Republic Day 2019: रिपब्लिक डे से पहले महापुरुषों की ये बातें जानकर आप में भी भर जाएगा देश प्रेम का जोश
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Republic Day 2019: रिपब्लिक डे से पहले महापुरुषों की ये बातें जानकर आप में भी भर जाएगा देश प्रेम का जोश

हमारे देश के महापुरुष और स्वतंत्रता सेनानी के ऐसे नारे जो आपको जोश से भर देंगे और इस बात का एहसास कराएंगे, कि उन्हीं की मेहनत  है जो आज हम इस लोकतांत्रिक देश में आजादी से जी पा रहे हैं.

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न आंदोलनों के सूत्रधार थे. (फाइल फोटो)

नई दिल्लीः हम जब भी आजादी की बात करते हैं सबसे पहले हमारे मन में उन महापुरुषों का नाम सबसे पहले आता है, जिनके एक नारे ने देश की आजादी की लड़ाई में क्रान्ति ला दी, या फिर यूं कहें कि उनके विचार और उनकी जिद ही थी जो आज हम सभी आजादी से अपनी जिंदगी जी पा रहे है. अगर हमारे देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी और चंद्रशेखर आजाद जैसे महापुरुष और स्वतंत्रता सेनानी न होते तो शायद ही हम इस स्वतंत्र राष्ट्र में सांस ले सकते, तो चलिए Republic day पर हम आपके लिए लेकर आए हैं हमारे देश के महापुरुष और स्वतंत्रता सेनानी के ऐसे नारे जो आपको जोश से भर देंगे और इस बात का एहसास कराएंगे, कि यह उन्हीं की मेहनत और लगन है जो आज हम इस लोकतांत्रिक देश में आजादी से जी पा रहे हैं.

 "जय हिंद": नेताजी सुभाष चंद्र बोस- देशभक्ति का प्रतीक और भारत की विजय का प्रतीक 'जय हिंद' का नारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने एक युद्ध घोष के रूप में दिया था, जिसके बाद यह देशभक्ति का प्रतीक बन गया और पूरे भारत देश में प्रचलित हो गया.

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''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'': नेताजी सुभाष चंद्र बोस का यह नारा आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देता है. बता दें जुलाई 1944 में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपनी ''आजाद हिंद फौज'' के साथ वर्मा पहुंचे थे, तब उन्होंने यहीं ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'' का नारा दिया था.

"अब भी जिसका खून नहीं खौला, खून नहीं वो पानी है, देश के काम न आए वो बेकार जवानी है" - चंद्रशेखर आजाद- युवाओं को देश के प्रति जागरुक और कुछ भी कर गुजरने का संदेश देने वाला यह नारा देश के उस स्वतंत्रता सेनानी की है, जिसने कभी भी अंग्रेजों के सामने अपना सिर नहीं झुकाया था. यहां तक की मौत को सामने देखकर भी वह घबराए नहीं और खुशी-खुशी देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी, जी हां हम बात कर रहे हैं चंद्रशेखर आजाद की. जिन्होंने आजादी की लड़ाई के समय "अब भी जिसका खून नहीं खौला, खून नहीं वो पानी है, देश के काम न आए वो बेकार जवानी है" का नारा दिया था.

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भारत छोड़ोः युसूफ मेहरली- बता दें युसुफ मेहरली ही वह शख्स थे जिन्होंने 'भारत छोड़ो' का नारा दिया था, जिसे बाद में गांधी जी ने 1942 में आजादी की लड़ाई के लिए छेड़े गए आंदोलन में इस्तेमाल किया था.23 सितंबर 1903 को जन्मे युसूफ मेहरली भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेताओं में थे. आजादी के आंदोलन के दौरान वह 8 बार जेल भेजे गए.

"स्वराज मेरा जन्मसिध अधिकर है, और मै इसे लकर रहूंगा" - यह नारा बाल गंगाधर तिलक ने दिया था, बता दें उनका यह उद्घोष आजादी की लड़ाई के समय काफी लोकप्रिय हुआ था. प. बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को हुआ था. बता दें तिलक भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे. वह ऐसे प्रमुख व्यक्ति थे जिन्होंने युवाओं की शिक्षा पर जोर दिया और साथ ही साथ समाज के सभी वर्गों के लोगों को संगठित किया.

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"जय जवान, जय किसान" : लाल बहादुर शास्त्री- भारत का प्रसिद्ध नारा 'जय जवान, जय किसान' 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था.

"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल मे है" - रामप्रसाद बिस्मिल- रामप्रसाद बिस्मिल ने यह नारा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के नौजवान स्वतन्त्रता सेनानियों के लिये संबोधित गीत के रूप में लिखा था. उन्होंने न सिर्फ यह नारा लिखा, बल्कि गीत की तरह पंक्तियों में पिरोकर लोकप्रिय भी बनाया.

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स्वतंत्रता आंदोलन के संबंध में चंद्रशेखर आज़ाद की एक अत्यंत क्रांतिकारी विचारधारा वाले व्यक्ति थे. आजाद नाम होने की वजह से वह लोगों के बीच में बहुत अधिक लोकप्रिय थे. आजाद ने बहुत कम ही उम्र में विभिन्न हिंसक आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया था. इन्होंने " दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे " : प्रमुख नारे दिए.

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न आंदोलनों के सूत्रधार थे. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की एक बैठक के बाद महात्मा गांधी द्वारा "करो या मरो" का नारा 7 अगस्त 1942 को दिया गया था. इसके दूसरे दिन 8 अगस्त 1942 को, भारत छोड़ो प्रस्ताव को पारित किया गया था

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काकोरी कांड में एक प्रमुख व्यक्ति, अशफाक उल्ला खान, शाहजहांंपुर के एक स्वतंत्रता सेनानी थे. पकड़े जाने के बाद इनकों मौत की सजा मिली. खान एक उत्साही था; उन्होंने सरफ़रोशी की तमन्ना से युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नारे के रूप में "खून से खेलेंगे होली अगर वतन मश्किल में है" प्रमुख हैं.

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