Pratapgarh News: जंगल कटने के कारण पर्यावरण प्रभावित हो रहा व गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. ऐसे में पौधरोपण ही इसका विकल्प बताया जा रहा है. वहीं, मियावाकी पद्धति से पांच से दस वर्षों में ही पौधों को पेड़ बनाया जा सकता है. ऐसे में हरियाली का आंकड़ा बढ़ सकता है.
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Rajasthan News: राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम के बांसवाड़ा रोड स्थित जीएसएस परिसर में एक्सईएन संदीप सोनी ने करीब 6 सौ पौधे लगाए थे जो देखभाल करने के कारण बड़े होते जा रहे है. यहां लगाए गए पौधों की लगातार ऊंचाई बढऩे से कई किसान, राजकीय और निजी संस्थाएं भी उनके पास पहुंच रही है, जिससे वे सभी को प्रेरणास्रोत बने हुए है. ऐसे में वह मियावाकी पद्धति की पूरी जानकारी और सहयोग करने वाली संस्था से उनको मिलाने का कार्य कर रहे है.
क्या है मियावाकी पद्धति?
मियावाकी तकनीक घने जंगल तैयार करने की एक जापानी तकनीक है. मियावाकी तकनीक एक छोटी सी जगह में पेड़ उगाने का बेहतरीन तरीका माना जा रहा है. मियावाकी तकनीक से जंगल को एक खास प्रक्रिया के जरिए उगाया जाता है, ताकि ये हमेशा हरे-भरे रहें. इसमें पौधों को कम दूरी पर लगाया जाता है. पौधे सूर्य का प्रकाश प्राप्त कर ऊपर की ओर वृद्धि करते हैं. पद्धति के अनुसार, पौधों के तीन प्रजातियों की सूची तैयार की जाती है, जिनकी ऊंचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग होती है. जैसे कि एक पेड़ अधिक ऊंचाई का लगाया जाता है, जबकि दूसरा पेड़ नीम, शीशम आदि का होगा. वहीं, तीसरा पौधा किसी भी तरह की फुलवारी का हो सकता है. इसमें खास बात यह रहती है कि एक पेड़ ऊंचाई वाला तथा दूसरा कम ऊंचाई वाला तथा तीसरा घनी छायादार पौधा चुना जाता है. इन तीनों पौधों को थोड़े-थोड़े दिन के अंतराल पर लगाया जाता है. आमतौर पर जंगलों को पारंपरिक विधि से उगने में काफी अधिक वर्ष का समय लगता है, जबकि मियावाकी पद्धति से उन्हें केवल पांच से 10 वर्ष में ही उगाया जा सकता है.
गर्मी में भी इन पौधों को नहीं होगी पानी की कमी
निगम के परिसर में गत वर्ष ही यहां चार अलग-अलग स्थानों पर पौधों का रोपण मियावाकी पद्धति के तहत किया गया, जिसमें बड़े और ऊंचाई वाले प्रजातियों के साथ औषधीय पौधे भी लगाए गए है, जिससे औषधियों की भी आम लोगों को जानकारी हो सके और उनका उपयोग किया जा सके. यहां लगाए गए पौधों को गर्मी में भी पानी कमी नहीं हो. इसके लिए ड्रिप सिस्टम लगाया गया है, जिससे कम पानी में अधिक से अधिक पौधों को गर्मी में जीवित रख सकें. इसके साथ ही इसमें मेहनत भी कम लगती है. यहां बनाई गई ट्रेंचों के नाम भी यहां परिसर में कार्यरत कर्मचारियों के नाम पर रखे गए है, जिससे उनका मनोबल बढ़ सके. इसके साथ ही रख-रखाव की भी जिम्मेदारी कर्मचारियों, गार्ड आदि को दी गई है.
रिपोर्टर- हितेष उपाध्याय
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