Pratapgarh News:पर्यावरण प्रेमी ने की 10 अलग-अलग स्थानों की खोज,गुफाओं में हजारों साल पुराने शैल चित्र
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Pratapgarh News:पर्यावरण प्रेमी ने की 10 अलग-अलग स्थानों की खोज,गुफाओं में हजारों साल पुराने शैल चित्र

Pratapgarh News:प्रतापगढ़ के पर्यावरण प्रेमी मंगल मेहता ने जिले के जंगलों में शैलचित्र की 40 हजार से एक हजार साल तक की पुरानी आदिमानव की गुफाएं और चित्रकला की दस अलग-अलग जगहों की खोज की है.

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Pratapgarh News:प्रतापगढ़ के पर्यावरण प्रेमी मंगल मेहता ने जिले के जंगलों में शैलचित्र की 40 हजार से एक हजार साल तक की पुरानी आदिमानव की गुफाएं और चित्रकला की दस अलग-अलग जगहों की खोज की है. यह पहला मामला है जिसमें जिले के पर्यावरण प्रेमी द्वारा जिले में इस तरह मानव विकास का अध्ययन किया गया है. 

जिले के जंगलों की गुफाओं में उच्च पुरापाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के मानव विकास के शैलचित्र पाए गए हैं.  पर्यावरण प्रेमी की मदद से इन दस जगहों पर  जहां-जहां आदिमानव द्वारा अपने सृजनात्मक गुणों का परिचय दिया है ओर जो मानव की क्रमिक विकास की कहानी कहता है. 

ऐसी गुफाओं और कंदराओं में शिकार, आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, पशुपालन और युद्ध के साथ कई तरह के शैलचित्र की तस्वीरों को जुटाया है. खास बात ये है कि इस इलाके में मानव द्वारा पत्थरों से तैयार करे कई पुराने चिन्ह भी सीतामाता के जंगलों की गुफाओं में दिखाई दिए है. 

जानकारी के अभाव में लोग इसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं. अबतक इन जगहों की खोज नहीं होने से जिले के जंगलों में खोजे गए इन आदिमानव के निशान के बारे में पर्यावरण प्रेमी मंगल मेहता ने पुरातात्विक विभाग को भी पत्र लिखे है.

सीतामाता के जंगलों में नदियों के किनारों पर बनी गुफाएं आदिमानव के आवास का पुराना केंद्र या ऐसा कहना चाहिए कि उसकी कर्म स्थली है. कर्मस्थली इसलिए क्योंकि वहां रहते हुए आदिमानव ने सृजनात्मक गुणों का परिचय दिया. वहां की गुफाओं और कंदराओं में रहते हुए मानव ने अपनी सृजनशीलता के गुणों का परिचय शैलचित्र बनाकर दिया है. 

उस समय कोई भाषा या संप्रेषण का माध्यम नहीं था. इसलिए मानव अपनी बात को समझाने के लिए शैलचित्र बनाते थे. जिससे आने वाली पीढ़ी उस चीज को समझ सके. जैसे वहां पर शिकार के दृश्य हैं.  इन शैलचित्रों के माध्यम से बताया गया कि शिकार कैसे किया जाता है. ये एक तरीके से आगे की पीढ़ी को पढ़ाने का तरीका है.

सीतामाता के जंगलों में बनी गुफाओं में ताम्रपाषण काल, पूर्व पाषाणकाल और नव पाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक पाषाण काल तक के शैलचित्र सीतामाता के जंगल की गुफाओं में दिखाई दिए है. सीतामाता के जंगल की गुफाओं में अलग-अलग कालों के शैलचित्र दिखाई दिए है. 

सबसे प्राचीन शैलचित्र की आयु लगभग एक हजार साल है. उसके बाद 10 हजार ईसा के पूर्व तक यहां मानव का निवास क्षेत्र रहा होगा. यहां की गुफाओं में पाई गई शैलचित्र के साथ-साथ बड़े बड़े पत्थरों पर तैयार किए गए आदिमानव की मौजूदगी के ओर भी कई निशान यहां पर मौजूद है.

शैलचित्रों में मानव के विकास की पूरी गतिविधियां दिखाई देती हैं. जिले के सीतामाता के जंगलों की गुफाओं में पर्यावरण प्रेमी द्वारा खोजी गई शैलचित्र में उच्च पुरापाषाण वाले शैलचित्र जिसमें बड़े आखर की रेखाएं, मध्य पाषाण युग के चित्र जिसमें सुंदर, सुघड़ और काफी अच्छे ढंग से बनाए गए शैलचित्र, जिसमें मानव, उनके परिवार, जीवन शिकार आदि को दिखा रहे है. 

उसके बाद के शैलचित्र ताम्र पाषाण युग काल के हैं. ताम्र पाषाण काल में मानव और विकसित हो गया था. मकान बनाने लगा था, लेकिन मानव शैलाश्रय में रहकर शैलचित्र बना रहे थे. तब इसमें सुंदर-सुबह आकृतियां मनुष्य के शरीर जैसे होते थे. वैसे शरीर के चित्र बनाए जा रहे थे. पशुओं के शरीर और पशुपालन के दृश्य देखने मिलते हैं. 

ऐतिहासिक काल के चित्रों की विशेषता ये है कि इनमें घुड़सवार और हाथी पर सवार मानव मिलते हैं. यानी योद्धा के रूप में मानव मिलते हैं, क्योंकि यह इतिहास का काल है. आमोद-प्रमोद, नृत्य-गान, मृदंग वादन आदि के शैलचित्र सीतामाता की गुफाओं में मिलते हैं.

जिले के सीतामाता जगल के केली में संभवत ताम्र पाषाण काल की शैलोत्कीर्ण घोड़ो के चित्र और बिंदु के चिन्ह उकेरे गए है. यह नदी के किनारे का स्थान है. सीतामाता में माता सीता के वनवास से भी जोड़ा जाता है. इस लिए इस स्थान पर उकेरी गए शैलचित्र को अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े से भी जोड़ा जा सकता है. 

इसके बाद जंगल के लिख्या भाटा एक और दो के एक हिस्से में नदी के किनारे मिले शैलाश्रय में शिला के ऊपर बहुत से पशुओं और पक्षियों के चित्र और शिकार का दृश्यउकेरे हुए नजर आए है. संभवत यह पूर्व पाषाण काल से जुडी हो सकती है. इसकी उम्र करीब पांच हजार से दस हजार साल ईसा से पूर्व की है. 

इसी तरह जंगल के लिख्या भाटा तीन में नदी किनारे गुफा जो ग्रेनाइट पत्थर की गुफाएं है इन गुफाओं में रंगील चित्रकारी की गई है रंगोली पशु और शिकार के चित्र है. मुखौटा पहने छड़ी नुमा मानव आकृति भी इस जगह देखने को मिली है. इन गुफाओं में अब पेंथर और सही का बसेरा है. 

इसी तरह लिख्या भाटा चार पर भी कई गुफाएं बनी हुई है. पत्थरों पर बड़े बड़े कप मार्क बने हुए है. इसी शिला पर कभी शैलचित्र भी लाल रंग से बने हुए थे जो अब कालांतर में नष्ट हो चुके है. जंगल के लिख्या भाटा पांच में छोटी नदी के किनारे बड़े बड़े पत्थरों की कई प्राकृतिक गुफाएं है. जिनमे नव पाषाण काल से  ऐतिहासिक काल तक की शैलचित्र दिखाई दी है. हो सकता है इन जगहों और किसी विशेष सभय्ता से भी जुड़ाव हो.

पर्यावरण प्रेमी मंगल मेहता का कहना है कि आदिवासी जिलों के जंगल में अगर खोज होती है तो कोई सभय्ता भी मिल सकती है. नाग सभय्ता या आहात सभयता के अवशेस सीतामाता के जंगल में मिल सकते है. क्षेत्र में चर्चित पांडव और राम के वनवास से सम्बन्ध भी कुछ शेलचित्रों से होता है. 

यहां पर पाए गए शैलचित्र मध्यप्रदेश की प्रसिद्ध भीम बैठका की शैलचित्र, उत्तराखंडः के लाखो दयाल, के शैलचित्रों से मेल खाते है संभव यह उसी काल के हो और कुछ विशेष चित्र भी मिले है जो सम्भवता विश्व में पाए गए अलग शैली के है.

प्रतापगढ़ वन विभाग के उपवन संरक्षक हरिकिशन सारस्वत कहते है कि जिले के पुरातत्व की धरोहर का संरक्षण जरूरी है इन स्थानों पर अधिक मानव हस्तक्षेप और गतिविधियों से यह धरोहर नष्ट हो सकती है. 

इसलिए इन स्थानों में धार्मिक आस्था बनी रहे साथ ही इनका भी संरक्षण होता रहे यह जरूरी है.इसके लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है. सर्वे की रिपोर्ट बनाकर प्रशासन और पुरातात्विक को सौंपकर इनकों संरक्षित किया जाएगा.

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