Jaisalmer News: जल मित्र से मिलता जुलता ही नाम है एक जल सहेलियों का. ये महिलाओं का एक समूह है जो रात में पानी की पहरेदारी करके आठ गांवों की प्यास बुझाने वाले ताबाल को संरक्षित कर रही हैं.ये कहानी है राजस्थान के जैसलमेर जिले की.
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Jaisalmer News: देश के सबसे सुखे इलाकों में से एक है, जैसलमेर का अड़बाला गांव, जहां एक ही तालाब है जिसका नाम है सांवराई, जो आसपास के 8 गांवों के करीब 11 हजार लोगों की प्यास बुझाता है. जैसलमेर टूरिज्म के लिए बहुत प्रसिद्ध है,इसलिए यहां कई रिजॉर्ट हैं.लड़ाई यहीं से शुरू हुई. दस सालों से यहां के रिजॉर्ट इसी पानी के बूते चल रहे थे.
इसका नतीजा गांव वालों को भुगतना पड़ रहा था. पर्यटकों की प्यास बुझाते-बुझाते तालाब का गला सूख रहा था.हर बार गर्मियों में पानी की लड़ाई होती है, तालाब गांव का था, फिर भी गांव वालों को डेढ़-डेढ़ हजार रुपए में पानी का टैंकर खरीदना पड़ता है.गांव के पुरुषों ने पानी की चोरी रोकने की कोशिश की,लेकिन बात नहीं बनी. 2022 में मोर्चा संभाला महिलाओं ने. जब पानी बचाने के लिए 25 'जल सहेलियां' उतरी तो चोरी का यह सिलसिला थम गया. इन जल सहेलियों की कामयाबी के पीछे था जोधपुर का उन्नति संगठन.
जल सहेली कमला देवी कहती हैं,'कई वर्षों से बारिश के बाद तालाब को 40-45 दिन में खाली होता देख रही थी. एक दोपहर पानी लेने के लिए टैंकर आया तो हमने उसे रोक लिया,इतना ही नहीं तालाब का पानी दोबारा तालाब में खालो करवाया.भानु देवी बताती हैं कि बात इतने से नहीं बनीं, हम रिजॉर्ट मालिकों तक गए.
हमारे लिए पानी की अहमियत समझाई, तब जाकर टैंकरों का आना रुका. 'उन्नति' की धर्म कंवर कहती हैं कि रात को महिलाएं ही तालाब की पहरेदारी करती हैं.पानी को लेकर समूह के नियम कड़े हैं,जो भी इन्हें तोड़ता है तो उन पर 1000 रुपए जुर्माना लगाया जाता है. जल सहेली समूह की शुरुआत पांच महिलाओं से हुई थी,आज इसमें 25 महिलाएं हैं.जल सहेलियों ने उन गांवों का भी पानी रोक दिया,जो खनन में शामिल थे क्योंकि इससे पानी का बहाव बदल जाता था.