Lt. Gen. Hanut Singh : राजस्थान (Rajasthan)के जोधपुर (Jodhpur)शहर से करीब 80 किलोमीटर की दूर जाने पर जसोल नाम की जगह हैं. जहां के जांबाज लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह के बारे में कहा जाता है कि कि अगर उन्हे 1986 युद्ध की कमान मिल जाती तो भारत और पाकिस्तान का नक्शा बदल जाता. 1971 की लड़ाई में नाम हासिल कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह (Lieutenant General Hanut Singh)के सामने दुश्मन के पसीने छूट जाते थे.
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Lt. Gen. Hanut Singh : राजस्थान (Rajasthan)के जोधपुर (Jodhpur)शहर से करीब 80 किलोमीटर की दूर जाने पर जसोल नाम की जगह हैं. जहां के जांबाज लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह के बारे में कहा जाता है कि कि अगर उन्हे 1986 युद्ध की कमान मिल जाती तो भारत और पाकिस्तान का नक्शा बदल जाता. 1971 की लड़ाई में नाम हासिल कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह (Lieutenant General Hanut Singh)के सामने दुश्मन के पसीने छूट जाते थे.
1971 में हनुत सिंह 17 पूना हॉर्स के सीओ थे. बैटल ऑफ़ बसंतर की मशहूर लड़ाई में दुश्मन से घिर जाने के बावजूद लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह ने हर जूनियर ऑफ़िसर को एक इंच भी पीछे हटने के लिए मना कर दिया था. 21 साल के लड़के की बात सुनकर पाकिस्तानी भी सहम गए थे. इसी वॉर के दौरान सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को शहीद होने के बाद परमवीर चक्र मिला और बेहतरीन कमांडिंग के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह को महावीर चक्र से नवाजा गया.
कड़ी ट्रेनिंग
लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह ने अपना असली काबलियत 1986 की लड़ाई में दिखायी. जब भारतीय सेना इतिहास के सबसे बड़े युद्धाभ्यास ‘ऑपरेशन ब्रासटैक्स’ को अंजाम देने वाली थी और हनुत सिंह ने इसमे बेहद अहम भूमिका निभाई थी. हनुत सिंह जिंदगीभर का युद्धाभ्यास में इस लड़ाई में झौंक दिया था. लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह को सेना के सुप्रतिष्ठित हमलावर 2 कोर की कमान मिली थी. वे राजस्थान की सीमा पर डटे हुए थे. उनके पास डेढ़ लाख भारतीय सैनिक भी थे. वे रोज़ सैनिकों को नए अभ्यास, नक़्शे, सैंड-मॉडल बनाकर हमले की प्लानिंग कराते और फिर खतरनाक मारक ट्रेनिंग भी देते थे.
60 टैंक मार गिराए
पाकिस्तानी पहले ही 1971 की लड़ाई में हनुत सिंह की जांबाजी को आंक चुका था. जब हनुत सिंह ने 60 टैंक मार गिराए थे और अब आर्मी की इस प्रैक्टिस को देखकर पाकिस्तान का गला सुख गया था. इधर अमेरिका तक हडकंप मच गया था. अबकी बार मुकाबला आमने सामने का था जिसमें दुश्मन की हार तय थी. लेकिन पाकिस्तान सेना और सरकार ने अपनी हार को पक्का मानकर ट्रैक 2 डिप्लोमेसी का इस्तेमाल किया और इस युद्धाभ्यास को रुकवा दिया. अगर ये लड़ाई होती तो हनुत सिंह पाकिस्तान का नक्शा बदल दे सकते थे.
बहुत सख्त थे हनुत सिंह के नियम
बताया जाता है कि साल 1982 में हनुत सिंह मेजर जनरल बने और सिक्किम में तैनात 17 माउंटेन डिविज़न की कमान उन्हें दे दी गई. उन दिनों कोई सरकारी अधिकारी सिक्किम आता था तो सेना की मेहमाननवाजी का लुत्फ लेता था. हनुत सिंह ने ये सब बंद करवा दिया और सरकारी सैलानियों से सरकारी शुल्क वसूलना भी शुरू कर दिया.
कभी नहीं की शादी
हनुत सिंह ने शादी नहीं की. वो कहते थे कि सैनिक शादी कर लेगा तो देश सेवा कौन करेगा. वो आजीवन कुंवारे रहे. हनुत सिंह से प्रभावित होकर उनकी यूनिट में कई जवानों और अफ़सरों ने भी शादी नहीं करने का फैसला लिया और अपनी पूरी जिंदगी देश की सेवा में लगा दी. ऐसा सैनिकों के घरवालों को पसंद नहीं आया और हनुत सिंह की शिकायत आलाधिकारियों से हुई.
काम को लेकर समर्पित
बताया जाता है कि 1971 में उनके कमांडिंग ऑफ़िसर अरुण श्रीधर वैद्य (बाद में सेनाध्यक्ष) ने एक बार युद्ध के दौरान उनसे हालचाल मालूम करने की कोशिश की तो हनुत ने किसी सैनिक के जरिए कहलवाया कि वो ‘पूजा’ कर रहे हैं और अभी बात नहीं कर सकते. लड़ाई के दौरन उनका पूरा फोकस काम पर रहता था. ये हनुत सिंह की काबलीयत ही है कि उनके भारतीय टैंकों की लड़ाई पर लिखे दस्तावेजों को आज भी इंडियन मिलिट्री एकादमी में पढ़ाया जाता है.
दरअसल, जंग के दौरान वे किसी भी प्रकार का दख़ल बर्दाश्त नहीं करते थे। उनकी काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में टैंकों की लड़ाई पर हनुत सिंह के लिखे दस्तावेज़ आज भी इंडियन मिलिट्री अकादमी में पढ़ाए जाते हैं.
सेनाध्यक्ष नहीं बनाये जाने पर हनुत सिंह ने कहा था कि ये मेरा नहीं देश का नुकसान है, ये तय है कि हर क़ाबिल अफ़सर सेनाध्यक्ष नहीं बनता और हर सेनाध्यक्ष क़ाबिल नहीं होता है.