल के अभिभाषण के साथ ही राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो चुका है. बजट सत्र में सरकार कई नए बिल लाने की तैयारी की जा रही है. इसी कड़ी में कांग्रेस सरकार प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य का कानूनी अधिकार देने के लिए राइट टू हेल्थ बिल लागू करने की योजना बना रही है, लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान, जयपुर मेडिकल एसोसिएशन और प्राइवेट हॉस्पिटल एण्ड नर्सिंग होम सोसाइटी से जुड़े डॉक्टर्स इस बिल का विरोध कर रहे हैं.

बिल के विरोध में आईएमए राजस्थान के डॉक्टरों ने रविवार को बंद रखा. वहीं, आज प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी ने निजी चिकित्सालयों में ओपीडी बंद कर बिल का विरोध किया.आईएमए के मीडिया प्रभारी डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि जयपुर और अन्य जिलों में सभी निजी चिकित्सालय की ओपीडी को सांकेतिक रूप से बंद किया किया गया है. साथ ही राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन, उपचार एमपीएस और आईएमए और जेएमए से जुड़े सभी संगठन आंदोलन में भाग लेंगे. पिछले विधानसभा सत्र में इसे पेश भी किया था, लेकिन प्रदेश के प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर इस बिल का विरोध कर रहे हैं.

निजी डॉक्टर राइट टू किल बिल बता रहे 

राइट टू हेल्थ के बिल को निजी अस्पतालों के डॉक्टर राइट टू किल बता रहे हैं. पहली बार बनाए जा रहे स्वास्थ्य का अधिकार कानून से प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए बाध्य हो जाएंगे. बिना किसी पेमेंट के इलाज के लिए बाध्य किए जाने पर निजी अस्पतालों के डॉक्टर इस बिल के विरोध में उतर आए हैं.

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जानिए आखिर क्यों हो रहा है बिल का विरोध

-आईएमए के निजी चिकित्सकों का कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान हैं जो डॉक्टर के पैर में कील ठोकने के बराबर है. बिल में ना तो इमरजेंसी की कोई परिभाषा है और ना ही बिल में विशेषज्ञों की कमेटी बनाई गई है.

-राइट टू हेल्थ बिल में आपातकाल में यानी इमरजेंसी के दौरान निजी अस्पतालों को निशुल्क इलाज करने के लिए बाध्य किया गया है. मरीज के पास पैसे नहीं हैं तो भी उसे इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता. निजी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि इमरजेंसी की परिभाषा और इसके दायरे को तय नहीं किया गया है. हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर निशुल्क इलाज लेगा तो अस्पताल वाले अपने खर्चे कैसे चलाएंगे.

-राइट टू हेल्थ बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतालों के महंगे इलाज और मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राधिकरण का गठन प्रस्तावित है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि प्राधिकरण में विषय विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए ताकि वे अस्पताल की परिस्थितियों को समझते हुए तकनीकी इलाज की प्रक्रिया को समझ सके. अगर विषय विशेषज्ञ नहीं होंगे तो प्राधिकरण में पदस्थ सदस्य निजी अस्पतालों को ब्लैकमेल करेंगे. इससे भ्रष्टाचार बढेगा.

-राइट टू हेल्थ बिल में यह भी प्रावधान है कि अगर मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसे इलाज के लिए किसी अन्य अस्पताल में रेफर करना है तो एम्बुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है. इस नियम पर निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि एंबुलेंस का खर्च कौन वहन करेगा. अगर सरकार भुगतान करेगी तो इसके लिए क्या प्रावधान है, यह स्पष्ट किया जाए.

-राइट टू हेल्थ बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है. सरकार अपनी योजना को सरकारी अस्पतालों के जरिए लागू कर सकती है. इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है. योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं है. ऐसे में इलाज का खर्च कैसे निकालेंगे. इससे या तो अस्पताल बंद हो जाएंगे या फिर ट्रीटमेंट की क्वालिटी पर असर पड़ेगा.

-दुर्घटनाओं में घायल मरीज, ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक से ग्रसित मरीजों का इलाज हर निजी अस्पताल में संभव नहीं है. ये मामले भी इमरजेंसी इलाज की श्रेणी में आते हैं. ऐसे में निजी अस्पताल इन मरीजों का इलाज कैसे कर सकेंगे. इसके लिए सरकार को अलग से स्पष्ट नियम बनाने चाहिए.

-दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाए जाने वालों को 5 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है. दूसरी तरफ अस्पताल वालों को पूरा इलाज निशुल्क करना होगा. ऐसा कैसे संभव होगा.

-अस्पताल खोलने से पहले 48 तरह की एनओसी लेनी पड़ती है. इसके साथ ही हर साल रिन्यूअल फीस, स्टाफ की तनख्वाह और अस्पताल के रखरखाव पर लाखों रुपए का खर्च होता है. अगर सभी मरीजों का पूरा इलाज मुफ्त में करना होगा तो अस्पताल अपना खर्चा कैसे निकालेगा. ऐसे में अगर राइट टू हेल्थ बिल को जबरन लागू किया को निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे.

बिल के आने से जनता को ये होगा फायदा 

-राईट टू हैल्थ बिल राज्य मे लागू होने के बाद राजस्थान के 8 करोड़ लोगों को फ्री में इलाज मिलेगा. कैसी भी इमरजेंसी हो यदि मरीज प्राइवेट हॉस्पिटल में भी जाता है तो वहां भी उसका फ्री इलाज होगा. इसके साथ ही प्रदेश के हर व्यक्ति का इंश्योरेंस सरकार करवाएगी. इसके अलावा मरीज से लेकर डॉक्टर्स के लिए भी इस बिल में कई प्रावधान जोड़े गए हैं.

-राइट टू हेल्थ में राजस्थान के हर व्यक्ति को बीमारी का डायग्नोसिस, जांच, इलाज, भावी रिजल्ट और संभावित जटिलताओं और एक्सपेक्टेड खर्चों के बारे में अच्छी तरह जानकारी मिल सकेगी.

-एक्ट के तहत बनाए गए रूल्स के जरिए आउट डोर पेशेंट्स (OPD), इनडोर भर्ती पेशेंट्स, डॉक्टर को दिखाना और परामर्श, दवाइयां, डायग्नोसिस, इमरजेंसी ट्रांसपोर्टेशन यानी एम्बुलेंस सुविधा, प्रोसीजर और सर्विसेज, इमरजेंसी ट्रीटमेंट मिलेगा.

-मरीज को बीमारी की नेचर, कारण, वास्तविक जांच, केयर, इलाज और रिजल्ट, संभावित जटिलताओं और एक्सपेक्टेड खर्चों के बारे में पूरी जानकारी मिल सकेगी.

-मरीजों को सभी पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट्स की ओर से उनके मेडिकल केयर लेवल के अनुसार फ्री ट्रीटमेंट दिया जाएगा.

-फीस या चार्ज के एडवांस पेमेंट के बिना इमरजेंसी कंडीशन के दौरान बिना देरी किए प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर जरूरी इमरजेंसी ट्रीटमेंट फैसिलिटी और इंटेंसिव केयर, इमरजेंसी डिलेवरी और ट्रीटमेंट देंगे.

-कोई मेडिको-लीगल मामला है, तो हेल्थ केयर प्रोवाइडर केवल पुलिस की एनओसी या पुलिस रिपोर्ट मिलने के आधार पर इलाज में देरी नहीं करेगा.

-मरीज को डॉक्यूमेंट, जांच रिपोर्ट, इलाज के डिटेल और पर्टिकुलर वाइज बिलों तक पहुंच होगी.

-सर्जरी, कीमोथेरेपी की पहले से ही सूचना देकर मरीज या उसके परिजनों से सहमति लेनी होगी.

-इलाज के दौरान सीक्रेसी, मानव गरिमा और गोपनीयता का ख्याल रखा जाएगा.

-किसी मेल वर्कर की ओर से महिला पेशेंट के फिजिकल टेस्ट के दौरान महिला की उपस्थिति जरूरी होगी.

-उपलब्ध ऑप्शनल ट्रीटमेंट मेथड का सलेक्शन मरीज कर सकेगा.

-हर तरह की सर्विस और फैसिलिटी की रेट और टैक्स के बारे में सूचना पाने का हक मिलेगा.

-ट्रीटमेंट के दौरान दवा लेने और जांच के सोर्स का सिलेक्शन किया जा सकेगा.

-हेल्थ की कंडीशन के बारे में मरीज को एजुकेट किया जाएगा.

-सभी गवर्नमेंट और प्राइवेट मेडिकल इंस्टीट्यूट से रेफरल ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा मिलेगी.

-डॉक्टर की सलाह के खिलाफ जाकर हॉस्पिटल या ट्रीटमेंट सेंटर छोड़ने वाले मरीज के मामले में इलाज का ब्योरा प्राप्त किया जा सकेगा.

-रोड एक्सीडेंट्स में फ्री ट्रांसपोर्टेशन, फ्री ट्रीटमेंट औरर फ्री इंश्योरेंस कवर इस्तेमाल होगा.

-सेकेंड ओपिनियन लेने के लिए पहले से ट्रीटमेंट करने वाले हेल्थ प्रोवाइडर से ट्रीटमेंट डिटेल और इन्फॉर्मेशन लेने का अधिकार मिलेगा.

-राजस्थान सरकार बाउंड होगी कि राइट टू हेल्थ के लिए बजट में उचित प्रोविजन करे.

-सरकार ट्रीटमेंट क्वालिटी और सेफ्टी मेजरमेंट्स और नॉर्म्स शामिल करेगी.

-गारंटीड सर्विसेज से कोई भी डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तौर पर इनकार नहीं किया जा सकेगा.

-पोषण (न्यूट्रिशियन) के लिए पर्याप्त और सुरक्षित खाना देने, सेफ पीने के पानी की व्यवस्था, हाईजीन के लिए सरकारी डिपार्टमेंट्स के बीच कॉर्डिनेशन किया जाएगा.

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