Kargil Vijay Diwas: कारगिल विजय दिवस के कारण 26 जुलाई का दिन भारत के लिए एक स्वर्णिम गौरवशाली दिन के रूप में जाना जाता है. 26 जुलाई को ही भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को हरा कर विजय हासिल की थी,
Trending Photos
Kargil Vijay Diwas: कारगिल विजय दिवस को लेकर नागौर में खास कार्यक्रम आयोजित किए गएं, और तब से हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. 3 मई 1999 को कारगिल युद्ध शुरू हुआ जो 26 जुलाई को भारत की जीत के साथ समाप्त हुआ. इस युद्ध में देश के कई वीर सपूतों ने अपनी शहादत दी. कारगिल में शहादत देने वालो में नागौर जिले के वीर सपूतों का नाम पर अग्रणी है,कारगिल में नागौर के कई वीरो ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.
इन्ही वीरों में एक वीर थे अर्जुनराम बसवाणा,जिन्होंने पाकिस्तान की कठोर यातनाएं सही लेकिन देश के प्रति वफादारी निभाते हुए अपने प्राणों की आहुति दी.अर्जुनराम व उसके साथियों की शहादत के साथ ही कारगिल युद्ध का आगाज हुआ जिसमें हमारी सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी.
23 साल पहले तीन मई 1999 को कारगिल में दुश्मन की घुसपैठ की जानकारी मिलने पर जो 4 जाट रेजीमेंट की पहली टुकड़ी कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में दुश्मन को खोजने निकली,उस टुकड़ी में नागौर के बूढ़ी-बसवाणा गांव के 23 साल के अर्जुनराम बसवाणा भी शामिल थे. एक तरफ अर्जुनराम दुश्मन का पता लगाने के लिए निकले तो दूसरी और घर पर शादी की तैयारी चल रही थी.अर्जुनराम को दूसरे ही दिन छुट्टी लेकर घर जाना था.
24 जून 1999 को निर्जला एकादशी के दिन अर्जुनराम की शादी तय हो रखी थी.घर में शादी की तैयारियां चल रही थी, तो दूसरी और अर्जुनराम दुश्मन की लोहा लेने निकल गए थे.
कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में पेट्रोलिंग पर निकली 4 जाट रेजीमेंट भारतीय सेना की टुकडी छोटी थी और घात लगाकर बैठे दुश्मनों ने सेना की टुकड़ी को घेर लिया. कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व वाली हमारी टुकड़ी ने मुकाबला किया लेकिन छोटी टुकड़ी के पास गोलिया खत्म हो गई.
पाकिस्तानी सेना ने इसी का फायदा उठाया और 15 मई 1999 को द्रास सेक्टर से कैप्टन सौरभ कालिया,नागौर जिले के अर्जुनराम, नागौर के ही मूलाराम भंवरलाल,बीकाराम व नरेशसिंह को बंदी बना लिया.
15 मई से लेकर 6 जून 1999 तक अर्जुनराम व साथियों को कठोर यातनाएं दी गई. ऐसी यातनाएं कि सोचते ही रुह कांप जाए. पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सैनिको के मुंह खुलवाने के लिए सारे हथकंड़ें अपनाए. सैनिको को सिगरेटो से दागा गया,जगह-जगह से काटा गया,अंग नोचे गए.
अंगूलियां काटने से लेकर दांत तोड़ने तक बर्बरता की सारी हदे पार की,पर जाबांज सैनिको ने देश के प्रति वफादारी रखी और पाकिस्तानी सेना को एक शब्द नहीं बताया और देश के प्रति वफादारी निभाई. 6 जून 1999 को अर्जुनराम सहित साथियों के शव भारत को सौंपे तो पूरा देश गुस्से से भरा गया. कारगिल में शहीद होने वालों में कैप्टन कालिया,अर्जुनराम व साथी सबसे पहले शहीदो में थे. इसको बाद हमारी सेना ने पाकिस्तानी सेना को मूंह तोड़ जवाब दिया.
अर्जुनराम की शादी की तैयारी कर रहे मां भंवरी देवी व पिता चोखाराम को जब पता चला कि अर्जुनराम देश के लिए शहीद हो गए तो उनके लिए वो पल जैसे ठहर ही गया. तस्वीरों में कैद अर्जुनराम की यादें आज भी उस समय को ठहरा देती है.अर्जुनराम के बुजुर्ग माता-पिता बड़े भाई पप्पूराम के साथ रहते हैं.
अर्जुनराम योद्धा थे,बचपन से ही पहलवान का शोक था,पढ़ाई में भी होशियार थे,अर्जुनराम ने खरनाल वीर तेजाजी मेले और बसवाणी के रामदेव मेला में कई बार कुश्ती,कबड्डी में भाग लेकर पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए. गांव के ही नृसिंह राम बसवाना ने बताया शहीद अर्जुनराम हमारे गांव का गौरव है, हमें फक्र है कि हमारे गांव के सैनिक ने देश के लिए सहादत दी,
यातनाएं सहने के बावजूद वे डिगे नहीं और मातृभूमि के प्रति वफादार रहें. लेकिन सरकार ने राजस्व में बूढ़ी गांव का नाम अभी तक शहीद अर्जुनराम बसवाना के नाम पर नहीं किया और ना ही नागौर जिला मुख्यालय के मानासर पर शहीद अर्जुनराम बसवाना की प्रतिमा लगाई. केवल विद्यालय का नाम शहीद अर्जुनराम बसवाना राजकीय विद्यालय के नाम पर रख कर इतिश्री कर ली.
ये भी पढ़ें- कारगिल विजय दिवस आज, पढ़िए नागौर के शहीद मंगेज सिंह राठौड़ की शौर्य गाथा